जन्मदिवस 19 नवंबर/ श्रीमती इन्दिरा गांधी : एक जीवट व्यक्तित्व

जन्मदिवस 19 नवंबर/ श्रीमती इन्दिरा गांधी : एक जीवट व्यक्तित्व

रूपकिशोर माथुर

भारत के प्रथम प्रधानमंत्राी जवाहर की इकलौती संतान भूतपूर्व प्रधानमंत्राी स्व. श्रीमती इन्दिरा प्रियदर्शनी गांधी में बचपन से ही परिस्थितियों से जूझने और खतरों से सामना करने की अटूट क्षमता थी जिसका कारण उनकी महत्वाकांक्षाएं, उसका जीवन व जिद्दी स्वभाव था।

गुलामी के शासन तंत्रा में जन्मी व राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की छत्राछाया में पल कर बड़ी हुई अहिंसा की पुजारिन इंदिरा गांधी ने पिता द्वारा स्वतंत्रा भारत में बोये लोकतंत्रा के बीजों को बखूबी सींचकर रक्षा की एवं सदैव लोकतंत्रा की पक्षधर रही यद्यपि लोकतंत्रा के प्रति उनकी राय के बारे में लोग बहुत सी बातें किया करते थे।

जब 1977 में कांग्रेस के बहुत से लोग चुनाव के पक्ष में नहीं थे, वह यही कहती थी कि चुनाव टालने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता। हम लोगों को लोकतंत्रा की नींव रखनी है। चुनाव टालकर हम जनमानस में अपनी क्या शक्ल दिखायेंगे।

राष्ट्र के लिए अपना जीवन न्यौछावर करने वाली भारत मां की इस महान् देशभक्त बेटी ने देश के आत्मसम्मान, हितों व राष्ट्र की एकता और अखण्डता की कीमत पर कभी भी किसी भी विदेशी शक्ति के साथ समझौता नहीं किया, यहां तक कि सोवियत संघ से भी नहीं। सोवियत संघ के बारे में यह दलील काफी सार्थक लगती थी कि उसने हमें उस वक्त मदद दी जब हमारी मदद को कोई आगे नहीं आया।

18 वर्ष के अपने एकछत्रा प्रधानमंत्रित्व काल में श्रीमती गांधी ने 18 मई 1974 को समूचे विश्व के लाख विरोध के बावजूद प्रथम अणु विस्फोट कर भारत को विश्व के आणविक मानचित्रा पर अंकित कर दिया। उन्होंने दृढ़ निश्चय व साहस का परिचय देते हुए यह सिद्ध कर दिखाया कि भारत न केवल एक अणुशक्ति वाला देश है और वह अणुशक्ति का शांतिपूर्ण कार्यो के लिए उपयोग करने की तकनीक में दखल रखता है बल्कि वह अपनी अणुनीति किसी के प्रभाव या दबाव में आकर नहंीं, अपने राष्ट्रहितों को ध्यान में रखकर निर्धारित करने के लिए स्वतंत्रा है।

इस अणु विस्फोट के विरोध स्वरूप कनाडा के अनुबन्ध के बावजूद राणा प्रताप सागर अणु संयंत्रा के लिए भारी पानी देना बन्द कर दिया व अन्य देशों ने परिष्कृत यूरेनियम भेजने से इंकार कर दिया लेकिन अपने दृढ़ निश्चयी स्वभाव का परिचय देते हुए श्रीमती गांधी ने अणुशक्ति नियंत्राण समझौते पर हस्ताक्षर न करके बड़ी शक्तियों के भारत में दखलन्दाजी के सारे रास्ते बन्द कर दिये।

भारत के सफल अन्तरिक्ष कार्यक्रमों का पूरा श्रेय श्रीमती गांधी को जाता है। उन्हीं के प्रयासों के फलस्वरूप आर्यभट्ट, भास्कर, रोहिणी के बाद इनसेट। बी के माध्यम से देश में मौसम की पूर्व जानकारी देने व दूरदर्शन के कार्यक्रमों को सुदूर इलाकों में पहुंचाना संभव हो पाया है।

श्रीमती गांधी अपने आपको राष्ट्र के प्रति समर्पित करके भारत के आत्मसम्मान व आत्मविश्वास की दुर्दम्य प्रतीक बन गई थी। देश की एकता व अखण्डता के लिए और प्रगति हेतु जो कुछ कार्य उन्होंने किये, उसके लिए राष्ट्र सदैव उनका ऋणी रहेगा। संकट की घडि़यों में बिना विचलित हुए इस विशाल लोकतांत्रिक देश का उसने जो कुशल एवं सफल नेतृत्व किया, वह चिरस्मरणीय रहेगा।

उड़ीसा में दिये अपने अन्तिम भाषण की ये पंक्तियों ’मुझे मौत से डर नहीं लगता। यदि मेरा जीवन देश की सेवा में अर्पित हो तो मुझे उसका रत्ती भर दुख नहीं होगा। मेरे खून की बूंद का हर एक कतरा राष्ट्र में नया रक्त संचार करेगा। उनके शब्द आज भी हमारे कानों में गंूज कर बरबस उनकी निडरता व साहसिकता का प्रमाण देती है। ऐसी थी वह प्रजातन्त्रा, आम आदमी, धर्मनिरपेक्षता, राष्ट्र की एकता व अखण्डता की प्रबल पक्षधर, देश के सम्मान की रक्षा में अपना सब कुछ न्यौछावर करने वाली एक महान शक्ति जिसका नाम इतिहास में अमर हो गया है।

(युवराज)

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