गौतम चौधरी
आज के भारत में जैसे-जैसे भेदभाव, हिंसा बढ़ी हैं, वैसे-वैसे सांप्रदायिक सौहार्द के उदाहरण भी राहत के तौर पर सामने आए हैं। जब सांप्रदायिक सद्भाव के संकेत सुर्खियों में आते हैं, तो सद्भाव और सह-अस्तित्व की पिछली स्मृति को फिर से जीवित करने की आशा को बल मिलता है। इस्लामोफोबिया और नफरत को कायम रखने के गढ़े गए आख्यान ने हमारे सामाजिक जीवन को जटिल बना दिया है, और मुसलमानों और हिंदुओं के पड़ोसियों के रूप में रहने की कल्पना करना भी कठिन बना रहा है। हालाँकि, भारत की विविधता का जश्न मनाते हुए शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व से जुड़ी यादें, आशाएं और आशावाद हमेशा हमारे साथ हैं।
अभी हाल ही में विगत 10 जून को जुम्मे की नमाज के बाद रांची के मेन रोड में हिंसा भड़क गयी। हिंसक भीड़ पत्थरबाजी पर उतारू थे। इस हिंसा में कई पुलिसकर्मी घायल भी हो गए लेकिन जब अल्वर्ट एक्का चैक पर उसी हिंसक भीड़ में एक पुलिसकर्मी फंस गया तो दो मुस्लिम नौजवानों ने यह कहते हुए उक्त पुलिस की सहायता की हमें अपने धर्म में यह नहीं सिखाया गया है कि निर्दोश को हानि पहुंचाएं। हालांकि पूरी हिंसक भीड़ पुलिस को पूरी तरह हानि पहुंचाने के फिराक में थे लेकिन उस नौजवान ने उक्त पुलिस की जान बचाई। इस हिसा के बीच रांची से निकलने वाली एक प्रतिनिधि उर्दू अखबार, ‘‘दैनिक फारूखी तंजीम’’ ने हिंसा के खिलाफ अपील का विज्ञापन छाप कर संवेदनशील मीडिया होने का प्रमाण प्रस्तुत किया। फारूखी तंजीम के स्थानीय संपादक गुलाम शाहिद ने अपने विभिन्न सोशल मीडिया खाते भी शांति की अपील के अपील वाले संदेश पोस्ट किए।
तमाम उथल-पुथल के बीच, इसी प्रकार के सांप्रदायिक सदभाव के उदाहरण केरल से भी आए हैं। केरल के एक मंदिर ने स्थानीय मुसलमानों के लिए इफ्तार समारोह आयोजित करके सांप्रदायिक सद्भाव और सहिष्णुता की आशा को फिर से जगा दिया है। केरल के मलप्पुरम जिले के थिरुर में विष्णु महादेव मंदिर के मैदान में 7 अप्रैल को मंदिर के प्रबंधन निकाय द्वारा आयोजित सामूहिक इफ्तार के लिए लगभग 300 मुस्लिम एकत्र हुए। यह आयोजन सामाजिक संबंध और सामुदायिक जीवन की भावना को ध्यान में रख कर किया गया था। दोनों समुदायों ने एक-दूसरे के अस्तित्व को अपनी सामाजिक वास्तविकता के रूप में स्वीकार किया है और एक-दूसरे पर परस्पर निर्भरता का कोण भी है, इसलिए वे इस विशिष्टता का जश्न मनाते हैं।
वे एक-दूसरे के दैनिक जीवन में भाग लेते हैं क्योंकि वे दैनिक कार्यों पर अपनी निर्भरता को पहचानते हैं, और त्यौहार केवल उस बंधन को मनाने के अवसर हैं। मंदिर समिति के सचिव सुकुमारन वी. ने बताया कि इफ्तार के बारे में जो बात हमें सोचने पर मजबूर करती है, वह यह है कि हमारे कई मुस्लिम मित्र रमजान के कारण मंदिर उत्सव के हिस्से के रूप में आयोजित वार्षिक सामूहिक भोज में शामिल नहीं हो सके। हमारे लिए, यह एक बड़ी कमी होगी क्योंकि हम अपने मुस्लिम भाइयों और बहनों की मदद और समर्थन से त्योहार का आयोजन करते थे। उन्होंने आगे कहा कि ष्विचार-विमर्श करने के बाद, मंदिर समिति ने समुदाय के मुस्लिम सदस्यों के लिए इफ्तार आयोजित करने का फैसला किया। पंचायत के एक सदस्य और मुस्लिम लीग के एक स्थानीय नेता अब्दुल समद ने कहा कि हम सभी मंदिर द्वारा आयोजित इफ्तार में शामिल होने के लिए बहुत खुश और सम्मानित महसूस करते हैं, मैंने गैर-मुसलमानों द्वारा आयोजित कई इफ्तार पार्टियों में भाग लिया है। मंदिर द्वारा आयोजित इफ्तार मेरे लिए एक नया अनुभव था, उन्होंने कहा, यह हमें एकजुटता और सुरक्षा की भावना देता है। हमें ऐसा लगता है कि इस अंधेरे समय में हमारे हिंदू भाइयों द्वारा समर्थित किया जा रहा है।
धर्मनिरपेक्षता का उद्देश्य पूर्ण संदेश विविध संस्कृतियों और सभी धर्मों के आवास का सम्मान करने की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है। जबकि देश के कई हिस्से सांप्रदायिक हिंसा का दंश झेल रहे हैं, केरल के थिरुर का विष्णु महादेव मंदिर सभी समान विचारधारा वाले भारतीयों के अनुसरण के लिए एक आदर्श के रूप में उभरा है। इस प्रकार के हजारों उदाहरण हमारे देश में हैं लेकिन हमारी मीडिया उतना परिपक्व नहीं हो पायी है कि रचनात्मकता को उभारे। हमारे समाचार माध्यमों के लिए आज भी हिंसा, काम-वासना, राजनीतिक कहानियां और अपराध महत्वपूर्ण बने हुए हैं। इस चित्र को बदलना होगा अन्यथा, भविष्य के भारत में आम नागरिकों का जीना बेहद कठिन होगा।