‘‘हमारी आस्था कुछ भी हो लेकिन हम हिन्दुस्तानी है, हुकूमत और सियासत से उपर मुल्क’’

‘‘हमारी आस्था कुछ भी हो लेकिन हम हिन्दुस्तानी है, हुकूमत और सियासत से उपर मुल्क’’

कलीमुल्ला खान

देश की एकता और अखंडता को बनाए रखने में सूफी संत एवं उनके सिलसिले वाले खानकाहों की भूमिका अद्भुद रही है। यही नहीं सूफी संतों ने फिरंगियों को उखाड़ फेंकने में भी बड़ी भूमिका निभाई। यहां तक कि सूफी संत समाज और देश की अवाम के लिए मुगलिया सल्तनत से भी कई बार जूझ गए। वर्तमान दौर में भी इनकी भूमिका सराहनीय है। ऐसे ही एक खानकाही योद्धा हैं। सूफी गफीर सागर चिश्ती निजामी साहब अभी हाल ही में उन्होंने देश की एकता और अखंडता पर बयान जारी किया है।

सूफी खानकाह एसोसिएशन के राष्ट्रीय प्रवक्ता सूफी गफीर सागर चिश्ती निजामी साहब फरमाते हैं, ‘‘दीन-धर्म की बात जब आए मजहब मेरा इंसानी लिखना, जब भी मेरी कहानी लिखना मुझको हिन्दुस्तानी लिखना।’’ दरअसल, यह बात केवल चिश्ती साहब नहीं कहते, अपनी-अपनी भाषा और शैली में हर हिन्दुस्तानी कहता है। निजामी साहब इस देश की एकता के प्रतीक हैं। कुछ देश विरोधी ताकतों के द्वारा फैलाए गए भ्रम के बीच निजामी साहब ने अपनी बात को विस्तार देते हुए कहा कि चाहे हमारी आस्था अलग-अलग हो, हमारा पंथ एक नहीं हो लेकिन हम सब हिन्दुस्तानी हैं। हम सब एक ही परिवार के सदस्य हैं और हर हिन्दुस्तानी हमारा भाई है। उन्होंने राष्ट्र के एकीकरण में हिन्दू-मुस्लिम एकता और भाईचारे को बढ़ाए जाने तथा कट्टरपंथी शक्तियों पर अंकुश लगाने की की बात कही है। उन्होंने यह भी कहा है कि हमारा संगठन इस काम के लिए हर वक्त तैयार रहता है।

उन्होंने आगे कहा कि हम हिन्दुस्तानियों के लिए आपसी भाईचारा और रवादारी, सबसे जरूरी है। उन्होंने कहा कि हमारे देश में हर मजहब, धर्म और जातियों के फूल खिलते हैं, हम हिन्दुस्तानी प्रेम के धागे में बंधी हुई एक खूबसूरत माला हैं। निजामी साहब कहते हैं कि ऐसा नहीं है कि सदभाव और राष्ट्रीय एकीकरण को बढ़ावा देने वाले कार्य किसी हादसे की वजह से किए जा रहे हैं, बल्कि सदियों से आपसी भाईचारे और प्रेम को बढ़ाने की परंपरा हमारे देश में रही है। उन्होंने भारत की महान विभूतियों, मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम, योगीराज श्रीकृष्ण, महात्मा बुद्ध, महावीर स्वामी इन सभी ने मानवता पर आधारित अपने विचारों को भारत के कोने-कोने में पहुंचाने का कार्य किया है।

निजामी साहब कहते हैं कि इन महापुरुषों के बाद हजारों सूफियों ने, पैगंबर हजरत मोहम्मद सल्लाल्लाहो अलैहेवसल्लम के लाए, दी-ए-मोहम्मदी के पैगामे मोब्बत को इस मुल्क में बखूबी पेश किया है। इस नायाब सिलसिले में हजरत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती, बाबा फरीद, हजरत मेहबूब-ए-इलाही, हजरत अमीर खुशरो रहमहुल्लाह अलेहिम तथा बाबा गुरुनानक देव, कबीर दासजी महाराज, तुलसी दासजी जैसे संतों ने जो मोहब्बत के गीत गाए वो हमारी सांझी विरासत है, इनकी कामयाबी का राज सबको साथ लेकर चलना है।

इस प्रकार की बात निजामी साहब हर वक्त करते रहते हैं। दरअसल, इन दिनों एक फैसन-सा चला है। हर किसी को हुकूमत से कुश शिकायत है। हुकूमत से शिकायत करना जायज भी है लेकिन अनड़ग मामलों में हुकूमत से शिकायत अच्छी बात नहीं है। अभी समान नागरिक संहिता की बात हो रही है। अब इस देश में अल्पसंख्यक तो और है लेकिन इस मामले को लेकर मुसलमान ज्यादा तल्ख दिख रहे हैं। अभी कुछ दिन पहले तलाक पर हुकूमत ने अपनी नियत साफ की और तलाक के अवैज्ञानिक एवं अव्यवहारिक स्वरूप में परिवर्तन करने का फरमान जारी कर दिया। क्या गलत किया? तलाक का पुरातन और इस्लाम पर थोपा गया स्वरूप किसी कीमत पर इस्लाम के हक में नहीं था। इस देश में शादी की रश्म चाहे कोई किसी तरह से संपन्न कर ले लेकिन जीवन साथ के साथ रहने के कायदे तो एक जैसे होने ही चाहिए। मां-बाप की संपत्ति में संतान का हक होता है। इसमें बेटा और बेटी का समान हक होना चाहिए। हमें महिलाओं को बराबरी का हक देना ही होगा। मध्यकालीन अरब में या फिर हिन्दुस्तान में भी लड़ाई के कारण पुरूषों की मौत होती रहती थी लेकिन महिलाएं महफूज होती थी। ऐसे में महिलाओं की संख्या बढ़ जाती थी। तब इस्लाम में चार तक शादी जायज बताया गया। इसलिए हमें हुकूमत को साथ देना चाहिए। इस देश का हर नागरिक समान है तो किसी एक खास वर्ग को क्यों विशेष सुविधा दी जाएगी। ब्राह्मण को जब संविधान खास तबज्जो नहीं देता है तो इस मुसलमान को कैसे दे सकता है। हां, जो तबका पसमांदा है उसे सहुलियत दी जाए लेकिन यह नियम न बने। हुकूमत को इस पर भी ध्यान देना होगा।

(आलेख में व्यक्त लेखक के विचार निजी हैं। इससे जनलेख प्रबंधन की सहमति जरूरी नहीं है।)

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