हसन जमालपुरी
विगत कई दशकों से भारतीय मुस्लिम समुदाय विभिन्न प्रकार की चुनौतियों का सामना कर रहा है। भारतीय मुसलमानों की सबसे बड़ी समस्या प्रभावशाली व निष्ठावान नेतृत्व की है, जो समाज को सही दिशा दिखा सके। कुशल नेतृत्व के अभाव में मुस्लिम समाज कई प्रकार के संकटों का सामना कर रहा है और दिशा विहीन राजनीति का शिकार हो रहा है। बड़ी संख्या में शिक्षित व्यक्तियों के होने के बावजूद, मुस्लिम जनता, अक्सर संकीर्ण दृष्टि वाले धार्मिक नेताओं या आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोगों को अपना प्रतिनिधि चुन लेता है। इसके परिणामस्वरूप ऐसी स्थिति पैदा हो गई है, जहां समुदाय अपनी बुनियादी समस्याओं को प्रभावी ढंग से हल करने में अक्षम होता जा रहा है।
तेजी से बदलती आधुनिक दुनिया के साथ कदम मिलाकर चलने और आधुनिक चुनौतियों का सामना करने के लिए भारतीय मुसलमानों को कुछ अलग सोचना होगा। वर्तमान युग भारतीय मुसलमानों के लिए पुनर्जागरण का युग साबित हो सकता है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में पहला कदम मुस्लिम राजनीतिक परिदृश्य से अक्षम नेताओं को हटाना और उसके स्थान पर प्रभावशाली शिक्षित नेतृत्व को तरजीह देनी होगी। कट्टवादी सोच को छोड़ना होगा। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि बहुसंख्यक मुसलमानों के सामने जो वर्तमान दयनीय स्थिति है, वह वर्षों की उपेक्षा और शोषण का परिणाम है। यही नहीं राजनीतिक उपेक्षा के कारण मुस्लिम जगत कई प्रकार की समस्या झेल रहा है। इसकी चर्चा न्यायमूर्ति सच्चर समिति की रपट में भी सामने आया है। वर्तमान समय में स्वयं-केंद्रित धार्मिक नेताओं और आपराधिक प्रवृत्ति वाले व्यक्तियों द्वारा किए जा रहे नेतृत्व को खत्म करने का वक्त आ गया है।
धार्मिक नेता या आपराधिक नेतृत्व केवल और केवल अपने तथा अपने परिवार के हितों की चिंता करता रहा है। उदाहरण के लिए मदरसे में कट्टवादी शिक्षा प्राप्त करने वाले केवल और केवल गरीब परिवार के मुस्लिम बच्चे होते हैं। उच्च वर्ग के मुसलमान अपने बच्चों को अंग्रेजी विद्यालयों में पढ़ाते हैं। जो मौलवी थोड़ा पैसे वाला हो जाता है उसके बच्चे तुरंत अंग्रेजी विद्यालयों में पबढ़ने लगते हैं, जबकि वही मौलवी गरीब बच्चों को मदरसा का रास्ता दिखाता है। यही नहीं मदरसे में विदेशी एवं स्वदेशी चर्बी व फितरे के लिए उसका आधुनिकीकरण नहीं होने देते, यही नहीं धर्म की दुहाई देकर विरोध करना प्रारंभ कर देते हैं। मुस्लिम समुदाय का बौद्धिक और सांस्कृतिक उपलब्धियों का समृद्ध इतिहास रहा है। अब इस विरासत को आगे बढ़ाने और समुदाय के लिए एक नया भविष्य बनाने का समय आ गया है। शिक्षा प्रगति की कुंजी है। अपने अवाम को शिक्षित कर ही मुस्लिम समुदाय आसन्न चुनौतियों का सामना कर सकता है। साथ ही अपने धर्म की भी रक्षा कर सकता है। हमें अपने युवाओं को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित करना होगा। सरकार द्वारा प्राप्त संसाधनों से अपने को उत्कृष्ठ बनाना पड़ेगा। यदि ऐसा न कर पाए तो हमारा हाल पाकिस्तान व अफगानिस्तान की तरह होगा। बगल का बांग्लादेश इस दिशा में पहल करना प्रारंभ कर दिया है। हमारे लिए दो उदाहरण हैं। हमें अपने आप को शेख हसीना का बांग्लादेश, इंडोनेशिया बनना है या फिर पाकिस्तान, ईरान, अफगानिस्तान।
ऐतिहासिक रूप से, दुनिया में मुसलमानों द्वारा कई विश्वविद्यालयों की स्थापना की गई थी। उदाहरण के लिए ट्यूनीशिया में क्रमशः वर्ष 726 और 732 में कैरौं और जायतौना के विश्वविद्यालयों की स्थापना इस्लाम के मानने वालों ने किया। कॉर्डोबा विश्वविद्यालय, वर्ष 786 में आंदालुसिया में स्थापित किया गया। यह यूरोप का सबसे पुराना विश्वविद्यालय था। मोरक्को के फेज में वर्ष 859 में स्थापित कारावियाईन विश्वविद्यालय आधुनिक दुनिया का सबसे पुराना विश्वविद्यालय माना जाता है। यह विश्वविद्यालय अभी भी सक्रिय है। गुजरते वर्षों के साथ, भ्रष्ट और अक्षम नेताओं ने शिक्षा के क्षेत्र में मुसलमानों द्वारा हासिल की गई उत्कृष्टता पर भयंकर प्रहार किया है। इसके कारण आज मुसलमानों की दयनीय स्थिति सबके सामने है। शिक्षा और उत्तरदायित्व का कुशल प्रबंधन कर हम अपनी चुनौतियों का सामना कर सकते हैं और एक ऐसे समुदाय का निर्माण कर सकते हैं दुनिया में अद्भुद, समृद्ध, न्यायपूर्ण और न्यायसंगत हो। इस लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में पहला चरण आपराधिक पृष्ठभूमि के धार्मिक नेताओं का बहिष्कार करने प्रारंभ करें।
(लेखक इस्लामिक विद्वान और सामाजिक कार्यकर्ता हैं। लेखक के विचार निहायत निजी हैं। इससे जनलेख प्रबंधन का कोई लेना देना नहीं है।)