केरल की राजनीति में परिवर्तन के लक्षण, पशु हलाल का जोरदार विरोध

केरल की राजनीति में परिवर्तन के लक्षण, पशु हलाल का जोरदार विरोध

के. विक्रम राव

केरल में ईसाई समुदाय के आस्थावानों ने हलाल गोश्त के विरुद्ध सार्वजनिक अभियान छेड़ दिया है। इसके संघर्षरत प्रणेता हैं, कोट्टायम से छह बार (25 वर्षों तक) विधायक रहे तथा पुराने कांग्रेसी नेता पीसी जार्ज। वे कभी प्रदेश कांग्रेस के महासचिव भी थे। जार्ज, अधुना केरल जनपक्षम (सेक्युलर) पार्टी के पुरोधा भी हैं। जार्ज का तर्क है कि हलाल प्रक्रिया मूक पशुओं के प्रति नृशंस व्यवहार है। उन्हें असह्य पीड़ा देता है और अमानवीय है। इसी कारणवश हलाल को निषिद्ध कर देना समय की पुकार है। एक फोन वार्ता में जार्ज साहब ने बताया कि वर्षों से वे इस दिशा में संघर्षरत हैं।

उधर केरल भारतीय जनता पार्टी ने भी मार्क्सवादी मुख्यमंत्री पिनरायी विनयन से हलाल पद्धति को अमानुषिक करार देकर प्रतिबंधित कर देने की मांग की है। प्रदेश नेतृत्व का दावा है कि हलाल के प्रतिकार में जनान्दोलन तीव्र कर दिया जायेगा। भाजपा का आन्दोलन मीडिया में व्याप्त उस प्रचार मुहिम का नतीजा है जिसमें मुस्लिम व्यापारी संप्रदाय में हलाल के विषय में तीव्र मतभेद व्यापा था।

खुद इस मसले पर केरल मुस्लिम लीग भी वैचारिक रुप से विभाजित हो गयी है। भाजपा प्रदेश महामंत्री पी. सुधीरन ने तिरुवनंतपुरम में पत्राकारों को बताया कि हलाल प्रथा भी तीन तलाक की भांति एक घृणित सामाजिक दुर्गुण है। विश्व हिन्दू परिषद के केरल प्रदेश उपाध्यक्ष एसजेआर कुमार ने केरल उच्च न्यायालय में हलाल पर रोक के लिये एक याचिका भी दायर कर दी है। उन्होंने सबरीमला मंदिर में खाण्डसारी को प्रसाद के रुप में वितरण करने का भी घोर विरोध किया है।

भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष के. सुधीरन ने खेद व्यक्त की है कि हाल ही में हलाल मांस का उपभोग बढ़ा है। इस हलाल संस्कृति का खात्मा अब आवश्यक हो गया है। इस बीच केरल मुस्लिम समाज ने वायनाड (राहुल गांधी का संसदीय चुनाव क्षेत्रा) में हलाल के पक्ष में उग्र अभियान छेड़ा है। भाजपा का आरोप है कि आतंकवादी पापुलर फ्रंट आफ इंडिया (पीएफआई) से संबद्ध सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी इस हलाल के के समर्थन में माहौल बना रही है। इसी पीएफआई के कुछ लोग (एक कथित पत्राकार के साथ) हाथरस काण्ड में कुछ माह पूर्व नजरबंद किये गये थे।
यूं तो यहूदी मतावलंबी भी हलाल के दूसरे रुप ‘कोशर‘ को मानते हैं अर्थात पुराने यहूदी पद्धति का ही हलाल इस्लामी रुप है। उसके प्रतिकार में केरल के गैरइस्लामी मांसाहारियों ने झटका पद्धति के पक्ष में जोरदार अभियान छेड़ दी है। उनका दावा है कि झटके में पशु को पीड़ा या कष्ट नहीं होता है। इसमें न तो अनावश्यक तौर पर रक्त बहाया जाता है और न मृत्यु में विलम्ब के कारण दर्द होने दिया जाता है। भारत में जैन तथा सनातनी आस्थावान हलाल का निरंतर विरोध करते आए हैं। अणुव्रत आंदोलनकारी तो शाकाहार पर बल देते रहे हैं।

