आनंद कुमार अनंत
पिछले कुछ वर्षों में रसाहार चिकित्सा पद्धति अधिकाधिक लोकप्रिय होती जा रही है। दिन-प्रतिदिन की सामान्य बीमारियों से लेकर असाध्य रोगों से मुक्ति प्राप्त करके न केवल निरापद जीवन जीने के लिए बल्कि कायाकल्प करने की दृष्टि से भी रस चिकित्सा का कोई विकल्प नहीं है। जहां अन्य आधुनिक चिकित्सा पद्धतियां असफल सिद्ध हुई हों, वहां भी रसाहार एवं कच्चे आहार से उल्लेखनीय लाभ होते हैं।
आधुनिक उपचार शास्त्रों ने भी वर्षों तक उपयोग करने के बाद कई जहरीली दवाओं का अब त्याग कर दिया है। आज उसके विकल्प के रूप में अधिकाधिक चिकित्सक एवं रोगी औषधि रहित उपचार की ओर उन्मुख होते जा रहे हैं। यूं तो अंकुरित अन्न, उबाले हुए पदार्थ, कच्ची सब्जियां, फल और उनका ताजा रस शरीर-स्वास्थ्य के लिए योग्य भोज्य पदार्थ हैं परन्तु इनमें भी रसाहार या रसपान को अमृततुल्य माना जाता है।
रसाहार के माध्यम से असाध्य एवं कष्टकारी बीमारियों का भी उपचार सफलतापूर्वक किया जा सकता है। रसाहार सेवन काल में धैर्य व संयम का बहुत ही महत्व है। धैर्य एवं संयम के साथ रसाहार का सेवन कर निम्नांकित बीमारियों को दूर किया जा सकता है।
मधुमेह पर फनसी रस का प्रयोग
फनसी का मूल वतन अमरीका माना जाता है। इसकी फलियों का उपयोग सब्जी के रूप में किया जाता है। इसकी फलियां चार-पांच इंच लम्बी होती हैं। अंग्रेजी में इसे ‘फ्रेंच बींस‘ के नाम से जाना जाता है। आयुर्वेद के अनुसार फनसी को गुरू, स्निग्ध, शीतल, रोचक और पित्तनाशक माना गया है। फनसी के रस को रक्तहीनता, यौन दुर्बलता, गाउट आदि अनेक रोगों पर सफलतापूर्वक प्रयोग किया गया है। मधुमेह (डायबिटिज) के रोगियों के लिए फनसी का रस अमृततुल्य होता है।
आहार-विहार पर नियंत्राण कर फनसी का रस 275 मि. ली. रोज पीते रहने से रक्तशर्करा की मात्रा में अप्रत्याशित कमी आती है। प्रतिदिन खाली पेट प्रातः काल इसके रस का सेवन करना चाहिए।
यौन दुर्बलता में फनसी का रस 50 मि. ली., चुकन्दर का रस 50 मि. ली. एवं गाजर का रस 50 मि. ली. मिलाकर प्रतिदिन सुबह-शाम पीना चाहिए।
फनसी, जामुन, पत्तागोभी व आंवला के रस को मिलाकर प्रतिदिन 50 मि. ली. की मात्रा में रात को सोते समय पीने से हस्तमैथुनजन्य दोष व कमजोरी का नाश होता है।
आंतों का उपदंश
पाचक रसों में हाइड्रोक्लोरिक एसिड के अत्यधिक स्राव के कारण अंतस्त्वचा का क्षय होने से आंतों में उपदंश (घाव) हो जाते हैं। इस अतिस्राव का कारण अधिकतर मानसिक तनाव या संताप होता है।
आंतों के उपदंश भरने में पत्ता गोभी का रस अकसीर सिद्ध हुआ है। प्रतिदिन 400-500 मि. ली. गोभी का रस पियें। उसके बाद ककड़ी, पपीता और आलू का रस भी पीना हितकर होता है।
