रांची/ मैथिली भाषा संघर्ष समिति द्वारा राँची के कटहल मोर से पिस्कामोर तक सघन जनगणना अभियान चलाया गया। जनगणना के अभियान में मैथिली भाषी को समझाया जा रहा है कि किस प्रकार सैकड़ो वर्षो से रस-बस रहे मैथिलों के बच्चों के साथ अन्याय झारखंड की वर्तमान सरकार द्वारा किया जा रहा है।
इस संदर्भ में संघर्ष समिति के प्रदेश संयोजक अमरनाथ झा ने बताया कि झारखंड सरकार के राज्य/जिला स्तरीय नियोजन नीति में मैथिली भाषा जो कि भारत के अष्टम अनुसूची में शामिल है, साथ ही झारखण्ड की द्वितीय राज्य भाषा भी है, इसके बाबजूद नौकरियों में होने बाली प्रतियोगी परीक्षा से इसे हटा दिया गया है। अब मैथिल भाषी छात्र को यहाँ के जनजातीय/स्थानीय 9 भाषा या उर्दू, बंगला या उड़िया भाषा की परीक्षा में पास होना जरूरी होगा तभी मुख्य बिषय की पत्र जांच की जायेगी।
झा ने बताया कि सरकार के मंत्री का कहना है कि अन्य भाषा यथा मैथिली, भोजपुरी, मगही एवं अंगिका बोलने बालों की जनसंख्या उर्दू उरिया एवं बंगला की अपेक्षा कम है। इसी बाबत झारखण्ड राज्य के 36 मैथिल संगठन ने मिलकर मैथिली भाषा संघर्ष समिति बनाई और पूरे राज्य के सभी जिला में यह जनगणना अभियान जिला संयोजक के नेतृत्व में चलाया रहा है। इस अभियान से सरकार को यह जानकारी उपलब्ध कराई जाएगी कि आखिर मैथिली भाषी अन्य क्षेत्रीय भाषा भाषियों से कम नहीं हैं।
इस जनगणना की प्रति महामहिम राज्यपाल के पास जमा कर मांग की जाएगी कि इस प्राचीन भाषा मौथिली को भी अन्य भाषा की तरह नियोजन हेतु प्रतियोगी परीक्षा में स्थान दी जाय, अन्यथा मैथिल समाज के लोग राज्य स्तरीय आंदोलन के लिए विवस होंगे। रविवार को इस अभियान में राज्य संघर्ष समिति संयोजक अमरनाथ झा, श्यामनन्द यादव, बिजय जी, छत्रपाल जी, सुशील झा एवं गजेंद्र चैधरी ने भाग लिया।