हलाल प्रमाणीकरण : व्यवसाय की आड़ में अपराध या साजिश

हलाल प्रमाणीकरण : व्यवसाय की आड़ में अपराध या साजिश

हलाल प्रमाणीकरण – यानी किसी वस्तु को दिया गया वो प्रमाणपत्र जो मुस्लिमों के एक विशेष वर्ग को आश्वस्त करने के लिए जारी किया जाता है कि उक्त प्रमाणित वास्तु हलाल है और मुस्लिमों के लिए वर्जित नहीं है। सीधे सरल रूप में समझा जाए तो एक ऐसा प्रमाणीकरण जो यह साबित करता है कि उक्त वस्तु हराम नहीं है और मुस्लिमों के लिए शरीयत के अनुसार उपयुक्त है।

सवाल ये है कि आखिर अचानक ही इस हलाल प्रमाणीकरण और इससे जुड़े कारोबार पर इतना हो हल्ला क्यों? उत्तर प्रदेश सरकार ने इस मामले में शिकायत दर्ज कराने पर संज्ञान लेकर प्रथम दृष्टया इसे संविधान सम्मत न पाते हुए इस पर निषेधाज्ञा लागू कर दी और उतर प्रदेश पुलिस ने अगले 24 घंटों में छापेमारी करके इस हलाल प्रमाणीकरण वाले उत्पादों की धर पकड़ शुरू कर दी।

असल में कभी माँस पदार्थों के लिए हलाल और झटका (गैर हलाल या हराम ) जैसे शब्दों का प्रयोग किया गया और सरकार अथवा समकक्ष किसी भी संस्था द्वारा अधिकृत किए बिना कुछ रसूखदार मुस्लिम संस्थाओं ने ये हलाल प्रमाणीकरण जारी करने की व्यवस्था शुरू कर दी। कभी सिर्फ मजहबी आधार पर जारी किया जाने वाला ये हलाल प्रमाणपत्र वर्तमान में 2 से 3 लाख रूपए लेकर जारी किया जा रहा है।

इस सारे मामले ने तूल पकड़ना तब शुरू किया जब मांस पदार्थों के अलावा हलाल प्रमाणीकरण का दायरा सभी शाकाहारी भोज्य पदार्थों और यहां तक कि कपड़ों और सौंदर्य प्रसाधनों तक पहुँच गया। इतना ही नहीं, इन क्षेत्रों में मौजूद सभी निर्माता कंपनियों को जबरन हलाला प्रमाणपत्र लेने के लिए विवश किया गया क्यूंकि इसके बिना मुस्लिम देशों में उनका उत्पाद क्रय विक्रय के योग्य नहीं माना ध्समझा जाता।

एकदम धीरे धीरे गुपचुप तरीके से बना और बढ़ा हलाल प्रमाणीकरण का ये कारोबार अब वैश्विक स्तर पर लाखों करोड़ रुडपे का बड़ा कारोबार बन चुका है। यही कारण है कि आज भारत में भी हलाल प्रमाणपत्र जारी करने वाली चुनिंदा संस्थाओं की अकूत कमाई देखते हुए अन्य मुस्लिम संस्थाएं ही इस व्यवस्था को गैर नियोजित बताती हैं।

असल में सरकार हलाल प्रमाणीकरण से जुडी संस्थाओं पर इसलिए भी सख्त हुई क्यूंकि इस अथाह पैसे का उपयोग सरकार और सुरक्षा एजेंसियों द्वारा पकडे गए आतंकियों के मुकदमेबाजी के लिए खर्च किए जाने का आरोप इन पर लगने लगा था। सरकार ,पुलिस और प्रशासन अब इस सारे खेल की तह तक जाने को तैयार हैं।

सरकार द्वारा बिना किसी अनुमतिध्अधिकृत आदेश के मजहबी आधार पर प्रमाणपत्र जारी करना , इस प्रमाणीकरण के लिए भारी भरक शुल्क वसूला जाना और सबसे गंभीर आरोप ये कि इस पैसे का उपयोग देश विरोधी गतिविधियों ध्आतंकी घटनाओं में लिप्त आरोपियों पर चल रहे मुकदमे में उनकी पैरवी के लिए किया जा रहा है। विदेश निर्यात के लिए इस आवश्यक बनाया बताया जाना , खाद्य मांस पदार्थों के अतिरिक्त अन्य वस्तुओं यहां तक कि वस्त्रों के लिए भी किया जाने वाला हलाल प्रमाणीकरण के ऊपर प्रश्न खड़े होना स्वाभाविक ही था जबकि हलाल प्रमाणीकरण कर रही संस्थाएं जिनमे जमीयत उलेमा भी हैं का तर्क माना जाए तो ये शरीयत से चलने वाले मुस्लिमों और ऐसे ही मुस्लिम देशों से व्यापार के लिए ही इस प्रमाणीकरण की व्यवस्था को बनाया गया है और बिना इसके वहां इन वस्तुओं का विक्रय संभव नहीं है।

सार सक्षेप में समझा जाए तो हलाल और हराम के इस खेल में अकेले भारत में ही अब आठ लाख करोड़ की अर्थव्यवस्था और विश्व में 166 लाख करोड़ की बन चुकी ये प्रमाणन अर्थव्यवस्था अब वैश्विक स्तर पर गैर वाजिब दबाव बनाया जा रहा है। इसके विरोध में बहुत सारे मुस्लिम व्यापारियों का समूह भी आ गया है। 1974 से शुरू किया गया हलाल प्रमाणीकरण अब एक समानांतर अर्थव्यवस्था वो भी अनियंत्रित व अनियोजित हो चुका है।

हलाल प्रमाणीकरण में लिप्त संस्थाओं जैसे हलाल इण्डिया , जमीयत उलमा ए हिंद हलाल ट्रस्ट आदि के विरूद्ध शिकायत के बाद जांचध्कार्रवाई शुरू हो चुकी है और भारत जैसे धर्म निरपेक्ष देश में ऐसे मजहब आधारित निजी प्रमाणपत्रों की कोई आवश्यकता नहीं है , न ही गैर खाद्य वस्तुओं के लिए और न ही भारत के अंदर व्यापार करने के लिए।

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