हमें एक कुशल और पेशेवर महिला बनना चाहिए क्योंकि यह इस्लामिक शिक्षा का मूलमंत्र है

हमें एक कुशल और पेशेवर महिला बनना चाहिए क्योंकि यह इस्लामिक शिक्षा का मूलमंत्र है

इस्लाम में शिक्षा प्राप्त करने को बहुत महत्व दिया है। अल्लाह द्वारा पैगंबर मुहम्मद पर उतारा गया सबसे पहला शब्द ‘इकरा…’ था, जिसका भाषांतरण होता है, पढ़ना, सुनाना, घोषणा करना। गहराई से देखें तो इकरा शब्द का उपयोग कई अर्थों में किया गया है, जैसे-विश्लेषण करने, जांच करने, वितरित करने, अध्ययन करने आदि आदि। इस्लाम के पवित्र गंथों की यदि बात करें तो उसके अध्ययन करने, चिंतन करने और जांच करने के महत्व पर इस शब्द के माध्यम से जोर दिया गया है। मसलन, यह शब्द सभी मुसलमानों के लिए निर्धारित एक आदेश है। इसलिए इस्लाम में ज्ञान प्राप्त करना एक पवित्र कर्तव्य है।

हम मुसलमान व कुरान के अनुयायियों के रूप में, जीवन के सभी पहलुओं में शिक्षा प्राप्त करना अपने लिए अनिवार्य बनाना चाहिए ताकि हम आधुनिक दुनिया में सफल हो सकें। जामिया मिलिया इस्लामिया में असिस्टेंट प्रोफेसर लेखिका अपने जीवन का जिक्र करते हुए कहती हैं, ‘‘इस पितृसत्तात्मक दुनिया में एक मुस्लिम महिला होने के नाते, मेरे अपने लिए जगह बनाना मुश्किल था। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से पीएचडी पूरी करने के बाद, मैं जामिया मिलिया इस्लामिया में असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में नियुक्त हुई। यह कठिन काम पिछले दशक में सरकार द्वारा मुस्लिम महिलाओं पर विशेष ध्यान देने के साथ सुनिश्चित किए गए समान अवसर के कारण संभव हो पाया। अपने जीवन में, मैंने खुद इस समाज में शिक्षित होने के महत्व को देखा है। मुझे अधिकांश सामाजिक समारोहों से दूर रहना पड़ा, रातों की नींद हराम करनी पड़ी, पुरुषों और महिलाओं दोनों के साथ खुली प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ा और इसके अलावा, पुरुष प्रधान समाज के अहंकार को सहन करना पड़ा; फिर भी, इस यात्रा को मैंने अपने लायक बनाया। मैं स्वीकार करती हूं कि मैं उन महिलाओं की तुलना में अधिक सभ्य जीवन जी रही हूं जो अपनी वित्तीय जरूरतों के लिए दूसरों पर निर्भर हैं। मैं अपने लिए खड़ी हो सकती हूं और स्वतंत्र रूप से निर्णय ले सकती हूं, भले ही कोई मेरा समर्थन न करे। समाज में मेरी अपनी पहचान है, जहां लोग मुझे एक व्यक्ति के रूप में जानते हैं, न कि किसी की बेटी, बहन या पत्नी के रूप में। जब आप काम करते हैं और अपने लिए कमाते हैं, तो लोग आपके साथ सम्मान से पेश आते हैं। तब आप अपनी ज़रूरतों और इच्छाओं को पूरा करने के लिए दूसरों पर निर्भर नहीं रहते। आप निर्णय लेने में भाग ले सकते हैं और अपने साथ-साथ परिवार के लिए बेहतर भविष्य का निर्माण कर सकते हैं। आप अपनी पसंद के अनुसार एक गौरवपूर्ण जीवन जी सकते हैं।’’

उन्होंने कहा, ‘‘मैंने कई महिलाओं को अपमानजनक विवाहों में सिर्फ़ इसलिए पीड़ित होते देखा है क्योंकि वे खुद के लिए कमा नहीं सकती हैं। मुझे परिवार और पेशे दोनों को संभालते हुए एक संतुलित जीवन जीने से आत्म-उपलब्धि और संतुष्टि का एहसास होता है। अगर हमारे समाज की युवा लड़कियां कड़ी मेहनत करने और सभी चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार हैं, तो वे उच्चतम संभव लक्ष्य हासिल कर सकती हैं। ‘आकाश ही सीमा है’ यह बात उन सभी के लिए सत्य है जो सहन करने और धैर्य रखने के लिए तैयार हैं।’’