हलाल से मेरा घोर विरोध मानवीय संवेदनाओं के आधार पर है। वही दया तथा करुणा वाला गुण है। सहृदयता का। आह भरने पर ही मानवीय भावना ताकतवर होती है। यदि हृतंत्राी कठोर हो तो फिर पशु के प्रति सहानुभूति कैसी? हलाल निहायत नृशंस, कठोरतम तरीका है हनन का। कैसे हलाल करनेवाला नरम इंसानियत पालेगा?

एक बार का किस्सा है अहमदाबाद में मेरे एक मित्र रहते थे, रऊफ वलीउल्लह। गुजरात प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सचिव (1970) थे। उनका पार्टी कार्यालय साबरमती आश्रम रोड पर हमारे ‘टाइम्स आफ इंडिया‘ भवन से लगा हुआ था। अक्सर बैठकी होती थी। वे लखनऊ में कुछ दिन बिताकर अहमदाबाद लौटे। मिलने पर बताया लखनऊ में गोमांस तो खुलेआम उपलब्ध है। वे बोले कि उन्हें उनके मुस्लिम मित्र ने डिनर दिया। गोश्त बड़ा कड़ा लगा। उन्होंने पूछा कि क्या यह गाय का गोश्त है? मित्र ने स्वीकारा। फिर कहा, ‘बकरे का गोश्त तो हम बीमारों को खिलाते है, जैसे नरम खिचड़ी।‘

गोवध बंदी का जनान्दोलन जनसंघ ने यूपी में 1956 में चलाया था, मगर फिर भी गोमांस बेरोकटोक बिकता रहा। अटल बिहारी वाजपेयीजी ने अपनी राजनीतिक जिन्दगी शुरु की थी लालबाग में पार्टी सत्याग्रह करके। उनका नारा था – ‘कटती गौएं करें पुकार, बंद करो यह अत्याचार।‘ मगर गौएं पांच दशकों तक कटती रही और उधर अटलजी सत्ता के सोपान पर सीढ़ी दर सीढ़ी निर्बाध चढ़ते रहे। भला हो नाथ संप्रदाय के आत्मबलवान, तेजतर्रार भाजपायी मुख्यमंत्री महंत योगी आदित्यनाथ का। उनकी काबीना ने गोवध निवारण कानून 1955 को पूर्णतया कठोरतम गतवर्ष (2020) बना डाला। अब गौमाता का हलाल क्या, उसे पीटा भी नहीं जा सकता है।

मानव संवेदना से जुड़ी मेरे परिवार की ही घटना है। एक बार मेरा कनिष्ठ पुत्र विश्वदेव (तब वह कम उम्र का था) रुआंसा घर पर आया। कारण पूछने पर उसने बताया कि उसके स्कूटर के पहिये के तले गिलहरी दब गयी। मैंने उसे ढांढस बंधाते हुए कहा कि ‘मूक गिलहरी के दर्द की तुम्हें अनुभूति हुयी। तुम सहृदय हो, मानवीय हो। मुझे तुम पर गर्व है।‘

यही प्रश्न मेरा उन सबसे है जो पशुओं को कटते देखते हैं। वे मानवीय संवेदनशीलता के प्रति निष्ठुर हैं। बेदिल हैं। जघन्य हत्यारों से भिन्न नहीं हैं। वे लोग मानव नहीं हो सकते। अतः हलाल का विरोध मेरे मनुष्यत्व का प्रमाण है।

(आलेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं। इससे जनलेख प्रबंधन का कोई लेनादना नहीं है।)

(युवराज)

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