जयसिंह रावत
दशकों के जनसंघर्षों के बाद भारतीय गणतंत्र के 27वें राज्य के रूप में अस्तित्व में आने वाला उत्तराखण्ड राज्य अपने जीवनकाल के 23वें वर्ष में प्रवेश कर गया। इन 23 वर्षों में राजनीतिक नेताओं के लिये विधायकी की 70 सीटें और मुख्यमंत्री सहित मंत्रिमण्डल के 12 पदों तथा मंत्रियों के जैसे ठाटबाट वाले सकेड़ों पद श्रृजित हो गये। नौकरशाहों को दिन दुगुनी रात चैगुनी तरक्कियां मिल रही हैं मगर जिन लोगों ने इस राज्य की मांग के लिये अपनी जानें कुर्बान कर दीं और जिन आन्दोलनकारी महिलाओं की आबरू तक लुट गयी ,उन्हें 29 साल बाद भी न्याय नहीं मिला। उत्तराखण्ड आन्दोलन के दौरान हुये सरकारी दमन को इलाहाबाद हाइकोर्ट ने राज्य प्रायोजित आतंकवाद बताया था। सीबीआइ ने मुजफ्फरनगर के जैसे काण्डों की जांच कर मामले अदालत में तो डाल दिये मगर एक भी बलात्कारी या हत्यारे को सजा नहीं हुयी। इस काण्ड ने सारे देश को दहला दिया था और उसी के बाद न केवल उत्तराखण्ड बल्कि झारखण्ड और छत्तीसगढ़ राज्यों के गठन का रास्ता खुला।
विश्व को सत्य अहिंसा और प्रेम का पाठ पढ़ाने वाले महात्मा गांधी की जयन्ती पर जब 2 अक्टूबर 1994 को सारा देश गांधी जयन्ती मना रहा था तो उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले के रामपुर तिराहे पर उत्तराखण्ड राज्य की मांग को लेकर दिल्ली जा रहे कई आन्दोलनकारियों की लाशें बिछी हुयीं थी तो पुलिस की लाठी-गोलियों के शिकार कई लोग सड़क और खेतों में तड़प रहे थे जबकि बलात्कार की शिकार महिलाएं सदमें में बदहवास भटक रहीं थीं। छेड़छाड़ की भी ऐसी दरिन्दगी कि पीड़ित आन्दोलनकारी महिलाएं न तो अपने घावों को दिखा पा रहीं थीं और ना ही दर्द को चाहते हुये भी छिपा पा रहीं थीं। एक राष्ट्रीय राजमार्ग पर हजारों लोगों की उपस्थिति में उत्तर प्रदेश पुलिस का ऐसा वहशीपन पहले न तो देखा गया था और न ही सुना गया था। इस काण्ड के बाद सम्पूर्ण उत्तराखण्ड में 20 हजार से अधिक लोग गिरफ्तार हुये और कई पुलिस गोलीबारी में मारे गये। इस आन्दोलन के बाद चार नये राज्य अस्तित्व में आ गये मगर 29 साल गुजरने के बाद भी आज तक बलात्कारियों, हत्यारों, साजिशकर्ताओं को सजा नहीं मिल सकी।
इलाहाबाद हाइकोर्ट के आदेश पर सीबीआइ ने अपनी जांच रिपोर्ट में कहा था कि 2 अक्टूबर 1994 की प्रातः लगभग 5.30 बजे देहरादून और आसपास के इलाकों से आई 53 से अधिक बसें रामपुर तिराहे पर पहुंची और उनमें सवार आन्दोलनकारी पिछली रात्रि से वहां पर रोके गये लगभग 2000 रैली वालों से आकर मिल गये। पहाड़ से आयी बसों से यात्रा कर रहीं 17 आन्दोलनकारी महिलाओं ने आरोप लगाया कि उस रात पुलिसकर्मियों ने लाठी चार्ज करने के बाद उनसे छेड़छाड़ की और बड़ी संख्या में आन्दोलनकारियों को गिरफ्तार कर लिया। कुछ महिलाओं ने सीबीआइ को बताया कि कुछ पुलिसकर्मियों ने बसों में चढ़ कर महिलाओं से छेड़छाड़ की। इनमें से 3 महिलाओं ने कहा कि उनके साथ बसों के अन्दर ही वर्दीधारियों ने बलात्कार किया जबकि 4 अन्य का आरोप था कि उन्हें बसों से खींच कर नजदीक गन्ने के खेतों में ले जाया गया और वहां