हसन जमालपुरी
मुस्लिम ब्रदरहुड (एमबी) से भारत के अधिकतर लोग वाकफ नहीं होंगे लेकिन मिस्र सहित मध्य-पूर्व के देशों में यह संगठन अपना जबर्दस्त प्रभाव रखता है। यह एक वैचारिक चरमपंथी इस्लामिक संगठन है। इसे यदि इस्लामिक वैचारिक चरमपंथी आन्दोलन कहें तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। यह संगठन इतना प्रभावशाली और खतरनाक है, जिसका अंदाजा लगा पाना बेहद कठिन है। मुस्लिम ब्रदरहुड के आर्थिक स्रोत, सांगठनिक स्वरूप और आॅपरेशनल सेटप एकदम-से गुप्त है। दुनिया के बड़े से बड़े खुफिया एजेंशी के पास इसके बारे में मुकम्मल जानकारी नहीं है। हालांकि प्रत्यक्ष तो नहीं लेकिन परोक्ष तौर पर जमात-ए-इस्लामी हिन्द और पाॅपुलर फ्रंट आॅफ इंडिया वर्क स्आइल से यह साफ लगता है कि इसका जुड़ाव कहीं न कहीं द मुस्लिम ब्रदरहुड के साथ है।
चलिए सबसे पहले हम आपको इसके आर्थिक स्रोतों पर थोड़ा बताते हैं। मसलन, इस संगठन का एक मजबूत अंतरराष्ट्रीय आर्थिक संरचना है, जो संगठन की गतिविधियों को संचालित करने में मदद करती है। यह संगठन इस्लाम के चरमपंथी में विश्वास करता है। बहुधर्मी, बहु पांथिक, बहुसांस्कृतिक चिंतन का यह भयंकर विरोधी है। क्षेत्रीय भू-सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के स्ािान पर यह इस्लामिक राष्ट्रवाद को प्रोत्साहित करता है। ओटोमन साम्राज्य और खिलाफत के चिंतन को यह सर्वोपरि मानता है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसका एक मजबूत आर्थिक-ढ़ंचा है। बेहद गोपनीय तरीके से काम करने के कारण इसकी जड़े विभिन्न देशों में फेली है। इसका आर्थिक स्रोत पूरी तरह गोपनीय तो है ही सुरक्षित भी है। यदि इसके आर्थिक स्रोतों पर प्रतिबंध लगे तो यह अपनी गतिविधि को संचालित करने में असफल होगा लेकिन इसके लिए वैश्विक चरमपंथ विरोधी माहौल बनाने की जरूरत है। किसी भी संगठन को अपने विचारों और महत्वाकांक्षाओं को जीवित रखने और पूरी तरह से निष्पादित करने के लिए एक आंदोलन का रूप देना जरूरी होता है। एक वित्तीय बुनियादी ढांचे की जरूरत होती है। इसके पास वह है और यह उन मुसलमानों के पास से आता है जो धर्म प्रचाार के नाम पर बिना कुछ समझे दान देते हैं। चालाकी से इस संगठन के नेता इसका बड़ा हिस्सा अपने पास ले आने में सफल होते हैं। मिस्र में आंदोलन की शुरुआत से, इसके संस्थापकों और नेताओं ने वैश्विक वित्तीय बुनियादी ढांचे की स्थापना के लिए काम किया है। आर्थिक संरचना की स्थापना, सदस्यता, करों और जकात (एक प्रकार का धार्मिक दान) के संग्रह पर की गई थी, जो इस्लामी कानून द्वारा अनिवार्य है। जैसे-जैसे आंदोलन विकसित हुआ और फैलता गया, मुस्लिम ब्रदरहुड का एक बुनियादी ढांचा बनाया गया और संगठन के लिए धन का एक महत्वपूर्ण स्रोत भी बन गया। इसके अलावा, हर मस्जिद जो बनाई गई थी, जकात के पैसे के लिए एक संग्रह केंद्र के रूप में काम करने लगी। यह अनवरत और निरंत जारी है। हर इस्लामी केंद्र एक संग्रह केंद्र के रूप में कार्य कर रहा है। इस्लाम में विश्वास रखने वाले प्रत्येक व्यापारी धर्मार्थ निधि में योगदान देते रहे हैं।
