रौशनी खान
कोई व्यक्ति क्या पहनता है या क्या खाता है यह उसका निजी मामला है और हमारा संविधान उसे यह अधिकार देता है लेकिन भारत का संविधान अपने निजी अधिकारों का अतिक्रमण करने की इजाजत नहीं देता है। आप एक ऐसे जीवन की कल्पना करें जहां आपको पितृसत्ता, गरीबी से लड़ना हो, अपने आसपास की रूढ़ियों को तोड़ते हुए खुद को शिक्षित करना हो-कठिन है, है ना? यह वास्तव में इस देश की लाखों मुस्लिम महिलाओं के लिए एक वास्तविकता है। हिजाब पितृसत्ता का ऐसा ही एक प्रतीक है, जिसका इस्लाम से कोई लेना-देना नहीं है। जब आप एक भारतीय मुस्लिम महिला हैं तो शिक्षा प्राप्त करना निश्चित रूप से या तो एक विशेषाधिकार या संघर्ष है। एनएसएसओ के हालिया आंकड़ों ने इसकी पुष्टि भी कर दी है। मुसलमानों में उच्च स्तर की निरक्षरता और सामान्य शिक्षा का निम्न स्तर है, जो समुदाय को गरीबी के दुष्चक्र में फंसाता है। क्या आपको लगता है कि हिजाब पहनना शिक्षा से ज्यादा महत्वपूर्ण है? वैसे मैं केसरिया गमछों के बारे में भी मेरी यही राय है।
मुझे आश्चर्य है कि एक महिला के लिए शिक्षा के बिना किसी भी तरह के षड्यंत्र को समझना कितना मुश्किल होता है। पाखंड यह है कि मुस्लिम संगठनों, विशेष रूप से वो जिन्होंने अपने संगठन में महिलाओं का भी एक विंग बना रख है और मुस्लिम महिलाओं के लिए बार-बार चिंता दिखाते हैं, लेकिन उन्हें शिक्षित या प्रशिक्षित करने का ख्याल कभी उनके दिमाग में नहीं आया। क्या हिजाब वाकई हमारे लिए एक समस्या है? तीन तलाक का उन्मूलन इस्लाम के पितृसत्तात्मक स्वरूप का खात्मा है। अब मुस्लिम महिलाओं को किसी भी सांत्वना या वादे की जरूरत नहीं है। वह कानूनी तरीके से अपना हक ले सकती है और समाज में धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक सीमाओं में जो प्रताड़ित होती थी उससे छुटकारा प्राप्त कर सकती है। इसे केवल मुस्लिम महिलाओं और सामान्य रूप से महिलाओं की स्थिति के अवलोकन के माध्यम से पर्याप्त निश्चितता के साथ देखा जा सकता है। क्या आपको लगता है कि हिजाब वास्तव में हमारे लिए एक मुद्दा है?
गजाला जमील ने अपनी पुस्तक ‘मुस्लिम वीमेन स्पीक आॅफ ड्रीम्स एंड शेकल्स’ में सटीक रूप से स्पष्ट किया है कि समस्या यह है कि सार्वजनिक क्षेत्र में भारतीय मुस्लिम महिलाओं की आवाज विलीन हो जाती है, घुल जाती है और इस तरह मुस्लिम पुरुष आवाज में खो जाती है। उनकी आवाज उठाना हिजाब पहनने से ज्यादा जरूरी है। यह सच है कि पितृसत्ता के संबंध में भारतीय मुस्लिम महिलाओं का अनुभव गैर-मुस्लिम महिलाओं से अलग है। इस अंतर में सबसे महत्वपूर्ण उनकी मुक्ति का राजनीतिकरण है। क्या आपको लगता है कि हिजाब वास्तव में उनके लिए एक मुद्दा है? मुस्लिम महिला सशक्तिकरण में पहला और शायद सबसे महत्वपूर्ण कदम हिजाब पहनना नहीं है, बल्कि पुरुषों की आवाजों (मुस्लिम या अन्य) बिना दबाये हुए उनकी आवाज को मंच देना है। इस्लाम के साथ अंत:क्रिया और अंतत: व्यापक पितृसत्ता के साथ मुस्लिम महिलाओं की दुर्दशा को देखने की जरूरत है।
रामफुल ओहलान द्वारा ‘भारत में मुस्लिम महिला: जनसांख्यिकी, सामाजिक आर्थिक और स्वास्थ्य असमानताओं की स्थिति’ शीर्षक से एक पेपर भारत में मुस्लिम महिलाओं द्वारा सामना की जाने वाली जनसांख्यिकीय, सामाजिक-आर्थिक और स्वास्थ्य असमानताओं का अध्यन किया और निष्कर्ष निकाला कि भारत के कुल महिला कार्यबल (देश) के अनुपात में मुस्लिम महिला कार्यबल का हिस्सा कुल महिला जनसंख्या से कम है। असली सशक्तिकरण हिजाब अपनाने में नहीं है। उसी पेपर के अनुसार, मुस्लिम महिलाएं अन्य अल्पसंख्यक समुदायों की तुलना में गरीब हैं। हिजाब पहनने से उनके परिवार का पेट नहीं भरने वाला था। रामफुल ओहलान