डॉ. हसन जमालपुरी
वक्फ बोर्ड के कामकाज में जवाबदेही और पारदर्शिता बढ़ाने के लक्ष्य के साथ वक्फ अधिनियम, 1995 में संशोधन के लिये, सरकार ने संसद में वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2024 पेश कर दिया है। इस संशोधन विधेयक में वक्फ बोर्ड की अनियंत्रित शक्ति को कम करने के लिये वक्फ अधिनियम, 1995 के कुछ प्रावधानों को हटाने की बात कही गयी है। दरअसल, वर्तमान में बोर्ड को बिना किसी जांच के किसी की भी संपत्ति को वक्फ घोषित करने की अनुमति देता है। इस संशोधन विधेयक को पेश करने के संदर्भ में सरकार का दावा है कि इससे वक़्फ़ बोर्ड के प्रबंधन में सुधार होगा एवं वक़्फ़ सम्पत्तियों के प्रबंधन में पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ेगी। यही नहीं इससे भ्रष्टाचार पर नियंत्रण प्राप्त किया जा सकेगा और अन्य अनियमितताओं पर भी अंकुश लग सकेगा। इससे वक्फ की संपत्ति का सदूपयोग हो पाएगा। इसस देश के कमजोर मुसलमानों का कल्याण सूनिश्चित किया जा सकेगा।
एनडीए सरकार के उपर्युक्त दलीलों और दावों के बावजूद विपक्ष, मुस्लिम समाज के उलेमा एवं मुस्लिम सांसदों के द्वारा इस प्रस्तावित विधेयक का पुरज़ोर विरोध किया जा रहा है। इस विधेयक का विरोध करने वालों के अपने तर्क हैं। विपक्ष का मानना है कि यह विधेयक धार्मिक स्वतंत्रता और वक़्फ़ संपत्तियों के प्रबंधन में हस्तक्षेप करता है। वे इसे समुदाय के अधिकारों पर सरकार का हस्तक्षेप मानते हैं। लोकसभा में सरकार और विपक्ष के बीच तीखी बहस के बाद बिल को जेपीसी को भेजने का फैसला किया गया। भारत में वक्फ कानून में संशोधन पर संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) चर्चा कर रही है। इसकी बैठकें भी हो रही हैं। जेपीसी ने जनता के सुझाव भी आमंत्रित किए हैं। वक्फ बोर्ड के वर्तमान अधिकार के समर्थन में मुस्लिम संगठन डिजिटल अभियान चलाए हुए हैं। वे जहां लाउडस्पीकर लेकर गली-गली घूम रहे हैं, वहीं क्यूआर कोड भी घरों पर चस्पा कर रहे हैं। इस विधेयक के संदर्भ में सत्ता पक्ष और विपक्ष के अपने अपने विरोधी तर्क हो सकते है लेकिन जिस मुस्लिम समुदाय के लिए ये विधेयक लाया जा रहा है उस वर्ग के भीतर भी इस विधेयक को लेकर अलग अलग प्रतिक्रियाएँ दिखायी दे रही है।
मुस्लिम समाज वैचारिकी के स्तर पर समतावादी समाज है लेकिन व्यावहारिक धरातल पर भारतीय समाज के बहुसंख्यक वर्ग (हिंदू समुदाय) से अंतःक्रिया के फलस्वरूप इस समुदाय में भी स्तरीकरण दिखायी देता है। भारतीय मुस्लिम समाज में जाति- आधारित विभाजन हिंदू जाति व्यवस्था से प्रभावित है। भारतीय उपमहाद्वीप में मुसलमानों के बीच जाति व्यवस्था का अस्तित्व है। इसमें तीन प्रमुख श्रेणियां देखी जाती हैं, अशरफ, ये उच्च वर्ग के मुसलमान माने जाते हैं, जिनका दावा है कि वे अरबी, तुर्की, फारसी या अफगान वंश से संबंधित हैं। अशरफ में सैय्यद, शेख, पठान, और मुगल जैसी उच्च जातियां आती हैं। अजलाफ, ये निम्न वर्ग के मुसलमान होते हैं, जिनका संबंध परिवर्तित हिंदुओं से माना जाता है। इस श्रेणी में कारीगर, किसान, और श्रमिक वर्ग के मुसलमान शामिल होते हैं। इसके बाद अरज़ल का स्थान आता हे। ये सबसे निम्न वर्ग के मुसलमान होते हैं, जो हिन्दू दलित और अछूत जातियों से परिवर्तित हुए हैं। मुस्लिम समाज में इन्हें समाज में सबसे निचले पायदान पर रखा गया है। अंतिम दो मुस्लिम वर्गों को मिलाकर ‘पसमंदा’ मुस्लिम समूह की रचना होती है।
