सूर्य उपासना पर विशेस/ एक सूर्य, एक विश्व, एक ग्रिड और सनातन अर्थशास्त्र

सूर्य उपासना पर विशेस/ एक सूर्य, एक विश्व, एक ग्रिड और सनातन अर्थशास्त्र

पंकज जायसवाल

सनातन संस्कृति के सबसे प्राचीन और प्रसिद्ध सूर्य उपासना पर्व छठ पार्श्व के आगमन के ग्लास्गो में प्रधानमंत्राी नरेंद्र मोदी ने बहुत ही प्रासंगिक और पृथ्वी के अस्तित्व के लिये महत्वपूर्ण बात कही। उन्होंने सौर ऊर्जा की सनातन महत्ता को रेखांकित करते हुये दुनिया को बताया कि दुनिया को एक सूर्य, एक विश्व, एक ग्रिड की जरुरत है। उन्होंने कहा कि मुझे विश्वास है कि वन सन, वन वर्ल्ड, वन ग्रिड और ग्रीन ग्रिड इनिशिएटिव के बीच सामंजस्य से एक संयुक्त और मजबूत वैश्विक ग्रिड विकसित करने में मदद मिलेगी।

जलवायु परिवर्तन संकट को रोकने हेतु हमें अपनी सनातन संस्कृति के जड़ों की तरफ जाना पड़ेगा, भारत में सूर्योपनिषद् में प्राचीन ग्रन्थ में कहा गया है कि सब कुछ सूर्य से उत्पन्न हुआ है। समस्त ऊर्जा का स्रोत सूर्य है और सूर्य से प्राप्त ऊर्जा ही सबका पालन-पोषण करती है। जब से पृथ्वी पर जीवन रहा है। सभी जीवों का जीवन चक्र, दैनिक दिनचर्या को सूर्य के उदय और अस्त होने से जोड़ा गया है। भारतीय संस्था जल्द ही सौर ऊर्जा मापने वाला कैलकुलेटर लाने वाली है। उन्होंने बताया कि एक घंटे में पृथ्वी के वायुमंडल को पर्याप्त सूर्य का प्रकाश प्राप्त होता है जो पृथ्वी पर प्रत्येक मनुष्य को एक वर्ष के लिए आवश्यक बिजली प्रदान करता है। यह असीमित ऊर्जा पूरी तरह से स्वच्छ और टिकाऊ है।

एकमात्रा चुनौती यह है कि सौर ऊर्जा केवल दिन के दौरान उपलब्ध होती है और यह मौसम की स्थिति पर निर्भर करती है। वन सन, वन वर्ल्ड, वन ग्रिड इसी चुनौती का समाधान है। एक विश्वव्यापी ग्रिड हमें हर समय हर जगह स्वच्छ ऊर्जा प्रदान करने में सक्षम बनाएगा। यह भंडारण की आवश्यकता को भी कम करेगा और सौर परियोजनाओं की व्यवहार्यता में वृद्धि करेगा। यह न केवल कार्बन फुटप्रिंट और ऊर्जा की लागत को कम करेगा बल्कि विभिन्न क्षेत्रों और विभिन्न देशों के बीच सहयोग के नए रास्ते खोलेगा।

मेरा भी यही मत है। सूर्य का अस्तित्व सृष्टि, ज्ञात अज्ञात ब्रह्मांड के करोड़ों साल से हैं और ऐसे सिर्फ एक ही सूर्य नहीं, ज्ञात अज्ञात ब्रह्मांड मंे कई सूर्य हैं। आज हम जो सोलर एवं रेन्यूबल ऊर्जा की चर्चा कर रहे हैं या हम उस पर शोध कर रहे हैं या उसका हम उपयोग कर रहे हैं, ऐसा नहीं है कि की इस ऊर्जा का हमने आविष्कार किया है या उसके अस्तित्व का हमने सृजन किया है। हमने अब उसे धीरे धीरे पहचानना शुरू किया है। धीरे धीरे हम उसके बारे मंे ज्ञान प्राप्त करते गए हैं।

अब जा के हमारी दृृष्टि उस तरफ गयी है जिसके कारण हमे ऊर्जा के असीमित भंडारण के बारे मे पता चला। सत्य यही है कि हमंे संसाधनों के बारे मे पता चलता है। संसाधन अपनी संभावनाएँ लिए मौजूद हैं। जरूरत है उसे कुरेदने की और जानने की। सोलर, विंड एवं रेनूयबल ऊर्जा के नए स्रोतों ने समाज और राज्यों के लिए ऊर्जा की उपलब्धता के लिए एक सुगमता भी खोज दी है जो सहज भी है और सरल सुलभ है। इसके वितरण मंे कोई भेदभाव नहीं है।