बच्चे, विशेषकर बालिकाओं की शिक्षा के लिए विभिन्न संस्थाओं के बीच परस्पर सक्रियता की आवश्यकता होती है। बच्चा, परिवार, रिश्तेदार, स्कूल, शिक्षक, इलाका ये तमाम चीजें महत्व रखती है। अगर कोई बालिका पढ़ना चाहती है और अपना करियर बनाना चाहती है, तो उसे आसपास के सभी लोगों के सहयोग की आवश्यकता होती है। भारत सरकार बालिका शिक्षा को विभिन्न तरीकों से सहायता प्रदान करती है। शिक्षा को बढ़ावा देने और जरूरतमंदों की मदद के लिए भारत सरकार द्वारा कई योजनाएं शुरू की गई हैं।

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ (बीबीबीपी) योजना, जिसे 2015 में शुरू किया गया था, का उद्देश्य बालिकाओं की शिक्षा को बढ़ावा देना है। यह योजना बालिकाओं की शिक्षा पर केंद्रित है। यह योजना कम बाल लिंगानुपात वाले जिलों में बालिकाओं की शिक्षा और स्वास्थ्य के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करती है।

कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय (केजीबीवी) योजना 2004 में समाज के वंचित वर्गों की लड़कियों को शिक्षा प्रदान करने के लिए शुरू की गई थी। इस योजना के तहत, कम महिला साक्षरता दर वाले क्षेत्रों में लड़कियों के लिए आवासीय विद्यालय स्थापित किए जाते हैं। स्कूल 8वीं कक्षा तक शिक्षा प्रदान करते हैं और यहां छात्रावास की सुविधा भी होती है। इस योजना का उद्देश्य अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यक समुदायों और कठिन क्षेत्रों में गरीबी रेखा से नीचे के परिवारों की लड़कियों को शैक्षिक सुविधाएं प्रदान करना है।

2015 में शुरू की गई सुकन्या समृद्धि योजना बालिकाओं के लिए एक छोटी जमा योजना है। यह योजना माता-पिता को बालिका के नाम पर बचत खाता खोलने की अनुमति देती है और 7.6 प्रतिशत की उच्च ब्याज दर प्रदान करती है। बालिका शिक्षा के महत्व और भारत में लड़कियों के सामने आने वाली चुनौतियों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए हर साल 24 जनवरी को भारत में राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाया जाता है।

राष्ट्रीय साधन-सह-योग्यता छात्रवृत्ति (एनएमएमएस) योजना आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के छात्रों को उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करती है। इस योजना के तहत, 8वीं कक्षा की परीक्षा में अच्छे अंक लाने वाले छात्रों को छात्रवृत्ति प्रदान की जाती है। 2009 में शुरू की गई राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान (आरएमएसए) योजना का उद्देश्य भारत के माध्यमिक विद्यालयों में शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करना है। इस योजना के तहत, स्कूलों को बुनियादी ढांचे में सुधार, शिक्षक प्रशिक्षण प्रदान करने और लड़कियों के अनुकूल नीतियों को लागू करने के लिए वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है। अनुसूचित जनजाति की लड़कियों की उच्च शिक्षा के लिए राष्ट्रीय छात्रवृत्ति एक और ऐसी योजना है, जो उन्हें उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए वित्तीय सहयोग प्रदान करती है।

छात्रवृत्ति उन छात्रओं को प्रदान की जाती है जिन्होंने 10वीं कक्षा की परीक्षा उत्तीर्ण की है और उच्च शिक्षा कार्यक्रम में नामांकित हैं। इस प्रकार की योजनाओं की सूची लंबी है लेकिन बात बिल्कुल स्पष्ट है। शिक्षा हमारे रोजमर्रा के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। हालांकि, अतीत में मुसलमानों के बीच साक्षरता दर में उत्साहजनक आंकड़े नहीं थे लेकिन अब उसमें थोड़ा सुधार देखने को मिल रहा है, बावजूद इसके इस दिशा में और प्रयास करने की जरूरत है।

