पंजाब के थाने पर खालिस्तानियों के कब्जे को हल्के में न ले सरकार

पंजाब के थाने पर खालिस्तानियों के कब्जे को हल्के में न ले सरकार

राकेश सैन

अभी हील ही में बीते बृहस्पतिवार यानी 23 फरवरी 2023 को पंजाब के अजनाला कस्बे के थाने पर खालिस्तान समर्थक संगठन ‘वारिस पंजाब दे’ के जत्थेदार यानी नेता अमृतपाल सिंह के हजारों हथियारबन्द समर्थकों ने कब्जा कर लिया और अपने साथी लवप्रीत सिंह तूफान को मुक्त करवाने के लिए पुलिस को झुकाने पर मजबूर कर दिया। यह पंजाब में पनप रहे आतंकवाद की नयी पौध है और इसे नजरअंदाज करना न तो पंजाब सरकार के हित में है और ही नरेन्द्र मोदी की नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार के हित में। पूरा घटनाक्रम कानून व्यवस्था के साथ-साथ पूरे राज्य के लिए गम्भीर चुनौती उत्पन्न कर रहा है जिसको हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए।

राज्य में सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी को लेकर पूर्व मुख्यमन्त्री कैप्टन अमरिन्द्र सिंह ही नहीं प्रदेश के कई बुद्धिजीवियों ने चुनावों के समय ही चेतावनी दिया था कि पंजाब जैसे संवेदनशील राज्य, जो पाकिस्तान पोषित आतंकवाद का शिकार रहा है उसे अनुभवहीन नेतृत्व के हाथों में दिया जाना खतरे से खाली नहीं है। आज वह आशंका फलीभूत होती दिख रही है। जिस तरह गुरु ग्रन्थ साहिब की आड़ में बन्दूकों, तलवारों व नेजों से लैस हजारों कट्टरपन्थियों की भीड़ ने थाने में उत्पात मचाया, ऐसी घटना तो उस दौर में भी नहीं हुई जब राज्य में खालिस्तानी आतंकवाद चरम सीमा पर था।

पूरे घटनाक्रम की शुरूआत उस समय हुई जब अमृतपाल के ही एक साथी बरिन्द्र सिंह ने सोशल मीडिया पर अमृतपाल के खिलाफ कुछ पोस्टें डालीं। इस पर अमृतपाल के अन्य साथी उसे उठा कर उसके पास ले गए जहां उसके साथ कथिततौर पर मारपीट हुई। अजनाला थाने की पुलिस ने बरिन्द्र सिंह की शिकायत पर अमृतपाल सहित उसके पांच साथियों व 25 अज्ञात लोगों के खिलाफ केस दर्ज किया और अमृतपाल के साथी लवप्रीत सिंह तूफान को गिरफ्तार भी कर लिया। इसी लवप्रीत सिंह को निरपराध बताते हुए अमृतपाल उसकी रिहाई की मांग कर रहा था और उसे छुड़ाने के लिए उसके हथियारबन्द समर्थकों ने थाने पर हमला बोल दिया। दबाव में आई पुलिस ने पूरे मामले को लेकर विशेष जांच दल गठित करने व तूफान को छोडने की बात कह कर अपना पिण्ड छुड़ाने की कोशिश की है। विश्लेषक मानते हैं कि ऐसा करके पुलिस ने अपनी जान तो छुड़ा ली है परन्तु इसके गम्भीर परिणाम सामने आने की आशंका बलवती हो गई है। इससे न केवल खालिस्तानी अराजक तत्वों के हौंसले बढ़ेंगे बल्कि दूसरी ओर पुलिस बलों का मनोबल भी गिर सकता है। राज्य की जनता तो पहले ही इन तत्वों से भयभीत और मौन है।

