सरदार तरनजीत सिंह सिद्धू
समान नागरिक संहित यानी काॅमन सिविल कोड (यूसीसी) पर इन दिनों पूरे देश में बहस छिड़ी हुई है। इस मामले के बारे में कम जानकारी रखने वाले या फिर देश विरोधी शक्तियों से संचालित होने वाले इस मामले को तूल दे रहे हैं। इसे अल्पसंख्यकों के खिलाफ साजिस बताने की कोशिश कर रहे हैं। कुछ मुसलमानों को भड़का रहे हैं तो कुछ सिख व आदिवासियों को समान नागरिक संहिता की गलत व्याख्या कर रहे हैं। वास्तविकता तो यह है कि इस संहिता के बारे में भ्रम फैलाने की योजना पर काम करने वाले बड़ी तेजी से भारतीय लोकतंत्र व संविधान के प्रति आम लोगों में विश्वास पैदा करने की साजिस रच रहे हैं।
इसलिए समान नागरिक संहिता (यूसीसी) को समझना जरूरी है। दरअसल, समान नागरिक संहिता का लक्ष्य, देश की जनता के लिए एक समान कानूनी ढांचा लागू करना है, चाहे उनका धर्म कुछ भी हो। अभी, विवाह, तलाक और उत्तराधिकार सहित कई मामले धर्म-आधारित व्यक्तिगत कानूनों द्वारा संचालित किए जा रहे हैं, जो एक देश के लिए बेहद खतरनाक है। बता दें कि यूसीसी कोई आज का विषय नहीं है। इसके बारे में भारतीय संविधान का निर्माण करने वाले देशभक्तों ने अपने गहरे चिंतन और चर्चा के बाद एक संकल्पना प्रस्तुत की थी। भारतीय संविधान सभा की बहस से इस जानकारी को पुष्ट किया जा सकता है। डॉ. बीआर अंबेडकर सहित संविधान सभा के कुछ सदस्य मानते थे कि लैंगिक समानता, धर्मनिरपेक्षता और राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देने के लिए यूसीसी आवश्यक है। एक सिख न्यायाधीश, न्यायमूर्ति कुलदीप सिंह (सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश) ने यूसीसी का जोरदार समर्थन किया था। उन्होंने 1995 के सरला मुद्गल मामले में संसद द्वारा एक समान नागरिक संहिता बनाने की आवश्यकता दोहराई, जो वैचारिक विरोधाभासों को दूर करके राष्ट्रीय एकता को मजबूत करे।
इधर के दिनों में आनंद कारज विवाह अधिनियम में यूसीसी को अवरोधक के रूप में प्रचारित किया जा रहा है। सरकार के द्वारा यह साफ किया जा चुका है कि यूसीसी में 1909 के आनंद विवाह अधिनियम में कोई बदलाव करने का प्रस्ताव नहीं है। आनंद विवाह अधिनियम हालांकि 1909 में बनाया गया था (2012 के संशोधन के बाद इसका नाम बदलकर आनंद करज विवाह अधिनियम कर दिया गया है) लेकिन इसमें तलाक के मुद्दों को नियंत्रित करने के लिए कोई नियम नहीं रखा गया है। विरासत और गोद लेना आदि मामलों में भी सरकार का दृष्टिकोण साफ है। यूसीसी का उद्देश्य नागरिक मामलों में सिख समुदाय का सुविधा प्रदान करना और गोद लेने के कानून, विरासत के कानून, तलाक के कानून सहित कुछ कानूनों को जोड़कर आनंद विवाह अधिनियम को और प्रभावशाली बनाना है। फिलहाल जो नियम हैं वह इन मामलों में मौन साधे हुए है। यूसीसी में विवाह के पंजीकरण को अनिवार्य बनाने का भी प्रस्ताव किया है, जिसका प्रावधान आनंद विवाह अधिनियम के तहत पहले से ही मौजूद है। सरकार ने साफ कर दिया है कि यूसीसी सिख विवाह के रीति-रिवाजों को प्रभावित नहीं करेगा और यूसीसी के तहत भी वही धार्मिक विधान बरकरार रहेंगे। यहां एक बात बता देना जरूरी है कि फिलहाल आनंद विवाह अधिनियम खुद पंजाब में ही लागू नहीं है, जहां सबसे ज्यादा सिख पंथ की आबादी निवास करती हे।
सिख धार्मिक संस्था एसजीपीसी और बादल गुट वाला शिरोमणि अकाली दल यूसीसी के खिलाफ काफी हंगामा कर रहे हैं कि इससे सिख रीति-रिवाजों और पहचान पर असर पड़ेगा। इस संबंध में, यहां यह उल्लेख किया जाना चाहिए कि एसजीपीसी के पूर्व अध्यक्ष और अकाली ने ता सरदार गुरचरण सिंह टोहरा, जो 1972-2004 तक राज्यसभा और लोकसभा के सांसद रहे, ने कभी भी आनंद विवाह अधिनियम में कोई संशोधन करने की बात नहीं की। यही नहीं एक सौ साल पुरानी सिखी की प्रतिनिधि संगठन श्री शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने तलाक, विरासत आदि के प्रावधानों को जोड़ने के लिए आनंद विवाह अधिनियम में आवश्यक संशोधनों पर कभी चर्चा आयोजित नहीं की। इन बिंदुओं को देखते हुए, ऐसा लगता है कि एसजीपीसी और अकाली दल, यूसीसी का विरोध केवल विरोध के लिए कर रहे हैं, जबकि उनके पास इस विरोध के समर्थन में कोई विश्वसनीय तर्क नहीं है।
यूसीसी की जमकर मुखालफत करने वाली संस्था एसजीपीसी के ठीक डीएसजीएमसी ने एक बयान जारी कर कहा है कि उन्हें इस प्रकार के कानून से कोई एतराज नहीं है। हालांकि अपने बयान में डीएसजीएमसी ने यह भी जोड़ा है कि इसके लागू कनने से पहले मामले के मुकम्मल अध्ययन के लिए जानकारों की एक समिति बनायी जानी चाहिए।
अब यह भी जान लेना जरूरी है कि आखिर कुछ सिखों को इससे ऐतराज क्यों है? इसका सीधा जवाब है कि इस मामले का विरोध वे कर रहे हैं, जिनकी राजनीति पंथ के आधार पर चल रही है। इन दिनों उनके भाग्य गर्दिश में हैं। इस मुद्दे को उछालकर वे अपनी खोयी जमीन फिर से हासिल करना चाहते हैं। वैसे यहां यह भी बता दें कि संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस जैसे देशों में जहां सिखों की संख्या काफी अधिक है, वहां पहले से ही समान नागरिक संहिता लागू है और इसके बावजूद सिख अपनी विशिष्ट पहचान बना कर वहां रखे हुए हैं।
कुल मिलाकर यूसीसी के तहत धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार, सिखों की विशिष्ट पहचान, सिख विवाह के रीति-रिवाज और खालसा के पंच ककार बरकरार रहेंगे। उसे कोई खत्म कर ही नहीं सकता है। यूसीसी का उद्देश्य विभाजनकारी, प्रतिगामी और दमनकारी रीति-रिवाजों को खारिज करना है और सार्वभौमिक सत्य, समानता और न्याय के सिखी सिद्धांतों को सच्चे अर्थों में स्थापित करना है।
(आलेख में व्यक्ति लेखक के विचार निजी हैं। इससे जनलेख प्रबंधन का कोई लेनादेना नहीं है।)