पसमांदा मुस्लिम एक सामाजिक-आर्थिक और जातिगत श्रेणी है, जो भारतीय उपमहाद्वीप में मुस्लिम समाज के पिछड़े और वंचित वर्गों को संदर्भित करती है। पसमांदा शब्द फ़ारसी से लिया गया है, जिसका अर्थ है पीछे छोड़े गए या वंचित। यह उन मुसलमानों का प्रतिनिधित्व करता है, जो ऐतिहासिक रूप से सामाजिक, आधिक आर शाक्षक रूप सापछड़ हुए है। पसमादा मुस्लिम अधिकार . कार्यकर्ता डॉ फैयाज अहमद फैजी का कहना है कि प्रस्तावित बदलाव क्रांतिकारी हैं, इससे वक्फ की संपत्तियों के पंजीकरण, सत्यापन, लेनदेन में पारदर्शिता आएगी और इससे गरीब मुसलमानों को वक्फ के विवादों से मुक्ति मिलेगी। अभी हाल ही में डॉ. फैयाज अहमद फैजी ने अपने बयान में कहा कि अब तक मुसलमानों की हर संस्था पर अशराफ वर्ग यानी विदेशी मूल के मुसलमानों का एक छत्र कब्जा रहा है लेकिन नए वक्फ बोर्ड बिल के प्रस्तावों में महिलाओं के साथ-साथ पसमांदा वर्ग के मुसलमानों के लिए प्रावधान किए गए हैं। इससे महिलाओं-पसमांदा वर्ग के लोगों की बेहतरी की राह खुलेगी।
इसी प्रकार आल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज के राष्ट्रीय प्रवक्ता इरफान जामियावाला ने सरकार की ओर से प्रस्तावित वक्फ बिल संशोधन विधेयक का समर्थन किया है। उन्होंने कहा कि वक्फ बोर्ड पर 15 प्रतिशत आबादी वाले अशरफ (अग्रणी सुविधा संपन्न) मुसलमानों का कब्जा है। मौलाना सज़्ज़ाद नुमानी, मौलाना असद मदनी व उनकी कंपनी के लोग वक्फ संपत्तियों पर सांप की तरह कुंडली मारे बैठे हैं, जबकि 85 प्रतिशत पसमांदा (अति पिछड़ा व शोषित वंचित) मुसलमान यानी पसमंदा मुसलमान को वर्षों से मृग तृष्णा दिखाया जा रहा है। मुसलमान को वक्फ संपत्तियों से कोई लाभ नहीं मिल रह है उनका मानना है कि इस विधेयक का विरोध करने वाले मौलाना अरशद मदनी जैसे लोगों की दलीलें मतलबपरस्ती वाली हैं और मदनी ने पसमांदा मुसलमानों के हित में कभी कुछ नहीं किया। उलट इनका इस्तेमाल किया है। वक्फ संशोधन विधेयक लाकर सरकार कुछ अच्छा करना चाहती तो मदनी व उनके सहयोगी सरकार के खिलाफ अभियान चलाने में जुटे हुए हैं । इरफान जामियावाला व अन्य पसमंदा आंदोलन के लोगों का मानना है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने वक्फ से संबंधित संपत्तियों के संबंध में जो निर्णय लिया है, वह पसमांदा मुसलमानों के हित में है। इसलिए पसमन्दा मुसलमान इस संशोधन को खुलकर सपोर्ट कर रहा है।
वक़्फ़ बोर्ड संशोधन विधेयक को लेकर मुस्लिम समाज के अत्यंत पिछड़े वर्ग को उम्मीद की किरण दिखाई देती है। वक़्फ़ की संकल्पना जिस नेक इरादे के साथ की गयी उसमें समय के साथ तमाम बुराइयाँ घर कर गयी। वक़्फ़ के आड़ में कई जगहों पर भू- माफिया पैदा हो गये जिन्होंने कृब्रिस्तानों पर क़ब्ज़ा कर लिया और सरकार से मिलने वाले हर लाभ का ख़ुद फ़ायदा उठाया। भू-माफियाओं ने वक़्फ़ के ज़मीन को निजी संपत्ति बनाकर बेच डाला और नाममात्र के भाव में लीज कराकर बड़े बड़े शॉपिंग कॉम्प्लेक्स बनाकर मोटा किराया वसूला जा रहा है। इस संशोधन विधेयक के माध्यम से सरकार के द्वारा वक़्फ़ बोर्ड में यथोचित बदलाव का दावा किया जा रहा जिसको लेकर पसमंदा समाज बहुत आशान्वित है। इस विधेयक के संदर्भ में जो भी संशय थे उनको दूर करने के लिए संयुक्त संसदीय समिति इस विधेयक से जुड़े सभी हितधारकों से संवाद स्थापित कर रही है। इस संबंध में यही उम्मीद की जा सकती है कि पर्याप्त संवाद और चर्चा के पश्चात ही इस विधेयक को क़ानून में परिवर्तित करने का कार्य सरकार के द्वारा हो ।
(आलेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं। इससे हमारे प्रबंधन का कोई वैचारिक सरोकार नहीं है।)