समावेशी संस्कृति ही भारत की ताकत, सिरफिरा जमात इस्लाम का चेहरा नहीं हो सकता

समावेशी संस्कृति ही भारत की ताकत, सिरफिरा जमात इस्लाम का चेहरा नहीं हो सकता

भारत, अद्वितीय विविधताओं वाला देश है। भारत लंबे समय से विभिन्न संस्कृतियों, धर्मों और परंपराओं के सह-अस्तित्व का प्रांगण रहा है। मानों ‘विविधता में एकता’ इस देश की पहचान हो। यह इसकी पहचान में गहरायी तक प्रवेश किया हुआ है। वस्तुतः भारत में विविध सांस्कृतिक और धार्मिक पृष्ठभूमि के लोग केवल निवस ही नहीं करते अपितु उन्हें अपने चिंतन के प्रचार और प्रसार करने का भी संवैधानिक अधिकार प्राप्त है। हालाँकि, हाल के वर्षों में, यहां भी धार्मिक सहिष्णुता और कथित इस्लामोफोबिया पर बहस तो छिड़ी है लेकिन अभी भी माहौल नियंत्रण में है। जैसे दुनिया के अन्य देशों में तलवारें खिंची हुई है वैसी स्थिति भारत में देखने को नहीं मिलता है। दुनिया में भारत ही एक ऐसा देश है जहां अन्य धार्मिक मान्यताओं के अलावा इस्लाम के सभी पंथ आबाद हैं। गोया, कुछ मौका परस्त चिंतक, मीडिया समूह के मानिंद, राजनीतिक व्यक्ति और बाहरी ताकतों से नियंत्रित होने वाले विद्वान कथित तौर पर भारत में भी कई प्रकार के डर का विष्लेशन करते रहते हैं लेकिन वास्तविकता इससे भिन्न है। ये लोग देश के सामाजिक ताने-बाने की निराशाजनक तस्वीर पेश करते हैं पर जमीनी हकीकत कुछ और बया करती है। छिटपुट घटनाओं को यदि नजरअंदाज करें तो यह देश प्रेम, सद्भाव और सह-अस्तित्व मानों पर्यायवाची हो। 

सच पूछो तो इस्लाम और हिंदू धर्म सहित कोई भी धर्म नफरत की वकालत नहीं करता। फिर भी, इतिहास में देखा गया है कि व्यक्ति और समूह धर्म का इस्तेमाल विभाजन के लिए भी करते हैं। जबकि भारत में उठने वाले सांप्रदायिक तनाव पूरे देश का प्रतिनिधित्व नहीं करती हैं। इसके उलट, हिंदू-मुस्लिम एकता की कई कहानियाँ दर्शाती हैं कि भारत में मानवता, धार्मिक सीमाओं की परवाह नहीं करता है। ऐसी ही कई घटनाएं विगत दिनों सुर्खियों में रही। वाराणसी की दिल छू लेने वाली कहानी पर विचार करें, जहाँ मुस्लिम पुरुषों के एक समूह ने हिंदू अंतिम संस्कार की सभी रीति-रिवाजों का पालन करते हुए एक युवा हिंदू लड़की का दाह संस्कार किया। कानपुर के मुसलमानों के प्रयासों पर विचार करें जिन्होंने शिवरात्रि पर मंदिर जाने वाले भक्तों के सामने दूध और फल परोसे। मेरठ में एक 42 वर्षीय मुस्लिम महिला हर दिन हनुमान चालीसा का पाठ करती है, यह अभ्यास उसने अपने कॉलेज जीवन में ही प्रारंभ की थी। असम में एक मुस्लिम परिवार ने पीढ़ियों से 500 साल पुराने शिव मंदिर की देखभाल की है और मेरठ में एक मस्जिद ने हिंदू मंदिर के भंडारे के लिए भोजन पकाने के लिए अपने परिसर का उपयोग करने की अनुमति दी। 

भारतीय लगातार धार्मिक सीमाओं को पार करते हैं, चाहे वह कांवड़ यात्रियों का समर्थन करने वाले मुसलमान हों या रमजान के दौरान उपवास करने वाले हिंदू। ये उदाहरण सिर्फ़ किस्से नहीं हैं, ये भारत की गहरी जड़ें जमाए हुए सांस्कृतिक लोकाचार को दर्शाते हैं। यह दर्शाता है कि कैसे भारतीय, चाहे उनका धर्म कुछ भी हो, सभी धर्मों का पालन करने के अधिकार को बहुत महत्व देते हैं और इस बात पर ज़ोर देते हैं कि दूसरे धर्मों का सम्मान करना, वास्तव में भारतीय होने के लिए ज़रूरी है। भारत में, एक ऐसा भी समूह है जो गैर-जिम्मेदार है और बाहरी ताकतों से नियंत्रित होता है। उस समूह का काम ही देश में कलह पैदा करना और उस कलह को प्रचारित कर दुनिया में भारत को बदनाम करना है। इस प्रकार के समूह का किसी जाति और धर्म से कोई लेना-देना नहीं होता है। हमारे देश में गाहे-बगाहे इस्लाम को टारगेट कर दिाय जाता है लेकिन हमें नहीं भूलना चाहिए कि आधुनिक भारत के निर्माण में भारतीय मुसलमानों की बड़ी भूमिका है। बड़े से बड़े वैज्ञानिक, दार्शनिक, साहित्यकार, चिंतक, पत्रकार, कुशल राजनेता, तकनीक विद्द इस समाज ने दिया है। हां कुछ लोग हैं जो गैर-जिम्मेदार हैं लेकिन उन्हें हम इस्लाम को चेहरा नहीं बना सकते। हालांकि पश्चिमी देशों में इस्लामोफोबिया जैसे चिंतन को स्थापित करने की कोशिश की जा रही है लेकिन भारत में उसका कोई स्थान नहीं है। जिस प्रकार छिटपुट घटनाएं भारत की पहचान नहीं हो सकती उसी प्रकार कुछ भटके हुए लोग इस्लाम का चेहरा नहीं हो सकते।

कुछ असंतुष्ट लोगों द्वारा कलह फैलाने के प्रयासों के बावजूद, प्रेम, सम्मान और एकजुटता के कई कार्य देश के ताने-बाने को मजबूत कर रहे हैं। बावजूद इसके, असहिष्णुता के मामलों की कड़ी निंदा करना और उनसे निपटना महत्वपूर्ण है। एक संस्कृति जो एक-दूसरे के प्रति सम्मान को महत्व देती है, वह किसी भी स्रोत से घृणा को बर्दाश्त नहीं कर सकती। हमें एकजुट करने वाली जबरदस्त अच्छाई को पहचानना उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि अपनी खामियों को स्वीकार करना और उन्हें ठीक करना। भारत की ताकत भारत की संस्कृति और धर्मों का सामंजस्य है। इस्लामोफोबिया सहित किसी भी तरह का नफरत भारतीय संस्कृति का प्रतिनिधित्व नहीं करती है। बल्कि, हिंदू-मुस्लिम एकता की कहानियाँ हमें एक बेहतर और समावेशी समाज बनाने के लिए प्रेरित करती हैं।

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