सूफी मोहम्मद कौसर हसन मजीदी
इस्लाम न तो आधुनिकीकरण का विरोधी है और न ही खेल-कूद का। मासलन, इस्लाम उन बातों से दूर रहने की बात करता है जो नैतिकता के विरुद्ध है। पवित्र कुरान में बारमबार सामाजिक बुराइयों से दूर रहने की बात कही गयी है। जिसमें कोई बुराई हो, इस्लाम उस सोच को सोचने से भी मना करता है। पवित्र कुरान में लिखा हुआ है, ऐ ईमान वालों बहुत गुमानों से बचो, कहीं कोई गुमान गुनाह न हो जाए।
गुनाहों और बुराइयों से दूर रहने के फरमानों को कुछ कट्टरपंथियों ने इस कदर तोड़-मरोड़ कर पेश किया है, जिससे यह यह साबित होने लगता है कि इस्लाम बहुत ही कट्टर चिंतन को प्रश्रय देता है, जबकि ऐसा कुछ भी नहीं है। इस्लाम सरल है और सरलता को प्रेरित करता है, ‘‘पवित्र कुरान के तीसरे अध्याय, सुरा दो आयत 255 निर्देशित करते हुए कहता है कि ला इकराहा फिलदिन यानी कुछ जबरदस्ती नहीं।’’
यकीनन इस्लाम उस चीज से मना करता है, जिससे बंदे और माबूत के संपर्क में कमी आए। यानी नमाज से दूर करने वाले अमलियात से बचने को इस्लाम प्रेरित करता है, जिसे पवित्र कुरान में लह्व लअब कहा गया है। अक्सर कुछ कट्टरपंथी इसका अनुबाद खेल-कूद से कर देते हैं, जो सरासर गलत है। इस्लम किसी भी तरह से खेल का विरोधी नहीं है, बल्कि कालांतर में इस्लामी विद्वान उन खेलों को महत्व देते थे जिनसे शारिरिक विकास हो और मनुष्य बलबान बने। घुड़सवारी, कुश्ती, तैराकी, पोलो जैसे खेल इस्लामी शासन-प्रशासन में प्रश्रय पाते रहे हैं। फन सिपहगिरी यानी सैन्य विज्ञान मध्य काल में इस्लामी शिक्षण व्यवस्था का अभिन्न अंग रहा है। नए-नए आविष्कार और ज्ञान को इस्लाम ने सदैव प्रोत्साहित किया है। कालांतर में इस्लामी वैज्ञानिकों द्वारा अजेय किलों को भेदने के लिए मिंजनिक नामक अस्त्र बनाया गया था, जिसे विकसित करते हुए उसी माॅडल पर तोप बनाई गयी जो विकसित होते होते टैंक का रूप धारण कर चुकी है।
स्पष्ट है कि इस्लाम सामाजिक बुराइयों से दूर रहने की बात करता है। उन विचारों से दूर रहने का आदेश देता है, जो सामाजिक बुराई को जन्म देते हैं। पवित्र कुरान में अल्लाह मुसलमानों को संबोधित करते हुए कहता है,‘‘ऐ इमान वालों अल्लाह तुम पर अजाब क्यों करेगा जब तुम उसके फरमान मानोंगे, तो वो तुम्हें बक्श देगा और जन्नत में ले जाएगा और अनकरीब तुम्हें अपना दीदार कराएगा।
(लेखक सूफी इस्लामिक चिंतक हैं। इसके साथ ही प्रभावशाली अधिवक्ता हैं। मजीदी साहब सूफी खानकाह एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी हैं। इनके विचार निजी हैं। इससे जनलेख प्रबंधन का कोई लेनादेना नहीं है।)