सेतु जैन
17 सितम्बर, 1967 को फेबिया डिनिज नामक व्यक्ति बेलो होरिजोन्टो (दक्षिण-पश्चिमी ब्राजील) स्थित अपनी गर्लफ्रेंड के घर से बाहर निकला। शाम का समय और मौसम सुहावना होने की वजह से उसने पैदल ही घूमते हुए अपने घर पहुंचने का निश्चय किया परंतु उसका पैदल घूमते हुए अपने घर पहुंचने का वह निर्णय उसकी जिंदगी का सबसे डरावना और भयावह अनुभव सिद्ध हुआ।
पैदल चलते हुए वह एक खेल मैदान के पास से गुजरा। डिनिज ने देखा कि उस खेल मैदान में कोई अजीब चीज पड़ी थी। वह चीज विशाल गोलाकृति लिए हुए थी और उसके ठीक ऊपर एक अर्द्धवृत बना हुआ था। इस अद्भुत चीज को देखकर उसकी उत्सुकता जाग पड़ी। डिनिज एक निश्चित दूरी पर खड़ा अभी उस विचित्रा चीज को देख ही रहा था कि सहसा उस विचित्रा चीज का एक दरवाजा खुला। यह देखकर डिनिज भयभीत हो गया। डर के मारे वह वहां से जितना जल्दी भाग सके, इस कोशिश में घूम पड़ा।
अभी उसने एक कदम ही बढ़ाया था कि उसके कानों से एक कड़कती हुई आवाज आ टकराई। उस आवाज ने डिनिज को वहीं खड़ा रहने की आज्ञा दी। डर के मारे थर-थर कांपते हुए डिनिज रुक गया और उसने पीछे मुड़ कर देखा। उसके पीछे दो बड़े ही अजीब किस्म के प्राणी खड़े थे। हालांकि वे प्राणी दिखने में मनुष्य के समान थे किंतु उनकी चमड़ी का रंग आश्चर्यजनक रुप से हरा था।
उन्होंने अजीब तरह के सूट पहन रखे थे जिनसे निकली ट्यूबें उनके मुंह में जा रही थीं। उन रहस्यमय प्राणियों ने डिनिज को न डरने की हिदायत देते हुए कहा कि अगर वह दूसरे दिन शाम को पुनः उसी स्थान पर आता है तो वे लोग उसे अपने अंतरिक्ष यान में घुमाने के लिए ले जाएंगे। यह कहकर वे अद्भुत प्राणी चले गए।
उनके वहां से चले जाने के बाद डिनिज ने उस स्थान से बेतहाशा भागना शुरु कर दिया। अगले दिन शाम को उन अद्भुत प्राणियों से दोबारा मुलाकात करना तो दूर की बात रही, वह भागता हुआ सीधा पुलिस स्टेशन जा पहुँचा।
पुलिस ने फेबिया की बात पर यकीन नहीं की। हालांकि पुलिस एक प्राथमिकी दर्ज कर उस दिशा में जांच जरूर प्रारंभ कर दी। उसके बाद पुलिस के द्वारा फेबिया पर निगरानी भी रखी जाने लगी लेकिन कुछ भी पता नहीं चला। वह कौन-सा यान था, फेबिया को कौन लोग मिले, यह फेबिया का बहम था या हकीकत? ये तमाम प्रश्न अनुत्तरित हैं। फेबिया को किसी भी प्रश्न का उत्तर नहीं मिला। वे दोनों प्राणी एलियन थे या फिर ऐसे कोई जासूसी संस्था से जुड़े थे। या फिर कोई फेबिया को डरा रहा था। किसी को कुछ पता नहीं चला।
(लेखक के विचार निजी हैं।)
(अदिति)