गौतम चौधरी
सदस्यता अभियान में पूरी तरह से नाकाम रहे प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष राजेश ठाकुर अपनी विफलताओं को छुपाने के लिए संवाद सम्मेलन के माध्यम से सीधे तौर पर कांग्रेस आलाकमान के फैसले को चुनौती दे देने लगे हैं। इसकी चर्चा राजनीतिक गलियारे में जोर-शोर से हो रही है।
प्रदेश कांग्रेस के तीन पूर्व अध्यक्ष डॉ. अजय कुमार, प्रदीप कुमार बलमुचू व सुखदेव भगत पिछले विधानसभा चुनाव 2019 में पार्टी छोड़ कर चले गए थे। दो ने चुनाव लड़ा और उन्हें सफलता नहीं मिली, अजय कुमार आम आदमी पार्टी में चले गए और कुछ ही महीनों के उपरांत दिल्ली में अपनी सेटिंग कर वापस कांग्रेस में शामिल हो गए। यही नहीं वे 3 राज्यों के प्रभारी भी बन गये हैं। वहीं एक और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष डॉ. सरफराज अहमद 2014 में राजद से चुनाव लड़े थे, हारने के बाद कांग्रेस में शामिल हो गए। इस बार टिकट नहीं मिलने पर जेएमएम में गये और विधायक बन गए। अगर हार गये होते तो शर्तीया तौर पर कांग्रेस में शामिल होते।
दूसरी तरफ सुखदेव भगत व प्रदीप बलमुचू के काग्रेस में शामिल होने के 48 घंटे के अंदर उन्हें कॉर्डिनेशन कमिटी का सदस्य बनाया गया इतना ही नहीं पार्टी के चिंतन शिविर और संवाद कार्यक्रम में भी इन्हें महत्वपूर्ण स्थान दिया गया। यह फैसला प्रदेश अध्यक्ष राजेश ठाकुर को नागवार गुजरा और इन्होंने रांची में आयोजित संवाद सम्मेलन में पार्टी में शामिल हुए प्रदीप बलमुचू और सुखदेव भगत के साथ-साथ कई कार्यकारी अध्यक्षों पर भी, जो कि दूसरे दलों से आते ही संगठन की बागडोर सौंपी गई हैं पर निशाना साधते हुए आलाकमान के फैसले को चुनौती दे डाली। हालांकि ठाकुर का चिंतन जायज है लेकिन ठाकुर को यदि आवाज ही उठानी थी तो उसी वक्त उठाते जब उन नेताओं को संगठन में शामिल किया जा रहा था। यदि उस समय चूक गए तो पार्टी उन्हें जब पारितोसिक दे रही थी तो आवाज उठाते लेकिन उस समय उन्होंने एसा कुछ भी नहीं किया और अब जब सांप चला चला तो पानी पीट रहे हैं।
संवाद सम्मेलन में प्रस्ताव लाकर कहा जा रहा है कि दूसरी पार्टी से आए हुए वापसी के बाद किसी नेता को पद नहीं दिया जाए। दरअसल, पार्टी और संगठन में अपने खराब परफॉरमेंस के कारण वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष घिरते जा रहे हैं। एक ओर आलाकमान की नजर उन पर है तो दूसरी ओर पार्टी के अंदर उनके विरोधी भी कोई मौका छोड़ना नहीं चाहते हैं। पार्टी द्वारा चलाये गये मेंबरशिप में प्रदेश कांग्रेस अपने निर्धारित लक्ष्य से कोसों दूर हैं। पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेताओं ने दवी जुवान यह भी कहने लगे हैं कि प्रदेश अध्यक्ष ने सदस्यता अभियान को कोई महत्व ही नहीं दिया, यही वजह है कि पार्टी सत्ता में भागीदार होने के बाद भी अपना विस्तार नहीं कर पा रही है। प्रदेश अध्यक्ष अपनी विफलताओं को छुपाने का हर संभव प्रयास कर रहे हैं, ताकि आलाकमान को भ्रम में रखा जा सके।
5 अप्रैल 2022 को दिल्ली में आयोजित कार्यशाला में प्रदेश अध्यक्ष ने एक विधायक के माध्यम से 12 अप्रैल से होने वाले संवाद सम्मेलन में सवाल खड़ा किया और इतना ही नहीं प्रभारी अविनाश पाण्डेय के झारखंड दौरे पर भी ग्रहण लगवाया और आये दिन मीडिया के माध्यम से प्रभारी के निर्णयों की आलोचना भी करा रहे हैं। दूसरी तरफ संवाद कार्यक्रम की रूपरेखा पर भी सवाल उठाते रहे हैं। ड्राइंग रूम पॉलिटिक्स में माहिर एवं गणेश परिक्रमा में सिद्धस्थ राजेश ठाकुर एवं उनके सागिर्दी जिन्होंने कभी भी कोई आन्दोलन नहीं किया, हाईकमान के द्वारा दिए जा रहे कार्यक्रम करना इनके बूते की नहीं है, वे अनर्गल प्रलाप कर रहे हैं। जबकि संवाद सम्मेलन की सफलता से यह प्रमाणित हो गया कि आपसी संवाद बहुत जरुरी था। झारखंड के चिंतन शिविर एवं संवाद सम्मेलन को देखकर दूसरे प्रदेशों में भी ऐसे आयोजन होने जा रहे हैं लेकिन देखना यह भी होगा कि 24 अप्रैल 2022 को प्रखंड स्तर पर आयोजित संवाद कार्यक्रम कितना सफल होता है क्योंकि आसमान छूती महंगाई के खिलाफ आंदोलन सिर्फ एक औपचारिकता बनकर रह गई। एक छोटे से धरने के अलावा महंगाई जैसे गंभीर मुद्दे पर झारखंड में पार्टी कुछ भी नहीं कर पाई है जो सबके सामने है।
प्रदेश अध्यक्ष की कार्यशैली को लेकर कांग्रेस कार्यकर्ताओं का विरोध लगातार बढ़ता जा रहा है। उनका कहना है कि वर्तमान प्रदेश नेतृत्व के हाथों पार्टी पूरी तरह असुरक्षित है। 2024 में कार्यकर्ताओं का राहुल गांधी को देश का प्रधानमंत्री बनाने का सपना है। विधानसभा चुनाव में कांग्रेस झारखंड का बढ़िया प्रदर्शन रहा। फिलहाल कांग्रेस के पास प्रदेश में 18 विधायक और एक सांसद हैं। कांग्रेस का सांगठनिक ढ़ाचा मजबूत हो जाता है तो और अच्छा प्रदर्शन कर सकती है। प्रदेश अध्यक्ष भी युवा हैं और कई मामलों में पारंपरिक अध्यक्ष से बेहतर हैं लेकिन उन्हें कुछ अच्छा करने के लिए अपनी कार्यशैली में बदलाव लाना होगा। आरपीएन सिंह वाली राजनीतिक संस्कृति को बदलना होगा। जुझारू एवं निष्ठावान कार्यकर्ताओं को तरजीह देनी होगी। झारखंड कांग्रेस की सबसे बड़ी समस्या सांगठनिक ढ़ाचों को दुरुस्त करना है। यह प्रदेश अध्यक्ष कर सकते हैं लेकिन इसके लिए थोड़ी बेहतर सोच और मेहनत की जरूरत है। साथ ही आपसी संवाद पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है।