धर्म के नाम पर मुस्लिम युवतियों की शिक्षा के साथ खिलवाड़

धर्म के नाम पर मुस्लिम युवतियों की शिक्षा के साथ खिलवाड़

हसन जमालपुरी

शिक्षा हर राष्ट्र के समाज को आकार देने में बड़ी और महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। वास्तव में, यह किसी भी समाज और देश के विकास का आधार है। द इंडियन एक्सप्रेस के एक हालिया सर्वेक्षण से पता चलता है कि हिजाब विवाद के कारण कर्नाटक में मुस्लिम विशेष रूप से मुस्लिम महिला छात्रों को सार्वजनिक संस्थानों को छोड़ना पड़ रहा है और निजी कॉलेजों में दाखिला लेने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। यह कितना खतरनाक है इसकी कल्पना नहीं कर सकते हैं। क्योंकि एक ओर सरकार अल्पसंख्यकों खासकर मुसलमान महिलाओं के लिए बेहतर से बेहतर और सस्ती शिक्षा की व्यवस्था कर रखी है वहीं दूसरी ओर खुद के पुरातन सोच के कारण हमारा समाज उस सस्ती व्यवस्था को न प्राप्त कर मंहगी व्यवस्था को अंगीकार करने में लगा है। इससे कई प्रकार के दुष्परिणाम देखने को मिलेंगे।

हमारा समाज स्वाभाविक रूप से कमजोर समाज है। हमारी आर्थिक स्थिति का जायजा पहले भी लिया जा चुका है। भारत सरकार के द्वारा गठित सच्चर समिति ने मुसलमानों के सामाजिक आर्थिक स्थिति पर बाकायदा एक रिपोर्ट जारी की थी और उसी रिपोर्ट के आधार पर पूर्ववर्ती डाॅ. मनमोहन सिंह की सरकार ने अल्पसंख्यक महिलाओं के लिए कई कल्याणकारी योजनाएं प्रारंभ की। यही नहीं वर्तमान नरेन्द्र मोदी की सरकार ने भी मुसलमान महिलाओं के लिए कई बड़ी कल्याणकारी योजना चला रखी है। हमारे समाज के अधिकतर मुसलमान अपनी बच्चियों के लिए निजी शिक्षण संस्थान के माध्यम से बेहतर शिक्षा देने में असमर्थ हैं लेकिन अब उन्हें मजबूर होना पड़ रहा है। सच तो यह है कि हालिया सर्वेक्षण से यह साबित हो गया है कि मुसलमानों ने खुद शिक्षा के अधिकार को धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार के विरुद्ध खड़ा कर लिया है।

सर्वेक्षण के अनुसार, कर्नाटक के उडुपी जिला, जो 2022 के हिजाब विरोध का केंद्र था, ने सरकारी कॉलेजों से निजी प्री-यूनिवर्सिटी कॉलेजों (पीयूसी) में मुस्लिम छात्रों का बड़ी तेजी से प्रवासन देखने को मिला है। 2022-23 में सरकारी पीयूसी में मुस्लिम लड़कों का नामांकन घटकर आधा (210 से 95 हो गया), जबकि मुस्लिम लड़कियों का 91 नामांकन हुआ है, जो पहले की अपेक्षा बेहद कम है। इससे पहले लड़कियों का नामांकन 178 हुआ था। निजी पीसी में नामांकन में वृद्धि से इस गिरावट को एक साथ ऑफसेट किया गया है। ये आंकड़े खतरनाक संकेत देते हैं क्योंकि बहस अब गुणवत्तापूर्ण सस्ती शिक्षा बनाम महंगी शिक्षा से बदल गयी है। इसे आप शिक्षा बनाम विश्वास मतलब धर्म पर केन्द्रित होता जा रहा है। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण (एनएसएस), 2014 के अनुसार, 18 से 24 वर्ष की आयु के बीच भारत में 16.6 प्रतिशत पुरुष स्नातक छात्र और 9.5 प्रतिशत महिला स्नातक छात्र उच्च शिक्षा का खर्च नहीं उठा सकते हैं। इसके अलावा, उच्च शिक्षा के अखिल भारतीय सर्वेक्षण (2019-20) ने संकेत दिया है कि केवल 66.3 प्रतिशत छात्रों को निजी तौर पर संचालित 78.6 प्रतिशत कॉलेजों द्वारा सेवा दी जाती है।

शिक्षा से न केवल व्यक्ति और समुदाय को बल्कि पूरे देश को लाभ होता है। कभी-कभी तो पूरी मानवता को फायदा होता है। मुस्लिम माता-पिता, अपंग कर देने वाले ऋणों, ऋणों को सहते हुए और भेदभाव की गलत धारणा के बारे में अपने डर और चिंताओं पर काबू पा, अपने बच्चों को स्कूल में दाखिला दिलाने का कठोर निर्णय लेते हैं। यह गलत धारणा लंबे समय से बनी हुई है कि मुस्लिम परिवार औपचारिक शिक्षा में रूचि नहीं रखते हैं। हालांकि, सच्चर समिति की रिपोर्ट सहित कई अध्ययनों ने इस मिथक को दूर किया है और प्रदर्शित किया है कि मुस्लिम छात्र और उनके माता-पिता ईमानदारी से अपने बच्चों को शीर्ष स्कूलों में दाखिला दिलाना चाहते हैं लेकिन कई सामाजिक और आर्थिक दबावों से वे विवश होते हैं।

एक राष्ट्र की भलाई उन महिलाओं द्वारा निर्धारित की जाती है जो जीवन के सभी क्षेत्रों में किसी भी तूफान का सामना करने में सक्षम हैं। अल्पसंख्यक महिलाओं के सशक्तिकरण पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। अल्पसंख्यक समुदाय स्वयं महत्वपूर्ण है और अपने धार्मिक दायित्वों की परवाह किए बिना अपने समाज की महिलाओं को उन्हें अपनी शिक्षा को प्राथमिकता देने की अनुमति देकर अपने महिला अधिकारों का समर्थन कर सकता है। क्योंकि शिक्षा एक विशेषाधिकार नहीं बल्कि एक मौलिक अधिकार है। हमारे संविधान में इसका जिक्र किया गया है। बेहतर है कि ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, जमीयत उलेमाए हिंद आदि जैसे संगठनों को इसके लिए आगे आना चाहिए। विभिन्न संस्थानों द्वारा प्रदान की जाने वाली गुणवत्ता वाली सस्ती शिक्षा पर ध्यान केंद्रित करते हुए कौम का प्रवक्ता बनना चाहिए और समुदाय के लिए कानूनी लड़ाई भी लड़नी चाहिए। शिक्षा को उन विवादों से बाधित नहीं होना चाहिए जो राजनीति से प्रेरित हो और लाखों छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रहा हो।

(लेखक के विचार निजी हैं। इससे जनलेख का कोई लेनादेना नहीं है।)

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