मुस्लिम ब्रदरहुड के विध्वंशक कार्रवाई से दुनिया वाकफ है। वैसे इसकी सुरूआत मिस्र में हुई थी लेकिन अब यह दुनिया भर में फेल चुका है। चुनांचे, 1950 के दशक में पुलिस कार्रवाई के बाद, मुस्लिम ब्रदरहुड ने कई अरब देशों, विशेष रूप से खाड़ी क्षेत्र में प्रवेश किया। एमबी ने यूरोप में भी अपना आधार बना लिया और नियामक एजेंसियों की स्थापना की, जो शुरू में महाद्वीप में फैलने से पहले मुस्लिम समुदायों, जैसे मस्जिद के लिए पूजा का समन्वय करती थी। हालांकि, बाद में यह समूह सार्वजनिक क्षेत्र विशेष रूप से यूरोपीय देशों में उभरना शुरू हुआ, 1990 के दशक की शुरुआत में, जब कई इस्लामी समूहों को राजनीतिक लक्ष्यों के साथ बनाया गया था जो उनकी घोषित सांस्कृतिक और सामाजिक जिम्मेदारियों से परे थे। उनमें से कुछ ने विशुद्ध रूप से व्यावसायिक हितों का पीछा करना शुरू कर दिया, जो आज विशेष रूप से हलाल व्यापार के रूप में जाना जाता है। इसके परिणामस्वरूप स्थानीय समूह के सहयोगियों का राजस्व आसमान छू गया।
माना जाता है कि मुस्लिम ब्रदरहुड अपने क्षद्म मानवतावादी प्रयासों के माध्यम से इस्लामी समुदाय में पहले अपना प्रभाव बढ़ाया। इसके बाद यह अपने असली रूप में प्रस्तुत हो गया। इस संगठन ने यूरोप में आतंकी फंडिंग में निरंतर और महत्वपूर्ण भूमिका निभाना भी प्रारंभ किया। सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण, वे बहुत सारे मानवीय कार्यों में संलग्न हो कर सहानुभूति प्राप्त किए फिर अपने क्षद्म रणनीति को सार्वजनिक कर दिए। यह जहां जाता है वहां यही करता है। पहले सामाजिक कार्यों को प्रदर्शित करके धन एकत्र करता है फिर उसी धन का उपयोग चरमपंथी गतिविधियों को संचालित करने में लगाता है। यूरोपीय देशों में आतंकवाद को प्रायोजित करने के लिए इस संगठन के नेताओं ने ऐसा ही किया। ऑस्ट्रिया ने पहले ही मुस्लिम ब्रदरहुड को देश से निकाल दिया है और जर्मनी भी इसका अनुसरण कर रहा है। फ्रांस भी मुस्लिम ब्रदरहुड से जुड़े लोगों पर कट्टरवाद और उग्रवाद फैलाने का आरोप लगाते हुए इसके खिलाफ कार्रवाई करने को विवस हो रहा है।
अब थोड़ा भारत पर भी नजर डालते हैं। पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) और जमात-ए-इस्लामी हिंद (जेएलएच) जैसे देशी संगठन, मुस्लिम ब्रदरहुड के रास्ते पर चल रहे हैं। ये दोनों खुद को समाज सेवा के पर्दे के पीछे छुपाते हैं, हालांकि उनके असली इरादे वही हैं जो मुस्लिम ब्रदरहुड के हैं। हिंसक गतिविधियों में शामिल होने के कारण पीएफआई का असली चेहरा अब सामने आ गया है। केरल, गुजरात, दिल्ली बिहार और झारखंड में यह खूंखार रूप में प्रस्तुत हुए हैं। हालांकि, पीएफआई, सिमी जैसे चरमपंथी संगठनों से अपनी दूरी बनाए रखने की कोशिश करता रहा है। उसके साथ अपने सार्वजनिक संबंधों को नकारता रहा है लेकिन काम करने का तरीका इसका वही है। इससे साफ होता है कि सिमी के साथ इसका कोई न कोई संबंध जरूर है।
मुस्लिम ब्रदरहुड को सऊदी अरब और अन्य संबद्ध देशों के साथ-साथ यूरोपीय देशों से वित्तीय आरोपों का सामना करना पड़ा है। इन देशों ने ऑनलाइन लेनदेन के माध्यम से अपने नागरिकों से वित्त के बहिर्वाह को रोकने के लिए प्रयास तेज कर दिए हैं और मजबूत तंत्र विकसित कर रहे हैं। सऊदी अरब ने, विशेष रूप से, नकद के माध्यम से जकात के भुगतान पर रोक लगा दिया है। इसे मुस्लिम ब्रदरहुड जैसे संगठनों के लिए वित्तपोषण का सबसे बड़ा स्रोत माना जाता है। पीएफआई और जमात-ए-इस्लाम हिन्द को एमबी का भारतीय संस्करण कहा जा सकता है। इसलिए भारत में इसी तरह के कदमों का पालन करने की आवश्यकता है, जैसा मिस्र, मध्य पूर्व के देश, आस्ट्रेलिया एवं यूरोपीय देशों ने किया है।
(आलेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी है। इससे जनलेख प्रबंधन का कोई लेना-देना नहीं है।)