गौतम चौधरी
सुरक्षा एजेंसियों के द्वारा पाॅपुलर फ्रंट आॅफ इंडिया के ठिकानों पर छापेमारी को पहले सामान्य तौर पर लिया गया लेकिन जब सच्चाई सामने आई तो पूरा देश स्तब्ध रह गया। समाचार माध्यमों में इस संगठन के बारे में जब यह जानकारियां आने लगी कि यह देश को तोड़ने और लोकतांत्रिक भारत को इस्लामिक देश बनाने की योजना पर काम कर रहा है तो इस संगठन के प्रति सहानुभूति रखने वालों में भी बेचैनी देखने को मिली। वह अपने आप को छला महसूस करने लगा। पाॅपुलर फ्रंट आॅफ इंडिया को सार्टफार्म में पीएफआई के नाम से जाना जाता है। इस संगठन के बारे में पहले भी खबरें आती रही है। खासकर दक्षिण के प्रांतों में इसके गैरकानूनी कारनामों पर चर्चा होती रही है। हालांकि यह संगठन अपना आवरण बेहद सहिष्णु बना रखा था और आपने आप को सेवाभावी संगठन के रूप में प्रस्तुत करता था लेकिन सेवा की आड़ में पीएफआई भारत में नए प्रकार के उग्रवाद को प्रश्रय दे रहा था।
भारतीय सुरक्षा एजेंसी के द्वारा प्राप्त जानकारी में यह बताया गया है कि पीएफआई के एक बड़े नेता ने साफ तौर पर यह स्वीकार किया है कि केरल के प्रथनामथिता जिला का पदम जंगल, कोल्लम जिला का सस्थमकोटा, राजस्थान का सवाई माधोपुर का घन जंगल एवं पुणे का ब्लू बेल स्कूल में एक बात सामान्य है कि इन सभी जगहों पर चरमपंथी संगठनों पीएफआई का प्रशिक्षण स्थल है। पीएफआई अपने कार्यकर्ताओं को सामान्य लड़ाई के साथ-साथ हथियारों का भी प्रशिक्षण देता है। वह अपने दुश्मन को परास्त करने के लिए किसी भी स्तर पर जा सकता है। पीएफआई की शब्दावली में शत्रु यानी दुश्मन की परिभाषा जानना बेहद जरूरी है। यह भी जानना जरूरी है कि वह अपने कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित कैसे करता है।
पीएफआई अपने कैडरों के चयन और प्रशिक्षण के लिए व्यापक विधि अपनाता है। सर्वप्रथम, नव चयनितों को सांप्रदायिक दंगे का क्लिप दिखाया जाता है उसके उपरांत प्रशिक्षक उनसे मुखातिब होते हैं। यही अभ्यास का पालन अलग-अलग समूहों के साथ किया जाता है। प्रशिण के दौरान एक समूह में से दस सदस्यों को चुना जाता है। इसके बाद उसे यह बताया जाता है कि भारतीय मुसलमानों का सबसे बड़ा दुश्मन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ है और उसे इस संगठन से अपने समाज की रक्षा करनी है। चयनित उम्मीदवारों को बाद में गहन प्रशिक्षण के लिए किसी गुप्त स्थान पर ले जाया जाता है। उसे धार्मिक शिक्षा के साथ ही साथ गुरिल्ला लड़ाई की शिक्षा भी दी जाती है। यही नहीं उसे खतरनाक हथियारों के संचालन से लेकर पारंपरिक हथियारों के संचालन की शिक्षा दी जाती है। अंतिम रूप से चयनित व्यक्तियों पर यह भी नजर रखी जाती है कि वो सुबह की इबादत समय से कर रहे हैं या नहीं।
इन 10 के समूह को बाद में उनके गृह जिलों के आधार पर दो भाग में बांटा जाता है। इसके बाद उन्हें शारीरिक प्रशिक्षण और जिहार पर उचित कक्षाएं दी जाती है। शारीरिक प्रशिक्षण 6 महीने तक हफ्ते में दो बार दी जाती है और यदि कोई भी मानसिक और शारीरिक अक्षमता दिखाता है तो उन्हें प्रशिक्षण से बाहर निकाल दिया जाता है। बचे हुए प्रतिभागियों को अगले चरण के प्रशिक्षण के लिए भेज दिया जाता है। अगले चरण में प्रशिक्षुओं को जोन, जिसमें 4 जिले होते हैं बाँटा जाता है। जोनल स्तर पर चुने गए उम्मीदवारों को फिर राज्य स्तरीय कैंप में भेजा जाता है, जहां पर प्रशिक्षुओं को गहन प्रशिक्षण दिया जाता है। यहां के प्रशिक्षण में विरोधियों पर घातक रूप से हमले की ट्रेनिंग दी जाती है। इसमें छुरी के इस्तेमाल का प्रशिक्षण बेहद पेशेवर तरीके से दिया जाता है। इस प्रशिक्षण में दुश्मन की छाती, लीवर एवं किडनी को हानि पहुंचाने पर विशेष जोर दिया जाता है। विरोधियों के छाती और पेट पर नंगे हाथों से हमला करने के लिए विशेष प्रशिक्षण दिया जाता है। जिन्होंने अपना शारीरिक प्रशिक्षण सफलतापूर्वक समाप्त कर लिया उन्हें दो गुप्त विभागों में बाँटा जाता है जिनमें एक सर्विस विभाग वरिष्ठ पीएफआई नेतृत्व की सुरक्षा के लिए और दूसरा रिलीफ विभाग, जिसमें लक्ष्य बनाकर विरोधियों पर हमले के लिए भेजा जाता है।
पीएफआई अपने प्रशिक्षित कार्यकर्ताओं को एक-दूसरे के बारे में जानकारी नही ंदने की हिदायत देते हैं। यही नहीं उसकी पहचान भी गुप्त रखने की व्यवस्था होती है। राज्य स्तरीय शिविर के प्रतिभागियों को विशेष निर्देश दिए जाते हैं कि वो खुद का परिचय गुप्त रखे ताकि यदि कोई व्यक्ति फिल्ड आॅपरेशन के दौरान पकड़ा जाए तो वो दूसरों का नाम उजागर न कर सकें। उजागर होने से बचने के लिए आॅपरेशन की योजना बनाने से लेकर उसके निष्पादन तक का कोई भी लिखित ब्यौरा नहीं रखा जाता है। यह पीएफआई के कार्यप्रणाली और भारत के आंतरिक सुरक्षा की जटिलताओं का विभिन्न सवाल खड़े करता है।
इस प्रकार के अच्छे प्रशिक्षण, उच्च स्तर की गोपनियता एवं लक्ष्य बनाकर हत्या करने की पीएफआई की तकनीक भारत के कानून व्यवस्था को तोड़ने और प्रशासनिक ढाॅंचे को ध्वस्त करने की क्षमता रखता है। कर्नाटक के डी.जी हल्ली पुलिस स्टेशन पर हिंसा या केरल के आरएसएस के प्रमुख कार्यकर्ता संजीत की हत्या की बात को ध्यान में रखा जाए तो पीएफआई पर सख्ती जरूरी थी। सरकार समय रहते कार्रवाई न करती तो यह भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए घातक साबित हो सकता था।