अधिक से अधिक मताधिकार का प्रयोग कर लोकतंत्र को मजबूत बनाने की करें कोशिश

अधिक से अधिक मताधिकार का प्रयोग कर लोकतंत्र को मजबूत बनाने की करें कोशिश

भारत की वैविध्यपूर्ण सांस्कृतिक जटिलता इसकी विशेषताओं में से एक है। यह देश कभी पांथिक एकरूपता का शिकार नहीं हुआ। बहुपांथिक परंपरा इस देश का आत्मतत्व है। यही कारण है कि भारत में दुनिया के तमाम पांथिक फिरकों के अनुयायी मिल जाते हैं। भारत की 1.4 बिलियन आबादी में से लगभग 14 प्रतिशत की आबादी मुसलमानों की है। यह कौम किसी-किसी प्रांतों में तो अब बहुसंख्यक हो चुका है। भारत के मुसलमान एक विकसित सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य में आगे बढ़ रहे हैं। विभिन्न आर्थिक और शैक्षिक चुनौतियों का सामना करने के बावजूद, इस समुदाय के कई लोग भारत की राजनीतिक पहचान बन चुके हैं। 1949 में तैयार भारतीय संविधान अपने सभी नागरिकों के लिए समानता और न्याय का वादा करता है। भारत का संविधान केवल बहुसंख्यक हिन्दुओं के लिए नहीं अपितु सभी प्रकार के अल्पसंख्यकों के लिए भी कई प्रकार की मौलिक अधिकारों की गारंटी देता है। यह शिकायतों को संबोधित करने के लिए एक मंच और एक ढांचा प्रदान करता है, जिसके भीतर वे अपने अधिकारों का दावा कर सकते हैं और व्यापक समाज में योगदान दे सकते हैं।

जिस प्रकार दुनिया पांथिक और सांप्रदायिक आधार पर विभाजित हो रही है और दुनिया के कई देशों में इसको लेकर गृहयुद्ध छिड़ा हुआ है, वैसे में भारत के मुसलमान चुनावों में मतदान करने से लेकर नागरिक समाज में शामिल होने तक लोकतांत्रिक प्रक्रिया में सक्रिय रूप से भाग लेकर भारतीय लोकतंत्र को उत्तरोत्तर मजबूत बना रहे हैं। लोकतंत्र में भारतीय मुसलमानों के विश्वास का एक कारण राजनीतिक प्रक्रिया में उनकी भागीदारी भी है। भारतीय मुसलमान ऐतिहासिक रूप से राजनीति में सक्रिय रहे हैं। इस समाज ने ऐसे नेताओं को जन्म दिया है जिन्होंने स्थानीय और राष्ट्रीय स्तर पर नेतृत्व प्रदान किया है।

फिलहाल सरकार में मुस्लिम प्रतिनिधित्व की पर्याप्तता को लेकर बहस जारी है, लेकिन समुदाय-विशिष्ट मुद्दों को संबोधित करने के लिए राजनीतिक भागीदारी एक शक्तिशाली उपकरण बना हुई है। हाल के वर्षों में, कई मुस्लिम-नेतृत्व वाले राजनीतिक आंदोलन और दल उभरे हैं, जो अधिक प्रतिनिधित्व की वकालत की। हालांकि, इन आन्दोलनों को कभी-कभी कई प्रकार के बाधाओं का सामना करना पड़ा लेकिन यह भारतीय लोकतंत्र को मजबूत बनाने भी भी उतनी ही महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। इससे मुस्लिम समुदाय में भारतीय लोकतंत्र के प्रति विश्वास भी बढ़ा है। भारत के चुनाव आयोग द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के अनुसरा 2024 के संसदीय आम चुनाव में अकेले गुजरात की 26 सीटों में से 25 पर होने चुनाव के लिए कुल 35 मुस्लिम उम्मीदवार मैदान में हैं। पूरे देश में तो अलग ही माहौल है।

लोकतंत्र में अपने विश्वास के बावजूद, भारतीय मुसलमानों को अक्सर महत्वपूर्ण आर्थिक और शैक्षिक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। सच्चर समिति की रिपोर्ट (2006) ने इस बात पर प्रकाश डाला कि भारत में मुसलमान अन्य समुदायों की तुलना में शिक्षा, रोजगार और आर्थिक स्थिति में पिछड़े हुए हैं। कमोबेस यह स्थिति आज भी बनी हुई है। राष्ट्रीय औसत की तुलना में मुसलमानों में गरीबी की दर अधिक है और शिक्षा का स्तर कम है। इस असमानता के कई कारक हो सकते हैं। जिसमें गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक सीमित पहुँच, रोजगार में भेदभाव और सार्वजनिक क्षेत्र की नौकरियों में कम प्रतिनिधित्व शामिल है। इन मुद्दों को संबोधित करने के लिए लक्षित नीतियों और समावेशी विकास के प्रति प्रतिबद्धता की आवश्यकता है, जिसकी वकालत कुछ राजनीतिक नेता और नागरिक संगठन करते रहे हैं। इन चुनौतियों के जवाब में विभिन्न मुस्लिम-नेतृत्व वाली पहल और नागरिक संगठन, समुदाय के उत्थान के लिए काम भी कर रहे हैं। मुस्लिम संगठनों द्वारा संचालित शैक्षणिक संस्थानों का उद्देश्य वंचित छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करना है। इसी तरह, गैर सरकारी संगठन और जमीनी स्तर के आंदोलन मुस्लिम समुदाय के भीतर गरीबी, स्वास्थ्य और लैंगिक समानता जैसे मुद्दों काम कर रहे हैं। ये प्रयास प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करने में भारतीय मुसलमानों की लचीलापन और अनुकूलनशीलता का उदाहरण है। वे न्याय और समानता के लोकतांत्रिक सिद्धांतों के प्रति समुदाय की प्रतिबद्धता को भी उजागर करते हैं।

मुस्लिम समुदाय में अभी भी कई चुनौतियाँ बनी हुई हैं। भारतीय मुसलमानों के बीच समग्र भावना आशावाद की ओर झुकी हुई है। प्रतिनिधित्व और न्याय के अपने वादे के साथ लोकतंत्र एक मानदंड बना हुआ है। अधिक समानता और अवसर के लिए चल रहा संघर्ष एक व्यापक आख्यान का हिस्सा है जो भारत के मुस्लिम समुदाय की ताकत और लचीलेपन को रेखांकित करता है। अंततः, लोकतांत्रिक ढांचे के भीतर भारतीय मुसलमानों का भविष्य सुरक्षित दिख रहा है। भारत का लांकतंत्र देश के सभी नागरिकों के लिए अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। देश में एक समावेशी समाज का निर्माण कर रहा है। ऐसा तभी तक संभव है जब तक भारत में लोकतंत्र जड़े मजबूत है। यदि यह हिल जाती है तो सब के लिए खतरनाक होगा। इसलिए सभी प्रकार के फंडामेंटल चरमपंथ को किनारे कर लोकतंत्र को मजबूत करने की कोशिश होनी चाहिए। इस कोशिश का पहला चरण मताधिकार का प्रयोग है, जिससे देश की सरकार बनती है। सुरक्षित भविष्य के लिए मताधिकार का उपयोग बेहद जरूरी है। इसलिए भारतीय मुसलमानों को भी लोकतंत्र में विश्वास के साथ अधिक से अधिक मताधिकार का प्रयोग करना चाहिए।

(आलेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं। इससे हमारे प्रबंधन का कोई सरोकार नहीं है।)

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