मुस्लिम महिलाओं की साक्षरता दर किसी भी अन्य धार्मिक समूह की महिलाओं की तुलना में कम पाई गई। रिपोर्ट स्पष्ट रूप से दर्शाती है कि मुसलमानों में शिक्षा का स्तर बहुत कम है और मुसलमान राष्ट्रीय औसत से पीछे हैं। शिक्षा में शिक्षण या सीखने की प्रक्रिया शामिल है, विशेष रूप से स्कूल में या कॉलेज, या इस प्रक्रिया से आपको जो ज्ञान मिलता है। शिक्षा में विशिष्ट कौशल हासिल करना भी शामिल है, जो जीवन के सभी पहलुओं में आवश्यक हो सकता है, चाहे वह पेशगत हो या व्यक्तिगत। किसी व्यक्ति को अपनी क्षमताओं और पसंद के अनुसार एक क्षेत्र में एक ठोस करियर बनाने के लिए सभी पेशेवर कौशल क्षमताओं को हासिल करने का प्रयास करना चाहिए। इस प्रक्रिया को जीवन में बहुत कम समय में शुरू किया जाना चाहिए। स्कूलों और कॉलेजों के अलावा, हमारे देश में कई सरकारी और निजी विश्वविद्यालय हैं, जो लोगों को उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए मंच प्रदान करते हैं।

शिक्षा न केवल व्यक्ति के अपने जीवन को बेहतर बना सकती है, बल्कि यह पूरे परिवार, समाज, देश और पूरी दुनिया के लिए फायदेमंद हो सता है। किसी विशिष्ट विषय के बारे में उचित रूप से साक्षर होने से व्यक्ति को उच्च वेतन वाली नौकरी पाने या परिवार की वित्तीय जरूरतों को पूरा करने के लिए व्यवसाय शुरू करने में मदद मिलती है। एक उचित रूप से शिक्षित व्यक्ति सभी बुनियादी सुविधाओं तक पहुंचने में कामयाब होता है। उसमें आत्मविश्वास पैदा होता है और वह किसी प्रकार के हीन भावना से प्रभावित नहीं होता है। ऐसे में उसमें हिंसक प्रवृति भी समाप्त हो जाती है। इससे समाज और देश को बल मिलता है। इतना ही नहीं, शिक्षा से व्यक्ति में ज्ञान और उच्च मानवीय मूल्यों का निमार्ण होता है। शिक्षित और विशेषज्ञ व्यक्ति समाज व मानवता की समस्या एवं चुनौतियों को सुलझाने एवं समाधान करने में कारगर होता है। इससे रचनात्मकता और नवाचारों को बढ़ावा मिलता है, जो राष्ट्र निर्माण के लिए आवश्यक हैं। जब हम उचित रूप से शिक्षित होते हैं, तो हमारे पास दुनिया को बदलने और इसे रहने के लिए एक बेहतर जगह बनाने की ताकत खुद व खुद आ जाती है।

लोग शिक्षा के माध्यम से ही अपनी वास्तविक क्षमता का एहसास कर सकते हैं। इसके अलावा, शिक्षित व्यक्ति कई अन्य तरीकों से समुदाय और देश को लाभान्वित कर सकता है। शिक्षित लोग कानून और व्यवस्था का पालन करना, उसका सम्मान करना और समाज में शांति बनाए रखना जानते हैं। विश्व शांति प्राप्त करने और युद्ध और आतंकवाद को रोकने के लिए शिक्षा एक महत्वपूर्ण साधन है। समय आ गया है कि छोटी लड़कियों को बहुत कम उम्र में स्वतंत्र जीवन जीने का महत्व सिखाया जाना चाहिए। हमें एक ऐसा समाज बनाना है जहां महिलाएं अपने जीवन यापन के लिए किसी पर निर्भर न रहें। हम महिलाओं को अपने पिता, भाई, पति या बेटे को आय के स्रोत के रूप में देखना बंद कर देना चाहिए। एक व्यावसायिक महिला होने के नाते मेरा संदेश स्पष्ट है कि स्वयं को शिक्षित करें और एक सभ्य, सम्मानजनक जीवन जियें।

(आलेख में व्यक्त विचार लेखिका के खुद के हैं। इससे जनलेख प्रबंधन का कोई सरोकार नहीं है।)

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