पंजाब में कांग्रेस के पन्थक एजेण्डे पर अल्पविराम

पंजाब में कांग्रेस के पन्थक एजेण्डे पर अल्पविराम

राकेश सैन

गुड़ खाना और गुडियानी से परहेज, धर्मनिरपेक्ष कांग्रेस का पंजाब की राजनीति में धर्म को लेकर यही सिद्धान्त रहा है, लेकिन अबकी बार देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी के पन्थक एजेण्डे पर अदालत ने अल्पविराम लगा दिया है। मामला सर्वोच्च न्यायालय में जाने की तैयारी में है और इस बात की पूर्ण सम्भावना है कि देश की सर्वोच्च न्यायपीठ इस पर पूर्ण विराम लगा देगी। पंजाब में कांग्रेस के नेतृत्व वाली कैप्टन अमरिन्दर सिंह सरकार के पन्थक एजेण्डे को उस समय करारा झटका लगा जब पंजाब-हरियाणा उच्च न्यायालय ने कोटकपूरा और बहिबलकलां गोलीकाण्ड पर गठित विशेष जांच दल की जांच रिपोर्ट को खारिज कर दिया।

सनद रहे कि 12 अक्तूबर, 2015 को फरीदकोट जिले के बरगाड़ी गांव के बाहर श्री गुरु ग्रन्थ साहिब के साथ बेअदबी की घटना सामने आई थी। इसके खिलाफ बड़ी संख्या में लोग एकत्रित हुए और पुलिस ने बल प्रयोग किया तो इसमें दो लोग मारे गए और 100 लोग घायल हुए। पुलिस का आरोप है कि प्रदर्शनकारियों ने पुलिस पर हथियारबन्द हो कर हमले किए थे जिसमें 50 से अधिक पुलिस वाले भी जख्मी हुए। पूरे मामले की जांच के लिए तत्कालीन अकाली-भाजपा सरकार के मुख्यमन्त्राी स. प्रकाश सिंह बादल ने न्यायाधीश (सेवानिवृत)रणजीत सिंह आयोग का गठन किया लेकिन सत्ता परिवर्तन होने के बाद कांग्रेस सरकार ने पंजाब पुलिस के महानिदेशक (आईजी) श्री कुंवर विजय प्रताप सिंह के नेतृत्व में विशेष जांच दल का गठन किया।

अब पूरे मामले में पंजाब सरकार को बड़ा झटका लगा है। पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने इस मामले की जांच के लिए गठित एस.आई.टी. की अभी तक की जांच रिपोर्ट को खारिज कर दिया। न्यायालय ने सरकार को इस पूरे मामले की जांच के लिए नए सिरे से एस.आइ.टी. गठित करने के आदेश दिए हैं। साथ ही यह भी कहा है कि नई एस.आई.टी. में आइजी श्री कुंवर विजय प्रताप सिंह को शामिल न किया जाए। उच्च न्यायालय के न्यायाधीश श्री राजबीर सेहरावत ने यह आदेश इस मामले में फंसे पंजाब पुलिस के अधीक्षक स. गुरदीप सिंह की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए हैं। गुरदीप ने वरिष्ठ अधिवक्ता स. आरएस चीमा के जरिए उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर कहा था कि श्री कुंवर विजय प्रताप सिंह इस पूरे मामले की जांच राजनीतिक संरक्षण में कर रहे हैं। उनका रवैया याचिकाकर्ता के प्रति भेदभावपूर्ण है।

पहले जब याचिकाकर्ता ने इस मामले में दर्ज प्राथमिकी को रद करने की मांग को लेकर न्यायालय में याचिका दायर की थी तब भी श्री कुंवर विजय प्रताप सिंह ने उन्हें यह याचिका वापस लेने की धमकी दी थी। लिहाजा, याचिकाकर्ता ने इस मामले की जांच कर रही एसआइटी से श्री कुंवर विजय प्रताप सिंह का नाम हटाए जाने की मांग की थी। इस पर न्यायालय ने पंजाब सरकार सहित पुलिस प्रमुख से पूछा था कि वह बताए क्या जांच कर रही एस.आइ.टी. में अब बदलाव किए जा सकते हैं या नहीं।

इस सवाल पर पंजाब सरकार और डी.जी.पी. ने न्यायालय में अपना जवाब सौंपते हुए कहा था कि याचिकाकर्ता एक संगीन मामले में आरोपी हैं वह कैसे जांच कर रही एस.आई.टी. पर आरोप लगा सकता है। अगर इस तरह के आरोपों से एस.आई.टी. में बदलाव किया गया तो इससे न सिर्फ जांच प्रभावित हो जाएगी, बल्कि एस.आइ.टी. का मनोबल भी आहत होगा। इसके बाद श्री कुंवर विजय प्रताप सिंह ने अपना जवाब दाखिल कर कहा था कि उन पर लगाए जा रहे सभी आरोप गलत हैं और वह इस मामले की पूरी निष्पक्षता, पारदर्शिता और वैज्ञानिक तरीके से जांच कर रहे हैं। गुरदीप सिंह के बाद पूर्व पुलिस प्रमुख श्री सुमेध सिंह सैनी और उप-महानिरीक्षक स. परमराज उमरानांगल ने भी इसी एस.आई.टी. जांच को अदालत में चुनौती दी थी। न्यायाधीश ने अब सरकार की सभी दलीलों को खारिज करते हुए इस मामले की एस.आई.टी. द्वारा अब तक की गई जांच को खारिज करते हुए नए सिरे से मामले की जांच के लिए एस.आई.टी. गठित किए जाने के आदेश दे दिए हैं।