पंजाब में अलगाववाद तीन-साढ़े तीन दशक पुरानी समस्या है। पिछली सदी नब्बे के दशक में इसे मृतप्रायरू मान लिया गया विदेशों में बैठी अलगाववादी शक्तियों ने इस चिंगारी को पूरी तरह बुझने नहीं दिया। कभी श्री गुरु ग्रन्थ साहिब की बेअदबी की आड़ में तो कभी जेलों में बन्द सिख कैदियों की रिहाई की आड़ में सिख नौजवानों के मनों में देशविरोधी विष भरा जाता रहा। हमारी व्यवस्था व राजनीतिक दल भी इस खतरे के प्रति पीठ करके खड़े हो गए। केवल इतना ही नहीं देश की राजनीति में नई आई आम आदमी पार्टी ने पंजाब में सत्ता की खातिर इसको लेकर तरह-तरह के प्रयोग करने शुरू कर दिए। दिल्ली की सीमा पर एक साल से भी अधिक समय तक चले किसान आन्दोलन ने देश-विदेश में बैठी अलगाववादी शक्तियों को अपना जनाधार व ताकत बढ़ाने का अवसर दिया तो खालिस्तान समर्थक होने का आरोप झेल रही आम आदमी पार्टी के पंजाब में सत्तारूढ़ होने के बाद इन शक्तियों के हौंसले और भी बुलन्द होने लगे।

इस बीच राज्य में आतंकी, गैंगस्टर और तस्करों का विषाक्त घालमेल सामने आने लगा और रह-रह कर राज्य में आतंकी कार्रवाईयां होने लगीं। चाहे विदेश में बैठा सिख्स फार जस्टिस का सरगना गुरपवन्त सिंह पन्नू खालिस्तानी गतिविधियों का केन्द्र रहा है परन्तु पंजाब के अन्दर अलगाववाद उस मवाद भरे फोड़े की भान्ति था जिसका अभी मुंह नहीं बना। नेतृत्व की को पूरा करने की कोशिश की है ‘वारिस पंजाब दे’ के जत्थेदार अमृतपाल सिंह ने जो आज अमृत संचार के नाम पर राज्य के सिख युवाओं का रेडिकलाइजेशन कर रहा है। यहां यह भी बता दें कि वारिस पंजाब दे संगठन को किसान आन्दोलन की उपज रहे व लाल किला हिंसा के आरोपी दीप सिद्धू ने खड़ा किया था और उसकी कार दुर्घटना में हुई मौत के बाद दुबई से लौटे अमृतपाल ने इस संगठन की बागडोर सम्भाली है। इसी संगठन से जुड़े लोगों व अमृतपाल के अनुयायियों ने अजनाला में थाने पर हमला कर देश की व्यवस्था को चुनौती दी है। पंजाब सरकार जिस तरीके से इन अलगाववादी शक्तियों के प्रति ढिलमुल की नीति अपनाए हुए है उससे खतरा और भी बढने वाला है।

देखने में आया है कि किसान आन्दोलन के समापन को अलगाववादी शक्तियों ने अपनी विजय के रूप में लिया है और अब हिंसा के जोर पर अपनी बात मनवाने की कोशिश करने लगी हैं। पिछले दिनों मोहाली में भी इसी तरह की कैदी सिखों की रिहाई को लेकर चल रहे मोर्चे के दौरान इसी तरह की अश्लील हिंसा देखने को मिली थी। पिछले साल इसी तरह की मानसिकता वाले लोग पटियाला में काली मन्दिर के पास उत्पात मचा चुके हैं। केवल इतना ही नहीं खालिस्तानी तत्वों ने अमेरिका, इंगलैण्ड, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया तक भारतीयों पर हिंसा करनी शुरू कर दी है। दिनों दिन हिंसा की प्रवृति बढ़ती ही जा रही है। समय रहते इसका उपचार न किया गया तो आने वाला समय और भी कठिन चुनौती पेश कर सकता है।

(लेखक पंजाब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की पत्रिका पथिक संदेश के संपादन की जिम्मेदारी संभालते हैं। इनके विचार निजी हैं। इससे जनलेख प्रबंधन का कोई लेनादेना नहीं है।)

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