राज्य या किसी सामाजिक समूहों को चाहिए कि पारंपरिक ऊर्जा जो समय के साथ महंगी और पर्यावरण के लिये खतरनाक होती जा रही है, के विकल्प के रूप मंे इसे चुनंे। जैसे सरकारें एलईडी बल्ब के प्रचार प्रसार मंे लगी है और कई जगह तो यह मुफ्त बांटा जा रहा है ताकि बिजली बचाई जा सके, ठीक उसी तरह सोलर ऊर्जा को भी संस्थागत सरकारी ऊर्जा का स्रोत बनाते हुए, घरों मंे इसे प्रतिस्थापित करते हुए इसके जीवन काल के ह्रास के दर से बिल में इस ह्रास लागत की वसूली कर सकते हैं। ऐसा करने से जहां राज्य और समाज में बिजली की उपलब्धता होगी वहीं बिजली के खर्चे जनता और राज्य दोनों को कम पड़ेंगे। बिजली की उपलब्धता से आर्थिक गतिविधियां बढ़ेंगी और राज्य एवं समाज आर्थिक विकास करेगा।

वास्तव मंे सौर ऊर्जा भविष्य के लिए अक्षय ऊर्जा का असीमित स्रोत है। यह रोशनी एवं ऊष्मा दोनों रूपों में प्राप्त होती है । सौर ऊर्जा जो निःशुल्क सूर्य से सीधे ही प्राप्त होती है और यह कई विशेषताएं धारण किए हुए है जो इसको मूल्यवान बनाती है। यह अत्यधिक विस्तारित, अप्रदूषणकारी एवं अक्षुण्ण है। इसका उपयोग कई प्रकार से हो सकता है या संक्षिप्त में कहें तो जो जो काम हम बिजली और जीवाश्म ईंधन से करते हैं वो सब हम इससे कर सकते हैं।

सार में अगर सच कहा जाए तो अक्षय ऊर्जा आधुनिक जीवन शैली का अविभाज्य अंग बन गयी है। आज के वक्त मंे ऊर्जा के बिना आधुनिक सभ्यता के अस्तित्व पर एक बहुत बडा प्रश्न-चिह्न लग जायेगा। वास्तव में कहा जाए तो अक्षय ऊर्जा, अक्षय विकास का प्रमुख स्तम्भ है। अक्षय ऊर्जा, ऊर्जा का ऐसा विकल्प है जो असीम है। ऊर्जा का पर्यावरण से सीधा सम्बन्ध है।

ऊर्जा के परम्परागत साधन (कोयला, गैस, पेट्रोलियम आदि) सीमित मात्रा में होने के साथ-साथ पर्यावरण के लिये बहुत हानिकारक हैं। औद्योगिक क्रांति के दौरान जीवाश्म ईंधन ने कई देशों को धनी बनाया लेकिन इसने पृथ्वी और पर्यावरण को गरीब बना दिया। औद्योगिक क्रांति जीवाश्म ईंधन द्वारा संचालित थी।

कई देश जीवाश्म ईंधन के उपयोग से समृद्ध हुए लेकिन इसने हमारी पृथ्वी और पर्यावरण को भी खराब कर दिया। जीवाश्म ईंधन की दौड़ ने भू-राजनीतिक तनाव भी पैदा किया। हालांकि, आज, प्रौद्योगिकी ने हमें एक बेहतर विकल्प के साथ प्रस्तुत किया है। दूसरी तरफ ऊर्जा के ऐसे विकल्प हैं जो पूरणीय हैं तथा जो पर्यावरण को कोई हानि नहीं पहुंचाते। ये वैश्विक गर्मी (ग्लोबल वार्मिंग) तथा जलवायु परिवर्तन से बचाव करते हैं।

अक्षय ऊर्जा स्रोत वर्ष पर्यन्त अबाध रूप से भारी मात्रा में उपलब्ध होने के साथ साथ सुरक्षित, स्वतः स्फूर्त व भरोसेमंद हैं। साथ ही इनका समान वितरण भी संभव है। 21वीं शताब्दी का स्वरूप जीवाश्म ऊर्जा के बिना निर्धारित होने वाला है जबकि 21वीं शताब्दी में वह उसके द्वारा निर्धारित किया गया था।

पूरे विश्व में, कार्बन रहित ऊर्जा स्रोतों के विकास व उन पर शोध अब प्रयोगशाला की चारदीवारी से बाहर आकर औद्योगिक एवं व्यापारिक वास्तविकता बन चुके है. इसलिये प्रधानमंत्राी का मौजूदा आवाहन समयानुकूल और पृथ्वी के आस्तित्व को बचाने के लिये भी जरुरी है। अगर दुनिया, पृथ्वी और पर्यावरण को बचाना है तो हमें सूर्य की तरफ देखना ही पड़ेगा. सूर्य उपासना करनी ही पड़ेगी। हम चाहे जिस रूप में करें, धर्म के रूप में, परम्परा के रूप में या विज्ञान के रूप में लेकिन यही सनातन सत्य है।

(युवराज)

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