रजनी राणा चैधरी
अभी हाल ही ने देश की सर्वोच्च न्यायालय ने एक ऐसा फैसला सुनाया जिससे मुसलमानों का भारतीय सविधान और न्याय प्रणाली में विश्वास और प्रगाढ़ हो गया है। दरअसल, शिया वक्फ बोर्ड के निवर्तमान प्रधान, वसीम रिजवी साहब के द्वारा कोर्ट में एक याचिका दाखिल की गयी थी। दाखिल जनहित याचिका में रिजवी साहब ने माननीय न्यायालय से यह निवेदन किया था कि देश की एकता एवं अखंडता के लिए इस्लाम के पवित्र ग्रंथ कुरान में दर्ज उन 26 आयतों को अमान्य घोषित किया जाए जिससे सामाजिक सौहार्द बिगड़ता है। इस याचिका के बाद देश ही नहीं पूरी दुनिया में इस्लाम व कुरान पुनः एक बार चर्चा के केन्द्र में आ गए। अपनी याचिका में वसीम रिजवी ने दावा किया है कि वर्तमान समय में कुरान की 26 आदतों को अयोग्य घोषित किया जाए।
रिजवी साहब ने सर्वोच्च न्यायालय से यह भी अर्ज किया कि वह इन आयतों को असंवैधानिक व पुरानी घोषित करें। रिजवी द्वारा दाखिल याचिका ने लोगों का इस्लाम के प्रति उनके डर को उजागर कर दिया, जिसने सभी भारतीय मुसलमानों को आतंकवाद के दायरे में ला खड़ा किया मानो सभी मुसलमानों को गैर मुस्लिमों को मारने के लिए पोषित किया गया हो। रिजवी ने अपनी याचिका में आगे इन आयतों को भारत की अखंडता व प्रभुता के लिए खतरे का स्रोत बताया। रिजवी की इस याचिका की प्रतिक्रिया के तौर पर सभी वर्गों के भारतीय मुसलमानों ने उसकी आलोचना की तथा उसके खिलाफ विरोध प्रदर्शन भी किए। यही नहीं कई संगठनों के सरपरस्तों ने भारत के सर्वोच्च न्यायालय से प्रार्थना करते हुए कहा कि इस याचिका को मंजूर न किया जाए व इसे तुरंत निरस्त किया जाए।
जिस प्रकार रिजवी ने कुरान की इन आयतों की व्याख्या की, ठीक उसी प्रकार पूर्व में पश्चिम के कुछ विद्वानों ने पवित्र कुरान के प्रति अपनी संकल्पना प्रस्तुत है और कुरान को कालवाह्य बताया है। कुरान की इस प्रकार की व्याख्या विना संदर्भों, परिपेक्ष्य व परिस्थिति की उस मांग को समझे बगैर की गयी थी, जिनके अंतर्गत हजरत मोहम्मद साहब को इन आयतों का इल्म हुआ। अतः रिजवी का बेतुका दावा कोई नया नहीं है व उनकी याचिका पूरी तरह से भड़काउ, समाजिक संतुलन व धर्मनिर्पेक्ष ढ़ांचे को बिगाड़ने वाली है और इस्लाम को आतंकवाद के साथ लाकर खड़ा कर देने वाला है।
भारतीय मुसलमानों ने एक बार फिर से भारतीय न्यायपालिका में अपना विश्वास व्यक्त करते हुए रिजवी के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में शिकायत व अपील दर्ज कराई। साथ ही न्यायालय से यह निवेदन किया कि रिजवी की याचिका निरस्त कर दी जाए। सर्वविदित है कि धर्म व्यक्ति की निजी पसंद होता है। आतंकवाद की तरफ झुकाव होना चरम सामाजिक स्थितियों तथा वर्ग विशेष को हाशिए पर करने के कारण व राजनीतिक अस्थिरता की वजह से होता है। धर्म स्वयं किसी व्यक्ति विशेष की विचारधारा को नहीं बदल सकता बल्कि इसका उपयोग आतंकवादी संगठन, लोगों को प्रेरित करने के लिए ‘‘औजार’’ के तौर करते हैं। इसके अलावा, धर्म कभी चरमपंथी नहीं होता बल्कि धर्म के कारण चरमपंथी धराशायी हो जाता है। इसलिए, रिजवी के ये दावे मुस्लिम पहचान व कुरान को, शांति, धार्मिक सौहार्द व भारत के धर्मनिर्पेक्ष चरित्र के विरूद्ध ला खड़ा करते हैं।
बहरहाल, सर्वोच्च न्यायालय ने वसीम रिजवी की याचिका को तुरंत खारिज करते हुए इसे ‘‘बेहद-झूठी’’ करार दिया तथा रिजवी पर 50 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया। मुस्लिम समुदाय ने सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले पर खुशी जताई और उन्होंने भारतीय न्यायपालिका में अपनी अटूट आस्था जाहिर की। भारतीय मुसलमान सदा से ही कानून के दायरे में रहते आए हैं और उन्होंने अपनी बात कहने के लिए सदा से न्यायलयों का आश्रय लिया है। अनेकों मुस्लिम संगठनों के साथ मुस्लिम उलेमा, जिनमें मौलाना खालिद रशीद (ऑल इंडिया पर्सनल लाॅ बोर्ड) तथा मौलाना याकूब अब्बास (शिया वक्फ बोर्ड) आदि शामिल हैं, ने न्यायालय के इस फैसले का स्वागत किया और कहा कि बेशक इस बात से यह साबित होता है कि देश में धर्मग्रंथों का सम्मान किया जाता है। इससे मुसलमानों का भारतीय संविधान व न्यायपालिका में विश्वास और मजबूत होगा। भारत के मुसलमानों को यह पूरा यकीन है कि जब तक भारत का संविधान जिंदा है तब तक भारत में मुसलमानों का कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता है।
(लेखक के विचार निजी हैं। जनलेख प्रबंधन का इससे कोई लेना-देना नहीं है।)