विश्व दुग्ध दिवस : अब हमें गाय को अपने जीवन का हिस्सा बनाना चाहिए

विश्व दुग्ध दिवस : अब हमें गाय को अपने जीवन का हिस्सा बनाना चाहिए

अमरदीप यादव

संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संगठन द्वारा पहली बार विश्व दुग्ध दिवस की शुरुआत 1 जून 2001 को की गई। इसे 100 से अधिक देशों द्वारा मनाया जाता है। आज के दिन विश्व भर में दूध और दुग्ध उद्योग के उत्पादों के महत्व, गुण और फायदे समेत वैश्विक अर्थव्यवस्था में योगदान के बारे में जागरूकता कार्यक्रम और प्रचार प्रसार के माध्यम से इसके स्रोत, स्वाभाविक उत्पत्ति, पोषण संबंधी महत्व समेत शारीरिक, मानसिक और आर्थिक लाभ पक्ष की विस्तृत जानकारी लोगों को दी जाती है। 

हमारे धार्मिक शास्त्रों में दूध को अमृत बताया गया हैं। अथर्ववेद में लिखा है कि दूध एक सम्पूर्ण भोज्य पदार्थ है, इसमें मानव शरीर के लिए आवश्यक सभी तत्व हैं, जिनकी शरीर को आवश्यकता होती है, जो मनुष्य को स्वस्थ रखने के साथ कई बीमारियों से भी बचाता है। इसमें कैल्शियम की भरपूर मात्रा होती है, जो हड्डियां मजबूत करती है। इससे शारीरिक और मानसिक विकास में मदद मिलती है तथा इससे शरीर का इम्यून और डाइजेस्टिव सिस्टम ठीक रहता है। इसमें उच्च गुणवत्ता के प्रोटीन सहित आवश्यक और गैर-आवश्यक अमीनो एसिड और फैटी एसिड दोनों मौजूद होता है जो शरीर को तुरंत ऊर्जा प्रदान करता है। इसमें पोषक तत्वों का संग्रहित स्रोत है जिसमें कैल्शियम, मैग्नीशियम, जिंक, फास्फोरस, आयोडीन, आयरन, पोटेशियम, फोलेट्स, विटामिन ए, विटामिन डी, राइबोफ्लेविन, विटामिन बी12, प्रोटीन, स्वस्थ फैट आदि मौजूद होते हैं। 

दुनिया में सबसे ज्यादा दूध उत्पादन करने वाले देशों की सूची में भारत पहले नंबर पर है, इसलिए कहा जाता है कि भारत में दूध की नदियां बहती है। भारत को दुनिया का सर्वाधिक दुग्ध उत्पादक देश बनाने के लिए श्वेत क्रांति लाने का श्रेय वर्गीज कुरियन को दिया जाता है, जिन्होंने देश में सहकारी दुग्ध उद्योग के मॉडल की आधारशिला रखी थी। इस योगदान के लिए भारत सरकार ने उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया। इनकी जयंती पर हर वर्ष भारत में 26 नवंबर को राष्ट्रीय दुग्ध दिवस मनाया जाता है।

आंकड़े के अनुसार भारत में सालाना 18.61 करोड़ टन दूध का उत्पादन होता है। दूसरे स्थान पर यूरोपियन यूनियन सालाना 16.73 करोड़ टन, तीसरे नंबर पर अमेरिका सालाना 9.86 करोड़ टन, चैथे नंबर पर पाकिस्तान सालाना 4.56 करोड़ टन और पांचवें स्थान पर ब्राजील है, जहां सालाना 3.55 करोड़ टन दूध का उत्पादन होता है। 

विश्व दुग्ध दिवस के लिए प्रत्येक वर्ष एक थीम तय किया जाता है, जिसको केंद्रित करके पूरे विश्व में कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। विगत दस वर्षों के थीम- 2012 “ताजा दूध पिए, शरीर फिट रहे, दिमाग तेज”, 2013 “दक्षिणपूर्व एशिया क्षेत्र के समृद्धि और स्वास्थ्य के लिये दूध” 2014 “मानव के लिये पहला भोजन दूध है” और “विश्व स्तरीय पोषण”, 2015 ‘‘दूध मानव के लिए पहला भोजन है‘‘, 2016 ‘‘एक ग्लास उठाओ‘‘,  2017 ‘‘आर्थिक विकास, आजीविका, पोषण‘‘, 2018 ‘‘पीओ मजबूत हो जाओ‘‘ 2019 ‘‘पियो दूध आज और प्रतिदिन है‘‘, 2020 ‘‘विश्व दुग्ध दिवस का 20वां साल‘‘ और 2021 का थीम ‘‘पर्यावरण, पोषण और सामाजिक-आर्थिक सशक्तिकरण के साथ-साथ डेयरी क्षेत्र में स्थिरता‘‘ है।

आज के दिन साथ हर वर्ग के उपभोक्ताओं को संदेश देने के लिए प्रचार हेतु आलेख, संपादकीय, स्थानीय खबर आदि प्रकाशन, ऑडियो-वीडियो जारी किये जाते हैं जिसमे दूध के स्रोतों का संरक्षण, संवर्धन समेत अच्छी सेहत और मजबूत शरीर के लिए रोज दूध पीने की अपील की जाती है। विश्व के कई देशों द्वारा कई स्थानों पर परिचर्चा, निबंध लेखन और प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता, दूध पियो प्रतियोगिता, खेल गतिविधियों में दूध पुरस्कार, मुफ्त दूध वितरण कैंप आदि आयोजित किए जाते है।

भारतीय संस्कृति में गाय को विशेष महत्व दिया गया है। हमारी संस्कृति गाय को माता मानती आ रही है। आज पूरा विश्व दूध के महत्व को समझने लगा है और कम से कम मांसाहार की प्रवृत्ति का विकास हो रहा है लेकिन हमारे यहां इस चिंतन को हजारों सालों से माना और व्यवहार में लाया जा रहा है। दुनिया के अन्य देशों में गाय के दूध को व्यापार के रूप में देखा जाता है लेकिन दुनिया भारतीय संस्कृति जहां भी फल-फूल रही है वहां गाय एवं दूध के प्रति आदर का भाव है। कोरोना संकट काल में भी भारतीय स्वास्थ्य और भारतीय अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में दूध की बड़ी भूमिका है। संकट के इस दौर में हमारे दुग्ध उत्पादकों ने अपने मेहनत के बदौलत भारत की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने का काम किया है। वैज्ञानिक शाध में यह बात उभरकर सामने आयी है कि जो व्यक्ति प्रतिदिन हल्दी और गुड़ के साथ गाय के दूध का सेवन कर रहा है उसमें वायरस के लड़ने की जबर्दस्त क्षमता विकसित हो जाती है। इसलिए हमें अब अपनी संस्कृति और पुरातन चिंतन की ओर लौटना चाहिए। गाय को अपने जीवन का हिस्सा बनाना चाहिए। 

(लेखक भारतीय जनता पार्टी पिछड़ा जाति मोर्चा के अध्यक्ष है। इनके विचार निजी हैं। इससे जनलेख प्रबंधन का कोई लेना-देना नहीं है।) 

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