चंडीगढ़/ सरदार प्रकाश सिंह बादल गुट वाले शिरोमणि अकाली दल पर निशाना साधते हुए पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने आज कहा कि शिरोमणि अकाली दल ने राज्यों को और अधिक अधिकार देने, चंडीगढ़ को पंजाब के हवाले करने के अलावा श्री आनन्दपुर साहिब के प्रस्ताव जैसे पंजाब के अहम मुद्दों को हमेशा राजनीति के संकुचित नजरिए से देखा है।
15वीं पंजाब विधानसभा के 16वें सत्र के मौके पर अपने भाषण के दौरान मुख्यमंत्री ने अकालियों पर बरसते हुए कहा कि वह एक जरिया हैं जिसके द्वारा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, जो हमेशा ही पंजाब के हितों के साथ खेलता रहा है, राज्य में अपनी पकड़ बनाने में कामयाब हुआ। चन्नी ने पंजाब पर ऐसे फैसले थोपने के लिए अकालियों को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा, ‘‘जब आर.एस.एस. और इसके राजनैतिक विंग भाजपा ने धारा 370 को रद्द करके देश के संघीय ढांचे को चोट पहुंचाई तो अकालियों ने ना सिर्फ भाजपा का पक्ष लिया, बल्कि अकाली दल के प्रधान सुखबीर सिंह बादल भी इस कदम के हक में बोले और यहां तक कि इस गैर-लोकतांत्रिक कदम के खिलाफ वोट भी नहीं डाली।’’
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह को मिलने पर उनके प्रति की गई आलोचना का करारा जवाब देते हुए चन्नी ने बताया कि दोनों शख्सियतों के साथ उनकी मुलाकात एक शिष्टाचार मुलाकात थी। ‘‘शायद अकाली इस बात को भूल गए हैं कि मैं केंद्र सरकार को पत्र लिखकर श्री करतारपुर साहिब गलियारा फिर खोलने पर जोर दिया है और इसके साथ-साथ तीन काले कृषि कानूनों, जो कृषि आर्थिकता की रीढ़ की हड्डी वाले कृषि क्षेत्र को चोट पहुंचा रहे हैं, को वापस लेने के लिए बार-बार विनती की है।’’
मुख्यमंत्री ने सदन को आगे बताया कि सुरक्षा मुद्दों पर केंद्र सरकार के साथ बैठकों के दौरान उन्होंने हमेशा यह एकसुर में स्टैंड लिया है कि अंतरराष्ट्रीय सरहदों को सील किया जाना चाहिए, जिससे नशा पंजाब में दाखिल ना हो सके। मैंने कभी भी उनको राज्य में बीएसएफ का अधिकार क्षेत्र बढ़ाने के लिए नहीं कहा, जिसके बारे में मेरे ऊपर झूठे दोष लगाए जा रहे हैं। मैं भारत सरकार के इस कदम का सख्त विरोध करता हूं।
उन्होंने अकालियों को सत्ता के भूखे लोग करार दिया जो लोगों के मसलों के नाम पर कोलाहल मचाते रहते हैं, परन्तु सत्ता में आने पर हमेशा आँखें बंद कर लेते हैं। अकाली दल को इस्तेमाल कर फेंकने की नीति अपनाने वाली पार्टी बताते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि अकालियों ने सत्ता में आने के लिए बसपा के साथ हाथ मिलाया और केंद्र में भाजपा के सत्ता में आने पर बसपा को छोड़ दिया।