अजय कुमार झा
मजहबी कट्टरता, खासकर इस्लामी पुरातनवाद के नाम पर कभी भी किसी निर्दोष, मासूम और सबसे बढाकर निहत्थे इंसान पर अचानक किसी हथियार बम, बन्दूक, बस, ट्रक के सहारे हमला करके लोगों हत्या या हत्या की कोशिश करना निःसंदेह एक व्यापक षडयंत्र का हिस्सा है। इससे सुरक्षा एजेंसियों को सतर्क हो जाना चाहिए। इस प्रकार की घटना को हल्के में नहीं लिया जा सकता है। इसके पीछे बड़ी साजिस हो सकती है। इसके पीछे विदेशी और राष्ट्र विरोधी शक्तियों की भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता है। इस की घटना का हेतु सभ्य समाज को डराना, दहशत फैलाना, मौत का भय पैदा करना होता है। ऐसे अपराध को अपराध जगत में वुल्फ अटैक यानी भेड़ बनकर भेड़ियों की तरह हमला करना होता है।
प्रयागराज, उत्तर प्रदेश में ऐसे ही एक खतरनाक अपराध को अंजाम दिया एक मुस्लिम युवक ने जिसने एक बस ड्राइवर और कंडक्टर पर अचानक धारदार हथियार से हमला करके उसकी ह्त्या करने की कोशिश की। इसके बाद भागते हुए सबको धमकी देते हुए, पुलिस प्रशासन सबको चेताते हुए वीडियो भी बना कर पोस्ट कर दी। थोड़ी देर बाद पुलिस द्वारा मुठभेड़ के बाद उसे गिरफ्तार कर लिया गया।
इस घटना ने कुछ समय पूर्व राजस्थान में ऐसे ही एक व्यक्ति द्वारा सैलून में घुसकर एक निर्दोष की गला रेट कर ह्त्या कर दी गयी थी। आतंक निरोधी एजेंसी के लिए राजस्थान से लेकर उत्तर प्रदेश तक मजहबी कट्टरता के ये बढ़ते मामले चिंता बढ़ाने वाले हैं।
इस घटना में लिप्त आरोपी युवक, जो इंजीनियरिंग का छात्र होने के बावजूद अपने मोबाइल, कंप्यूटर पर पाकिस्तान के किसी मौलाना की कट्टर तकरीर सुनता था और माफिया डॉन मुख्तार का प्रशंसक, अनुसारक था। सवाल ये है कि यदि उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहा एक नवयुवक अपनी पढाई, करियर से अधिक, कट्टर तकरीरों से अपने जीवन का उद्देश्य तय कर रहा है तो ऐसे में अशिक्षित, गरीब, मजलूमों को मजहबी कट्टरता में बरगलाना कितना आसान होता होगा।
इस ओर ऐसी अन्य घटनाओं के समय अक्सर जहां गैर हिन्दू हितैषी दल एक साथ मौन व्रत धारण कर लेते हैं, वहीँ पाठ्यक्रम में पवित्र कुरान पढ़वाने की बात कहने वाले तथा मुस्लिमों के हितैषी सांसद, ओवैसी जैसे राजनेता ऐसी घटनाओं पर खेद, निंदा तक नहीं व्यक्त करते। ये जानते हुए भी कि किसी भी धर्म, मजहब कानून के अनुसार यह अपराध है, अनुचित है और इसे बंद होना चाहिए, ये कहने बोलने का साहस भी नहीं कर पाते हैं।
ऐसी घटनाओं का दुष्प्रभाव बहुत व्यापक होता है तो मजहबी कार्ड खेल कर सिनेमा, कला, विज्ञापन के सहारे, देश सरकार पुलिस प्रशासन को हिदायत, नसीहत देने वाले तथाकथित प्रबुद्ध लोग, बड़े नामचीन साहित्यकार, लेखक, शायर, अभिनेता आदि कभी क्यों नहीं समाज से अपील करते कि जब जी आया -चाकू छुरे लेकर दूसरे का गला काटते जाने से कोई मजहब, कोई ईमान कच्चा या पक्का नहीं हो सकता। उसके लिए इंसान का इंसान बने रहना सबसे जयदा जरूरी है।
यह बेहद खतरनाक बात है कि समाज में एक दूसरे के बीच, एक दूसरे के साथ रहते हुए, खाते पीते उठते बैठते, में से ही कोई स्लीपर सेल कट्टरपंथी सोच वाला अपने में पूरे समाज और इंसानियत के विरूद्ध इतना अंधा द्वेष और आस्तीन में छुरा उस्तरा लिए किसी निरपराध, निर्दोष, निहत्थे के इंतजार में है, ताकि उसकी हत्या कर अपने ईमान को साबित कर सके।
समाज में बढ़ती ऐसी आत्मघाती सोच और पनप रही हर साजिश से आज सचेत कर सजग व बहुसंख्यक समाज को सतर्क रहने की जरूरत है। पूरी दुनिया में मजहबी उन्माद सभ्यताओं के आपसी संघर्ष और एक दूसरे के खात्मे का बायस तक बन गया है। ऐसे में सबको इन खतरनाक मंसूबों को समय रहते भांप और जांच कर इन्हें रोकना ही उचित होगा।
(आलेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं। इससे हमारे प्रबंधन का कोई सरोकार नहीं है।)