बलात्कार किया गया। ये सारी वारदातें मध्य रात्रि 12 बजे से लेकर 2 अक्टूबर सुबह 3 बजे के बीच हुयीं। महिलाओं ने पुलिसकर्मियों पर उनके हाथों की घड़ियां, गले की सोने की चेन और नकदी लूटने का आरोप भी लगाया। सीबीआइ को एक होटल के मालिक ने बताया कि पुरुष पुलिसकर्मी आन्दोलनकारी तलाशी के नाम पर महिलाओं के शरीर टटोल रहे थे। रामपुर तिराहे के निकटवर्ती गावों के 70 चश्मदीद गवाहों ने बताया कि महिला आन्दोलनकारियों ने उन्हें छेड़छाड़ और अशोभनीय पुलिस व्यवहार की जानकारी दी थी।
मुजफ्फरनगर काण्ड कितना वीभत्स था, इसकी एक बानगी सुश्री जयन्ती पटनायक के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय महिला आयोग की जांच रिपोर्ट की समरी से मिल जाती हैः- ‘‘कई महिलाओं के साथ उनके बच्चे और युवा लड़कियां भी थीं। उन्होंने बताया कि उस रात पुलिसकर्मियों ने गन्ने के खेतों तथा पेड़ों पर पोजिशन ले रखी थी। हमने देहरादून में कुछ महिलाओं की टांगों पर पुलिस के डण्डों के प्रहार से हुये नीले निशान भी देखे। वास्तव में उनमें से एक महिला की जांघ के ज्वाइंट पर गंभीर चोट लगी थी। एक गवाह ने हमें मुजफ्फरनगर में पुलिस द्वारा हाथापाई के दौरान फाड़े गये अपने वस्त्र भी दिखाये। देहरादून में एक महिला ने हमें असाधारण रूप से सूजे हुये अपने स्तन दिखाये जिन पर पुलिसकर्मियों की दरिन्दगी (मोलेस्टेशन) के नीले निशान घटना के एक सप्ताह बाद भी साफ नजर आ रहे थे। गोपेश्वर में एक महिला ने हमें बताया कि उसने 2 अक्टूबर प्रातः लगभग 9.30 बजे एक महिला को मुजफ्फरनगर अस्पताल में निर्वस्त्र ठिठुरते हुये देखा जो कि अपने हाथों से अपनी लाज ढकने का प्रयास कर रही थी। पहले ही उल्लेख किया जा चुका है कि कुछ महिलाएं उस रात पेटीकोट में ही बदहवास भाग रहीं थीं। अधिकांश महिलाओं ने बताया कि पुलिसकर्मियों ने उनके ब्लाउज के अंदर हाथ डाले, उनसे हाथापाई की, उनके सोने के आभूषण और नकदी छीन ली। संक्षेप में कहा जाय तो उस रात ने पुलिस का सबसे गंदा आचरण देखा। पुरुष पुलिसकर्मी बेकाबू हो कर महिलाओं की लज्जाभंग, लूटपाट, उनसे मारपीट, गाली गलौच और दुष्कर्म पर उतर आये। यह सब उस दिन हुआ जिस दिन अहिंसा के प्रतीक महात्मा गांधी का जन्मदिन था।’’
जांच के दौरान सीबीआई को अपने बयान में छोटे रैंक के 6 पुलिसकर्मियों ने बताया कि उन्होंने रैली वालों पर कोई फायरिंग नहीं की मगर उच्च अधिकारियों ने उन पर रैली वालों पर गोलियां चलाने की बात स्वीकार करने के लिये दबाव डाला। इन पुलिस कर्मियों में हेड कांस्टेबल नं0-158 सीपी सतीश चन्द्र, नं0-715 सीपी चमन त्यागी, एवं कांस्टेबल महाराज सिंह शामिल थे। एक कांस्टेबल नं0-90 एपी सुभाष चन्द्र ने सीबीआइ को बताया कि उसे तो आटोमेटिक हथियार चलाना भी नहीं आता है। वह सीओ मण्डी जगदीश सिंह के साथ सिक्यौरिटी ड्यूटी पर था और डीएसपी जगदीश सिंह ने ही उसकी स्टेनगन से फायरिंग की थी। फायरिंग में 5 लोग मारे गये थे और 23 अन्य घायल हो गये थे। कांस्टेबल सुभाष चन्द्र ने आगे बताया कि मुजफ्फरनगर के एस.पी राजेन्द्र पाल सिंह ने एक कांस्टेबल से रायफल छीन कर फायरिंग की। उसने डीएसपी गीता प्रसाद नैनवाल एवं एडिशनल एस.पी के गनर को आटोमेटिक हथियार से भीड़ पर फायरिंग करते देखा।
