गौतम चौधरी
इस्लाम का जैसे ही नाम आता है तो महिलाओं के उत्पीड़न का चित्र उभर कर सामने आ जाता है। दरअसल, यह कपोल कल्पना पर आधारित केवल पश्चिमी जगत का प्रचार ही नहीं है अपितु इस्लाम के अनुयायियों में कुछ इन दिनों कुछ ऐसे तत्व उभर कर सामने आ गए हैं, जो महिलाओं के प्रति समारात्मक रवैया नहीं रखते हैं। तालिबान और अल कायदा के साथ ही आईएसआईएसआई जैसे इस्लामिक संगठनों ने अपने करतूतों से इस्लाम को बदनाम किया है। वैसे पैगंबर मुहम्मद साहब के युग में, मुस्लिम महिलाएं खुद को शिक्षित करने के लिए उत्सुक थीं तथा अपना अधिकतम समय वह सीखने में लगाती थीं। पैगंबर की पहली पत्नी, खादीजा अल कुबरा एक सफल व्यापारी और व्यवसायी महिला थीं, जो बेहद अमीर थीं क्योंकि उन्होंने पुरुष प्रधान समाज में पूर्ण अनुग्रह और गरिमा के साथ अपना व्यवसाय बड़ी क्षमता के साथ चलाया। ये सभी पहलू संभव नहीं होते अगर खदीजा ने व्यवसाय के कौशल को सीखने और खुद को शिक्षित करने के प्रयास नहीं किया होता।
इस्लामी इतिहास में अन्य अनुकरणीय व्यक्तित्वों के नामों में आयशा अबू-बकर, विश्वासियों की मां, खानसा, एक महान कवयित्री शामिल हैं, जो आज तक अरबी साहित्य के बेहतरीन शास्त्रीय कवियों में से एक हैं। फातिमा-ए-फहरी, जो 9वीं शताब्दी में फेज, मोरक्को में कार्बियन मस्जिद की स्थापना की, जो बाद में चलकर शिक्षा और उन्नति के लिए एक महत्वपूर्ण केंद्र बन गया। जैनब अल शाहदा का जिक्र आता है। जैनब, एक प्रसिद्ध फिक्ह (इस्लामी कानून) विद्वान, शिक्षक और 12 वीं शताब्दी के प्रसिद्ध लेखिकाओं में शुमार थी।
इस्लाम के इतिहास में ऐसी प्रतिष्ठित महिलाओं के कई उदाहरण हैं, जिन्होंने शिक्षा को अपने समाज में सुधार और योगदान के लिए एक उपकरण के रूप में इस्तेमाल किया है। अतीत की मुस्लिम महिलाएं प्रेरणादायक रही हैं। उन्होंने इतिहास में कई मील के पत्थर हासिल किए हैं। समकालीन समय में भी, मुस्लिम महिलाएं शिक्षा, विज्ञान, कानून आदि जैसे विभिन्न क्षेत्रों में कई मानक बनाने में सक्षम रही हैं, हालांकि, उन्हें धर्म, सम्मान या राजनीति के नाम पर बार-बार मोहरे के रूप में इस्तेमाल किया गया लेकिन, वह अडिग रही। वर्तमान समय में उन्हें दी जाने वाली शिक्षा के कारण यह कम हो गया है।
सच पूछिए तो किसी अर्थव्यवस्था द्वारा सृजित व्यावसायिक भूमिकाओं को पूरा करना ही व्यक्ति का एकमात्र लक्ष्य नहीं है बल्कि, मुख्य लक्ष्य व्यक्ति और अंततः समुदाय को सशक्त बनाना और सुधारना है। मुस्लिम महिलाओं को उनके आंदोलनों को प्रतिबंधित किए बिना शिक्षा प्रदान करने और काम करने के लिए समान अधिकार देना महत्वपूर्ण है।
हिजाब मामले के बाद कुछ अभिभावकों ने बयान दिया है कि वे अपनी बेटियों को बिना हिजाब के स्कूल या कॉलेज नहीं जाने देंगे। मुझे लगता है बीवी खदीजा (पैगंबर की पत्नी) इस तरह के कृत्यों या फिर बयानों से निराश हो सकती हैं। यदि कोई मुस्लिम लड़की शिक्षा प्राप्त करना चुनती है, तो उसे उसकी पसंद के रूप में मान्यता दी जानी चाहिए। सशक्तिकरण के अपने अधिकारों की रक्षा के लिए मुस्लिम महिलाओं को आगे आना चाहिए। मुस्लिम महिलाओं को शिक्षा प्राप्त करने के लिए दृढ़ता के साथ खड़ा होना पड़ेगा। उन्हें यह नहीं समझना चाहिए कि इस्लाम महिलाओं की शिक्षा के खिलाफ है। यदि ऐसा होता तो इस्लामिक जगत में प्रभावशाली महिलाओं की कमी होती, जबकि ऐसा कुछ भी नहीं है।
खास कर भारतीय मुस्लिम महिलाओं को तो आगे बढ़ने में कोई हिचक होनी ही नहीं चाहिए। यहां तो सरकार के द्वारा कई ऐसी योजनाएं हैं जो केवल मुस्लिम महिलाओं को शिक्षित और सशक्त बनाने के लिए लाई गयी है। वैसे शिक्षा के बारे में इस्लाम के पवित्र ग्रंथ कुरान मजीद में भी कई आयतें दर्ज है। मुस्लिम महिलाओं को उस पर अमल करनी चाहिए न कि उन मौलवियों पर जो नाहक धार्मिक कायदों की गलत व्याख्या करने की कोशिश करते हैं।