पटना/ पटना हाइकोर्ट ने बलात्कार और हत्या के आरोपी की सजा खारिज कर दी है। माननीय उच्च न्यायालय ने यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम के तहत दोषसिद्धि का फैसला और सजा का आदेश पलट दिया। कोर्ट ने आरोपी के अपराध की ओर स्पष्ट रूप से इंगित करने वाली परिस्थितियों की स्पष्ट श्रृंखला स्थापित करने के महत्व पर जोर दिया।
माननीय न्यायालय के दो सदस्यीय पीठ ने कहा कि हम वर्तमान मामले की सामग्री का परिस्थिति के आधार साक्ष्य पर ट्रायल कर सकते हैं, क्योंकि वर्तमान मामले का कोई प्रत्यक्षदर्शी नहीं है, बल्कि प्रत्येक परिस्थिति को उचित संदेह से परे साबित किया जाना चाहिए और सिद्ध परिस्थिति को पूरी श्रृंखला बनानी चाहिए। परिस्थितियों की श्रृंखला को आरोपी के दोषी की ओर इंगित करना चाहिए, यानी यह केवल अपराध के कारण की उचित संभावना होनी चाहिए।
अभियोजन पक्ष के मामले के अनुसार शिकायतकर्ता की 12 वर्षीय बेटी उस दिन शौच करने बाहर गयी थी लेकिन बाद में वह मृत पाई गई। उसकी गर्दन दबी हुई थी और उसके मुंह पर चोट लगी थी। मामले के साक्ष्यों की गहन जांच करने पर न्यायालय ने पाया कि मामले में प्रत्यक्ष साक्ष्य का अभाव है, क्योंकि कोई प्रत्यक्षदर्शी विवरण स्पष्ट नहीं है।
न्यायालय ने लिखित बयान के प्रारंभिक संस्करण के वर्णनकर्ता पीडब्लू-5 पर ध्यान दिया, जिसने अभियोजन पक्ष की कहानी को घटनाओं के क्रम में उजागर किया। पहले क्रम में पता चला कि पीड़िता निजी जरूरतों के लिए घर से अकेली निकली थी और उसके साथ किसी को भी नहीं देखा गया। इसके साथ ही, शिकायतकर्ता अनिरुद्ध साह (पीडब्लू-2) ने अपीलकर्ता के संदिग्ध रूप से भागने की सूचना दी। इस सूचना पर कार्रवाई करते हुए तलाशी ली गई, जिससे पीड़िता का शव घास के ढेर में मिला।
इस मामले में अनधिकृत नियुक्ति की एसआईटी जांच की याचिका को पटना हाइकोर्ट ने खारिज की साथ ही 10 हजार का जुर्माना लगाया। इसके अलावा न्यायालय ने कहा, प्रारंभिक संस्करण के उपरोक्त विवरण से यह स्पष्ट है कि कथित घटना का कोई भी प्रत्यक्षदर्शी नहीं है। लेकिन जब हम पीडब्लू-1 और पीडब्लू-5 के साक्ष्य की जांच करते हैं तो हम पाते हैं कि पीडब्लू 1 और 5 ने मुकदमे से पहले रखे गए अभियोजन पक्ष के संस्करण 21 की योजना में अपने बयानों को फिट करने के लिए अपने मामले में सुधार किया।
कोर्ट ने माना कि ट्रायल कोर्ट सबूतों को सही परिप्रेक्ष्य में साबित करने में विफल रहा। तदनुसार, अदालत ने दोषसिद्धि के आक्षेपित फैसले और सजा का आदेश रद्द कर दिया और अपील की अनुमति देते हुए अपीलकर्ता को उसके खिलाफ लगाए गए आरोपों से बरी कर दिया। यह मामना मुन्ना अंसारी बनाम बिहार राज्य बिहार का है।