इस वीभत्स काण्ड की तह तक जाने के लिये सीबीआइ द्वारा मुजफ्फरनगर पुलिस के रिकार्ड की जांच की गयी तो जिला पुलिस की जनरल डायरी इश्यू रजिस्टर में ओवर राइटिंग पायी गयी थी। पुलिस सटेशनों को जारी जनरल डायरी संख्या 7 को बदल दिया गया था। मुजफ्फरनगर पुलिस लाइन की जनरल डायरी का पेज संख्या 479571 गायब मिला। डुप्लीकेट जनरल डायरी के 200 पृष्ठों में से केवल 199 पृष्ठ ही डायरी में पाये गये। रामपुर तिराहे पर महिला पुलिस की तैनाती के सम्बन्ध में नयी मण्डी थाने की जनरल डायरी में ओवर राइटिंग मिली। 3 अक्टूवर 1994 को जिला कण्ट्रोल रूम में दर्ज संदेश में कहा गया था कि सभी जनरल डायरियां एस.पी मुजफ्फरनगर के गोपन कार्यालय को तत्काल भेज दी जांय। जांच में पुलिस अधीक्षक राजेन्द्र पाल सिंह के रीडर सब इंस्पेक्टर इन्दुभूषण नौटियाल द्वारा आरोपियों को बचाने के लिये रिकार्ड में हेराफेरी किये जाने की बात भी सामने आयी।
केन्द्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) द्वारा इलाहाबाद हाई कोर्ट में दाखिल की गयी दूसरी रिपोर्ट के पृष्ठ 2 और 3 में दिये गये विवरण एवं उत्तर प्रदेश सरकार के एडवोकेट द्वारा हाइकोर्ट में जमा रिपोर्टों के अनुसार 18 अगस्त 1994 से लेकर 9 दिसम्बर 1994 तक चमोली, टिहरी गढ़वाल, उत्तरकाशी, अल्मोड़ा, देहरादून, नैनीताल, पिथौरागढ़ एवं पौड़ी गढ़वाल जिलों में कुल 20,522 गिरफ्तारियां की गयीं जिनमें से 19,143 लोगों को उसी दिन रिहा कर दिया गया जबकि 1,379 को जेलों में भेजा गया। इनमें से भी 398 लोगों को पहाड़ों से बहुत दूर बरेली, गोरखपुर, आजमगढ़, फतेहगढ़, मैनपुरी, जालौन, बांदा, गाजीपुर बलिया और उन्नाव की जेलों में भेजा गया। हाइकोर्ट ने पहाड़ के इन आन्दोलनकारियों को उनकी गिरफ्तारी के स्थान से 300 से लेकर 800 किमी दूर तक की जेलों में भेजे जाने पर राज्य सरकार की नीयत पर भी सवाल उठाया।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 12 जनवरी 1995 के आदेशानुसार सीबीआइ ने विभिन्न वारदातों में 64 मामलों की विवेचना की थी जिसके पश्चात सीबीआई ने 43 मामलों में आरोप पत्र दाखिल किये. इन 43 मामलों में 3 मामलों में निर्णय हो चुका था. उनमें किसी को सजा नहीं हुयी थी. शेष 40 मामले सुनवाई के विभिन्न चरणों में थे। इन आरोपियों में डीएसपी गीता प्रसाद नैनवाल और सब इंस्पेक्टर इन्दुभूषण नौटियाल भी शामिल थे। नैनवाल पर एसपी राजेन्द्र पाल सिंह के साथ ही एक सिपाही की स्टेनगन छीन कर आन्दोलनकारियों पर गोलियां बरसाने का आरोप था और नौटियाल पर आरोपियों को बचाने के लिये पुलिस रिकार्ड में हेराफेरी का आरोप था। हैरानी का विषय यह है कि राज्य गठन के बाद गीता प्रसाद नैनवाल के रिटायर होने पर उन्हें पुलिस ट्रेनिंग के विशेषज्ञ के तौर पर उत्तराखण्ड पुलिस के मुख्यालय में पुनर्नियुक्ति दी गयी।
(आलेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं। इससे जनलेख प्रबंधन का कोई लेनादेना नहीं है।)