द्वारा उसी पेपर के अनुसार, मुस्लिम महिलाओं के पास आर्थिक प्रबंधन या संसाधन का भी घोर अभाव है। घरेलू अर्थशास्त्र में उनकी नगण्य भागीदारी है। हिजाब अपनाने से उनके हालात बदलने वाले नहीं। रामफुल ओहलान द्वारा उसी पेपर में सिफारिश की गई है कि मुस्लिम महिलाओं के उद्देश्य से शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने, स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच में सुधार और पेशेवर कौशल में सहायता प्रदान करने की तत्काल आवश्यकता है। हिजाब अपनाने से उनके स्वास्थ्य की स्थिति मजबूत नहीं होने वाली थी।
मुस्लिम महिलाएं विकास के लिए हिजाब नहीं चाहती हैं, उन्हें सरकारी नीतियों की आवश्यकता है, जो उनके सशक्तिकरण, भारतीय कार्यबल में उनकी भागीदारी, उनके स्वास्थ्य, उनके जीवन स्तर, उनकी साक्षरता और उनकी वित्तीय स्थिरता में सहायता करें। मुस्लिम समुदाय के भीतर धार्मिक और आधुनिक शिक्षा के बीच संतुलन बनाने की अधिक आवश्यकता है ताकि इसकी महिला आबादी अपने लिए एक उज्जवल भविष्य सुरक्षित करने में सक्षम हो ताकि वे सामुदायिक कल्याण और विकास में योगदान दे सकें। मुझे लगता है यह उक्साने वाली बात है। मुस्लिम संगठनों को हिजाब की ओर ध्यान देना बंद कर देना चाहिए और महिला शिक्षा के प्रति ध्यान केन्द्रित करनी चाहिए। भारतीय मुस्लिम महिलाओं को अपने मूल्य, स्थान और जिम्मेदारी को समझने और बदलती परिस्थितियों के अनुसार खुद को तैयार करने की जरूरत है। हिजाब पहनना इस्लाम में महिलाओं का सबसे महत्वपूर्ण पहलू नहीं है, बल्कि उनको एक अलग और स्वतंत्र पहचान के रूप में मान्यता और कई आर्थिक अधिकार जैसे कि संपत्ति का अधिकार, विरासत साझा करना, अपने भविष्य को सवांरने के लिए विभिन्न आर्थिक गतिविधियों में संलग्न होना, आदि शिक्षाओं की जरुरत है। इसे पवित्र कुरान में भी जायज ठहराया गया है।
हिजाब के इस्लाम का अभिन्न अंग होने का प्रचलित विचार इस्लाम की शिक्षाओं की अज्ञानता का परिणाम है। चरमपंथी चाहते हैं कि हिजाब के मुद्दे को गति मिले, ताकि उन्हें पर्दा के नाम पर मुस्लिम महिलाओं को दबाने और समाज में अपने आंदोलन को कम करने का मौका मिल सके। वर्तमान में, हिजाब पहने बिना हजारों मुस्लिम महिलाएं सफलतापूर्वक व्यवसाय, बहुराष्ट्रीय कंपनियां चला रही हैं और विभिान्न अस्पतालों, बैंकों, स्कूलों, कॉलेजों और कई अन्य अनुकूल स्थानों में काम कर रही हैं।
“और जो कोई नेक अच्छे काम करता है – पुरुष या महिला – चाहे वो काम कितना छोटा ही क्यों न हो और अल्लाह की एकता में सच्चा ईमान रखता है, वह जन्नत में प्रवेश करेगा।” (कुरान, 4:124) क्या हिजाब पहनना आपके लिए जन्नत का रास्ता आसान करने के लिए आवश्यक है? “जिस व्यक्ति को बेटी पैदा होती है और वह सिर्फ लड़कों को तरजीह नहीं देता है, अल्लाह उसे स्वर्ग का इनाम देगा।” (हदीस)। निश्चित रूप से इस आयत में बेटियों का जिक्र करते हुए हिजाब का जिक्र नहीं किया गया था।इस्लामी शिक्षाओं के अनुसार, महिलाओं को वधू मूल्य (मेहर) के रूप में पैसा मिलता है जो उन्हें अपने पति से मिलता है। पैतृक संपत्ति में भी उसका वैध हिस्सा है। क्या हिजाब पहनना पैतृक संपत्ति में अपना हिस्सा पाने की कसौटी है?
इस्लामी शिक्षा के साथ-साथ महिलाओं को औपचारिक शिक्षा की भी जरूरत है। यदि एक महिला भी शिक्षा से प्रबुद्ध हो जाती है, तो उसका पूरा परिवार प्रबुद्ध हो जाएगा। इस्लाम में महिलाओं के लिए विशेष अधिकार निर्धारित किए गए हैं, जो उनकी स्थिति को बढ़ाते हैं और उन्हें सभी आयामों से सशक्त बनाते हैं और हिजाब इस सशक्तिकरण का अभिन्न अंग नहीं था।
(आलेख में व्यक्त विचार लेखिका के निजी है। इससे जनलेख प्रबंधन का कोई लेना-देना नहीं है।)