हसन जमालपुरी
इस्लाम न तो रहस्यवादी मानवता का विरोधी। इस्लाम में रहस्यवाद सूफीवाद के माध्यम से आया है। खालिस इस्लाम मानवता के प्रति बेहद जिम्मेदार धार्मिक चिंतन हैं। इस्लाम के पवित्र ग्रंथ कुरान में साफ तौर पर लिखा गया है कि कोई व्यक्ति किसी का स्थाई दुश्मन नहीं होता है। इसलिए मानवता के प्रति उत्तरदायी हर एक व्यक्ति को हर वक्त यह समीक्षा करते रहना चाहिए कि आखिर कोई व्यक्ति या समूह यदि उसका दुश्मन है तो उसका कारण क्या है? कारण का पता लगाकर उस व्यक्ति या समूह के प्रति सकारात्मक पहल करने से दुश्मनी दोस्ती में बदल जाती है।
कुरान मजीद के 41वें अध्याय की 34वीं आयत के अनुसार, ‘‘अच्छे व बुरे कार्य एक समान नहीं हैं। बुरे कामों के बदले अच्छे कामों से जवाब दो। तुम देखोगे कि जो कभी तुम्हारा दुश्मन था, वह आज तुम्हारा सबसे अच्छा दोस्त बन गया है।’’ कुरान की यह आयत हर एक व्यक्ति के लिए है, चूकि मुसलमान कुरान के मानने वाले हैं इसलिए इस चिंतन पर चलना और अन्य लोगों को उसपर चलाना उनका धार्मिक दायित्व हो जाता है।
कुराम की यह आयत प्रकृति के नियम के अनुकूल भी है, जिसके अनुसार न तो कोई स्थायी दुश्मन है और ना ही कोई स्थायी दोस्त। यहां लोगों को दो श्रेणियों में बांटा जा सकता है। कुछ वे जो वास्तव में आपके मित्र हैं और दूसरे वे जो आपके मित्र बन सकते हैं। हमें इस सच्चाई को समझना चाहिए और सही योजना बनाकर लोगों की पहचान करनी चाहिए। यदि ऐसा करते हैं तो परिवर्तन साफ दिखने लगेगा।
बहरहाल, वे जो कुछ लोग ‘जिहाद’ के नाम पर हिंसा में लिप्त होते हैं, वे चीजों को उसी प्रकार स्वीकार करते हैं जैसे वह दिखती हैं। अर्थात, अगर कोई दुश्मन प्रतीत होता है तो वे उसे तुरंत अपना दुश्मन घोषित कर देते हैं और उसके खिलाफ खूनी-जंग छेड़ देते हैं। जबकि कुरान ऐसा नहीं कहता है। दोस्ती की गुंजाइस हर वक्त है। यदि सही दिशा में सही मन से पहल करें तो परिणाम जरूर मिलेगा।
यह उनकी असफलता का उदाहरण है कि वे चीजों को उनकी तह में नहीं देख पाते। अगर वे चीजों को गहराई से देखें तो पाएंगे कि जिन्हें वे अपना शत्रु समझते थे, असलियत में वह उनका सबसे प्रिय मित्र बन सकता है। इसलिए दुश्मनों को शांतिप्रियता से मित्र बनाना चाहिए। सच पूछिए तो यह विकास और उन्नयन का रास्ता भी है। कोई कितना भी पूर्वाग्रह से ग्रस्त हो, यदि पहल की जाए तो उसके पूर्वाग्रहों को धरासाही किया जा सकता है। इतिहास में इसके कई उदाहरण हैं।
इसके अतिरिक्त, वैज्ञानिक खाजों ने यह साबित किया है कि पूरी दुनिया के मनुष्य एक ही परिवार के अंग हैं। यदि किसी व्यक्ति या जाति के खिलाफ युद्ध का ऐलान किया जाता है तो वह पूरी मानवता के साथ युद्ध होता है। वह अपने खुद के परिवार के खिलाफ जंग कर रहा होता है। इस सच्चाई को कुरान में इस तरह बताया गया है, ‘‘जो किसी मनुष्य को किसी का कत्ल करने या अपने रहने के स्थान पर भ्रष्टाचार फैलाने के अलावा मारता है, तो इसे पूरी मानवता को मारने के समान समझा जाएगा और जो कोई किसी मनुष्य की जान बचाता है तो उसे पूरी मानवता को बचाने के समान माना जाएगा।’’ (5ः32)
इस प्रकार हम देखते हैं कि इस्लाम मानवीय गुणों से भरा धार्मिक समूह है लेकिन कुछ सिरफिरे इस चिंतन की गलत व्याख्या कर अनुयायियों को दिग्भ्रमित कर दे रहे हैं। इसलिए इस्लाम में आस्था रखने वालों को अपने इमान, अपने कुरान और अपने रशूल पर भरोसा करते हुए कुरान की असली व्याख्या एवं सच्चे व्याख्याकार पर भरोसा करनी चाहिए।
(लेखक इस्लामी चिंतन के विद्वान हैं। इनके विचार अपने निजी हैं। इससे जनलेख प्रबंधन का कोई लेना-देना नहीं है।)