रामस्वरूप रावतसरे
प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में तीन सदस्यों वाली समिति की बैठक में सोमवार को चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार को भारत का मुख्य चुनाव आयुक्त नियुक्त किया गया है।
दिलचस्प है कि सुप्रीम कोर्ट में मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति वाले नए नियम को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई से पहले इसकी घोषणा की गई है। इसी नए नियम से ज्ञानेश कुमार को मुख्य चुनाव आयुक्त नियुक्त किया गया है। क़ानून मंत्रालय ने सोमवार रात नियुक्ति की अधिसूचना जारी की थी। हरियाणा के मुख्य सचिव विवेक जोशी को चुनाव आयुक्त नियुक्त किया गया है। ज्ञानेश कुमार की नियुक्ति पर मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने आपत्ति जताई है।
ज्ञानेश कुमार 1988 बैच के केरल कैडर के आईएएस अधिकारी हैं। केंद्रीय मंत्री अमित शाह के अंतर्गत आने वाले मंत्रालय में वह मई 2022 से सेक्रेटरी थे। 31 जनवरी, 2024 को ज्ञानेश कुमार यूनियन कोऑपरेशन सेक्रेटरी के पद से रिटायर हुए थे। इसके दो महीने बाद 14 मार्च, 2024 को इन्हें चुनाव आयुक्त बनाया गया था। 15 मार्च को उन्होंने कार्यभार संभाला और उसके अगले दिन ही चुनाव आयोग ने लोकसभा चुनाव के कार्यक्रम की घोषणा की थी। चुनाव आयुक्त का पद संभालने के लगभग एक साल बाद ही वो अब मुख्य चुनाव आयुक्त की ज़िम्मेदारी संभालने जा रहे हैं। उन्होंने इससे पहले पांच साल गृह मंत्रालय में काम किया था, जहां वह मई 2016 से लेकर सितंबर 2018 तक संयुक्त सचिव और उसके बाद सितंबर 2018 से लेकर अप्रैल 2021 तक अतिरिक्त सचिव के पद पर थे। अतिरिक्त सचिव के पद पर रहते समय ज्ञानेश कुमार जम्मू-कश्मीर के मामलों को देख रहे थे और अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 को रद्द करने की घोषणा की गई थी।
जानकारी के अनुसाऱ, अनुच्छेद 370 को रद्द करने का क़ानून जब लाया जा रहा था उस समय वह गृह मंत्री अमित शाह के साथ लगातार संसद में आते थे। नरेंद्र मोदी सरकार का ज्ञानेश कुमार में एक नौकरशाह के तौर पर भरोसा इस तथ्य से ही पता चलता है कि न केवल उन्हें गोपनीय विधेयकों में से एक जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक को तैयार करने की ज़िम्मेदारी दी गई थी बल्कि वह राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के गठन में भी शामिल थे। कोऑपरेशन सेक्रेटरी के उनके कार्यकाल के दौरान मल्टी-स्टेट कोऑपरेटिव सोसाइटीज़ (एमएससीएस) (संशोधन) विधेयक, 2023 पास किया गया था, जिसका लक्ष्य कोऑपरेटिव सेक्टर में पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ाना था। ज्ञानेश कुमार के चुनाव आयुक्त रहते हुए लोकसभा चुनाव 2024 हुए और साथ ही अनुच्छेद 370 की समाप्ति के बाद केंद्र शासित जम्मू-कश्मीर में पहली बार विधानसभा चुनाव हुए। इसके अलावा हरियाणा, झारखंड, महाराष्ट्र और दिल्ली में विधानसभा चुनाव हुए।
ज्ञानेश कुमार ने आईआईटी कानपुर से सिविल इंजीनियरिंग में बीटेक किया है। उन्होंने इंस्टिट्यूट ऑफ़ चार्टर्ड फ़ाइनैंशियल एनालिस्ट्स ऑफ़ इंडिया से बिज़नेस फ़ाइनैंस में पढ़ाई भी की है। मुख्य चुनाव आयुक्त के तौर पर ज्ञानेश कुमार का कार्यकाल 26 जनवरी 2029 तक होगा। उनके कार्यकाल में 20 विधानसभा चुनाव होंगे। साथ ही 2027 में राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति पद के लिए चुनाव और 2029 लोकसभा चुनाव की तैयारी भी उन्हीं के कार्यकाल में होगी।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने विरोध स्वरूप प्रेस कॉन्फ़्रेंस कर कहा, मोदी सरकार मुख्य चुनाव आयुक्त के चयन के लिए 2023 में जो नया क़ानून ’’द चीफ़ इलेक्शन कमिश्नर एंड अदर इलेक्शन कमिश्नर एक्ट’’ लेकर आई है, इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। अभी तक सुप्रीम कोर्ट ने इसे लेकर तीन ऑर्डर पास किए हैं और अगली सुनवाई 19 फ़रवरी को होनी है। इसलिए मुख्य चुनाव आयुक्त के चयन को लेकर कांग्रेस का रुख़ बड़ा स्पष्ट है। मुख्य चुनाव आयुक्त के चुनाव से जुड़ी जो बैठक हुई है, उसे स्थगित किया जाए। मोदी सरकार सुप्रीम कोर्ट से कहे इसकी सुनवाई जल्दी पूरी करे। इसमें कांग्रेस पूरा समर्थन देगी. मोदी सरकार को अपना अहंकार छोड़कर ये मांग माननी चाहिए।
मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों को चयन करने वाले पैनल में प्रधानमंत्री अध्यक्ष होते हैं जबकि इसके एक सदस्य गृह मंत्री अमित शाह और दूसरे सदस्य नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी हैं। हालांकि सरकार ने कांग्रेस की आपत्ति को नज़रअंदाज़ करते हुए बैठक की और ज्ञानेश कुमार को मुख्य चुनाव आयुक्त बनाने का फ़ैसला कर लिया। सिंघवी के अनुसार ’’प्रधानमंत्री, गृह मंत्री और नेता विपक्ष की समिति मुख्य चुनाव आयुक्त का चयन करती है, लेकिन उसमें बहुत सारी संवैधानिक और क़ानूनी समस्याएं हैं। इन्हीं समस्याओं को लेकर सुप्रीम कोर्ट के सामने बात रखी गई और सुप्रीम कोर्ट ने दो मार्च 2023 को एक फ़ैसला दिया। इस फ़ैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लोकतंत्र और उसकी निष्पक्षता के लिए मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्त की चयन समिति में प्रधानमंत्री, भारत के मुख्य न्यायाधीश और नेता विपक्ष हों। इस फ़ैसले की आत्मा और उद्देश्य को बिना समझे, जल्दबाज़ी में नया क़ानून लाया गया। इस नए क़ानून में सुप्रीम कोर्ट के उस फ़ैसले के ठीक विपरीत काम किया गया, जिसमें पूरी तरह से कार्यपालिका मुख्य चुनाव आयुक्त का चयन कर रही है।’’
कांग्रेस नेता केसी वेणुगोपाल ने एक्स पर पोस्ट किया है कि सरकार ने आधी रात को जल्दबाज़ी में नए चुनाव आयुक्त की नियुक्ति की अधिसूचना जारी कर दी है, यह हमारे संविधान की भावना के खिलाफ़ है और सुप्रीम कोर्ट भी कई मामलों में कह चुका है कि मुख्य चुनाव आयुक्त पूरी तरह से निष्पक्ष होना चाहिए। उन्होंने लिखा, ’’पहले क़ानून का संशोधन कर मुख्य चुनाव आयुक्त नियुक्त करने वाले पैनल से सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को हटाया गया और अब जब नए क़ानून के खिलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है तो सरकार ने जल्दबाज़ी में नए चुनाव आयुक्त की नियुक्ति की अधिसूचना जारी कर दी। जल्दबाज़ी में पैनल की बैठक कर नियुक्ति की घोषणा करना बताता है कि सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई को लेकर सरकार गतिरोध पैदा करना चाहती है।
कांग्रेस के सूत्रों ने कहा है कि राहुल गांधी प्रधानमंत्री के आवासीय कार्यालय में हो रही बैठक छोड़कर निकल गए थे। राहुल गांधी ने बैठक से निकलने से पहले लिखित में अपनी आपत्ति सौंपी थी। नामों पर चर्चा के दौरान राहुल गांधी नहीं मौजूद थे।
ये पहली बार है, जब मुख्य चुनाव आयुक्त का चयन मुख्य चुनाव आयुक्त एवं अन्य चुनाव आयुक्त (नियुक्ति, सेवा की शर्तें और पदावधि) अधिनियम, 2023 के तहत हुआ है। इससे पहले बीते साल ज्ञानेश कुमार और सुखबीर सिंह संधू को नए क़ानून के तहत चुनाव आयुक्त चुना गया था। इस नए क़ानून से पहले मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति सरकार की सिफ़ारिश पर राष्ट्रपति करते थे। ये नया क़ानून सुप्रीम कोर्ट के मार्च 2023 के उस फ़ैसले के बाद आया है, जिसमें ये अनिवार्य किया गया था कि चयन पैनल में प्रधानमंत्री, लोकसभा नेता प्रतिपक्ष और भारत के मुख्य न्यायाधीश होंगे। कोर्ट ने कहा था कि ये आदेश तब तक रहेगा जब तक कि संसद इस पर क़ानून न बना दे। केंद्र सरकार ने क़ानून लाकर इस पैनल में मुख्य न्यायाधीश की जगह केंद्रीय मंत्री को जगह दे दी।
आलेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं। इससे हमारे प्रबंधन का कोई सरोकार नहीं है।