एसिडिटी
पत्तागोभी व गाजर का मिश्रित रस पीने के बाद ककड़ी, आलू, सेब, मौसंबी और तरबूज का रस पीने से एसिडिटी (गैस) में फायदा होता है।
कृमि
एक गिलास गर्म जल में एक चम्मच प्याज और लहसुन का रस कुछ दिनों तक पीते रहने से कृमि का नाश होता है। कुम्हड़ा और अनन्नास का रस भी उपयोगी होता है। इसके बाद मेथी व पुदीने का रस तथा पपीते का रस भी पिया जा सकता है।
खाज-खुजली
गाजर पालक का रस और मिश्रभाजी का रस ग्रहण करने, आलू, पपीता या तरबूज का रस पीने से खुजली मिट जाती है। उसके बाद आलू का रस खाज वाली त्वचा पर चुपड़ें और रगड़ें।
खांसी
प्रातः काल गर्म पानी में शहद के साथ नींबू का रस मिलाकर पियें। एक गिलास गाजर के रस में एक-एक चम्मच लहसुन, प्याज व तुलसी का रस भी ग्रहण करते रहें।
गठिया (गाउट)
गाउट के रोगी को फनसी और चेरी का रस विशेषरूप से पीना चाहिए। गर्म पानी में शहद के साथ नींबू का रस मिलाकर या गर्म पानी में लहसुन व प्याज का एक-एक चम्मच मिलाकर पीने से लाभ होता है।
चर्मरोग
आलू, ककड़ी, हल्दी, तरबूज, अमरूद, सेब, मौसम्बी तथा पपीते का रस चर्मरोग के लिए फायदेमंद होता है। पपीते या आलू के रस का उपयोग त्वचा पर लगाने के लिए भी किया जा सकता है। गाजर-पालक का रस मिलाकर पीना उत्तम माना जाता है।
रंग में निखार
टमाटर और कच्ची हल्दी के रस, सेब के मिश्रित रस, अमरूद व पपीते का रस नियमित रूप से पीते हुए ककड़ी के रस से मालिश करने पर त्वचा के रंग में निखार आता है।
संक्रामक रोग
एक गिलास कुनकुने पानी में एक नींबू का रस और एक चम्मच शहद डालकर खाली पेट पिएं। गाजर का रस चुकन्दर के रस के साथ मिलाकर पीने से संक्रामक रोगों से बचा जा सकता हैं
यौनशक्तिवर्द्धन हेतु
कामोत्तेजना बढ़ाने के लिए सदियों से विविध रसों का उपयोग होता आया है। पालक की भाजी, गाजर, खरबूजा, तरबूज, कच्चा आम और जरदालू आदि फलों में स्थित समृद्ध प्रजीवक ‘ए‘ कोलेस्ट्रोल प्रकार की चरबी को सक्रिय हार्मोन्स में बदलने में सहायक होता है।
आलू, केला और कद्दू में स्थित समृद्ध प्रजीवक ‘बी‘ यौन हार्मोन्स उत्पन्न करने में हिस्सा लेते हैं। केले में मानसिक तनाव कम करने वाला तत्व ‘पोटेशियम‘ प्रचुर मात्रा में होता है जिससे हार्मोन्स का स्राव योग्य ढंग से होता है।
यौन जीवन के नियमन के लिए तथा उसे दीर्घकाल तक बनाए रखने के लिए प्रोस्टेट गं्रथि का स्वास्थ्य महत्वपूर्ण होता है। प्रोस्टेट गं्रथि को कार्यरत रखने के लिए जिंक का क्षार उपयोगी है। यह क्षार फनसी, ककड़ी, प्याज, पालक, गाजर और गोभी के रस में सरलता से मिल जाती है। फलों, साग-भाजियों तथा उनके रसों के नियमित सेवन से यौन-शक्ति प्राप्त होती है।
(स्वास्थ्य दर्पण)