याद रहे कि साल 2015 में पंजाब में एक के बाद एक हुई श्री गुरु ग्रन्थ साहिब की बेअदबी की घटनाओं से प्रदेश के लोग आहत व आक्रोशित थे। कोटकपूरा के गांव बहिबलकला में हुई इस तरह की घटना के बाद आक्रोशित लोगों का नेतृत्व पूरी तरह राज्य के कट्टरपंथियों के हाथों में आ गया जिन्होंने इसको लेकर अकाली-भाजपा गठजोड़ सरकार के तत्कालीन मुख्यमन्त्राी स. प्रकाश सिंह बादल व उपमुख्यमन्त्राी स. सुखबीर सिंह बादल को पन्थ विरोधी तक करार दे दिया। जैसा कि सभी जानते हैं कि पंजाब में कांग्रेस सदा से ही अपने राजनीतिक प्रतिद्वन्द्वियों अकाली दल बादल व भाजपा के खिलाफ कट्टरपन्थियों को प्रोत्साहन देती आई है। चाहे बादल सरकार ने एक आयोग का गठन कर पूरे मामले की जांच उसे सौंपी परन्तु विरोधी दलों के साथ-साथ कट्टरपन्थियों ने इस आयोग को गठन से पहले ही नकार दिया। आरोप लगाया गया कि आयोग के अध्यक्ष स. बादल के करीबी रहे हैं।

अकाली-भाजपा गठजोड़ को इन घटनाओं पर उपजे लोगों के आक्रोश का खामियाजा भी भुगतना पड़ा और 20178 के विधानसभा चुनाव में गठजोड़ आम आदमी पार्टी के बाद तीसरे स्थान पर खिसक गया और उसके पास विपक्ष का ताज भी नहीं रहा।

कांग्रेस ने चुनाव प्रचार अभियान के दौरान पूरे मामले की जांच करवाने का भरोसा दिलवाया था। इन्हीं कट्टरपन्थियों की मांग को मानते हुए कैप्टन सरकार ने आईजी श्री कुंवर विजय प्रताप सिंह के नेतृत्व में एसआईटी का गठन किया। अगर सरकार प्रशासनिक दृष्टि से निष्पक्ष जांच के लिए ऐसा करती तो किसी को कोई आपत्ति नहीं होती परन्तु कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने अपने राजनीतिक विरोधियों विशेषकर अकाली दल बादल के खिलाफ पन्थक एजेण्डा चलाते हुए उन्हें पन्थक मुद्दे पर ही घेरने का प्रयास किया। यहां यह बताना जरूरी है कि अकाली दल बादल राज्य में पन्थक राजनीति करता आया है और कैप्टन ने उसे उसके ही घर में घेरने का प्रयास किया।

याचिकाकर्ता के अनुसार, आईजी श्री कुंवर विजय प्रताप सिंह के नेतृत्व वाली एस.आई.टी. की प्राथमिक जांच रिपोर्ट की खामियां यह हैं कि यह पूरी तरह एकतरफा हैं और इनमें घायल हुए पुलिस वालों के बयान तक दर्ज नहीं किए जो अपनी ड्यूटी निभाते हुए कट्टरपन्थी प्रदर्शनकारियों की हथियारबन्द हिंसा का शिकार हुए। इन पुलिस वालों में कई तो मरणासन्न सीमा तक पहुंच कर बड़ी मुश्किल से बचे हैं। इससे इस बात को लेकर आशंका बलवती हो जाती है कि एस.आई.टी. पूर्व निर्धारित लक्ष्य पर काम कर रही थी और उसने दोनों पक्षों की सुनवाई नहीं की।

ऐसा नहीं है कि कांग्रेस पार्टी पहली बार पन्थक एजेण्डे को सामने रख कर काम कर रही है। अतीत में वह पहले भी ऐसा कर चुकी है और इसका खामियाजा पूरे देश को भुगतना पड़ा है। पिछले सत्तर के दशक में कांग्रेस के तत्कालीन नेतृत्व जिनमें पूर्व मुख्यमन्त्राी स. दरबारा सिंह, ज्ञानी जैल सिंह व पूर्व प्रधानमन्त्राी श्रीमती इन्दिरा गान्धी का नाम लिया जाता रहा है पर पंजाब में अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी अकाली दल को कमजोर करने के लिए कट्टरपन्थ को बढ़ावा देने के आरोप लगते रहे हैं। इसी कट्टरपन्थ के कारण राज्य लगभग दो दशकों तक आतंकवाद की आग में न केवल झुलसा बल्कि देश को पंजाब के पूर्व मुख्यमन्त्राी स. बेअन्त सिंह, पूर्व प्रधानमन्त्राी श्रीमती इन्दिरा गान्धी से लेकर 35 हजार लोगों का बलिदान करना पड़ा। इस आतंकवाद के चलते देश व प्रदेश के हृदय पर जो आंच आई उसके फफोले अभी तक ताजा हैं। कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने बेअदबी की घटनाओं के कारण उपजे जनाक्रोश से न केवल पिछले विधानसभा चुनाव में राजनीतिक लाभ उठाया बल्कि अब भी वे इसी तरह के ‘खेल‘्य के प्रयास में दिख रहे थे और आईजी श्री कुंवर विजय प्रताप सिंह की जांच रिपोर्ट को आने वाले विधानसभा चुनाव में कैश करवाने की फिराक में थे, जिस पर अदालत ने फिलहाल अल्पविराम लगा दिया है।

(युवराज)

(ये लेखक के निजी विचार है। इससे जनलेख प्रबंधन का कोई लेना देना नहीं है।)

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