गौतम चौधरी
अभी हाल ही में मुस्लिम समुदाय से संबंधित भारत के न्यायालयों ने दो महत्वपूर्ण फैसले सुनाए। एक फैसला देश की सर्वोच्च न्यायालय द्वारा कुरान की आयतों को चुनौती देने वाली याचिका से संबंधित है, तो दूसरा फैसला केरल उच्च न्यायालय के अल्पसंख्यक छात्रवृत्ति से संबंधित है। दोनों ही फैसले महत्वपूर्ण हैं और आने वाले समय में यह दोनों फैसला भारत के मुस्लिम समुदाय के भविष्य का फैसला करेगा।
बता दें कि शिया वक्फ बोर्ड के एक निवर्तमान प्रधान-वसीम रिजवी द्वारा कोर्ट में एक लोकहित याचिका दाखिल की गयी। याचिका में याची ने माननीय सर्वोच्च न्यायालय से निवेदन किया कि कुरान की 26 आयतें वर्तमान समय में महत्व खो दिया है। साथ ही ये 26 आयतें भारत जैसे बहुपांथिक देशों में सामाजिक सौहार्द को बिगाड़ने का काम कर रहा है। इसलिए इसे अयोग्य घोषित किया जाए। रिजवी द्वारा दाखिल याचिका ने लोगों का इस्लाम के प्रति एक डर भी पैदा किया। इस याचिका में सभी भारतीय मुसलमानों को आतंकवाद के दायरे में ला खड़ा कर दिया, मानो सभी मुसलमानों को गैर मुस्लिमों को मारने के लिए पोषित किया गया हो। रिजवी ने अपनी याचिका में आगे इन आयतों को भारत की अखंडता व प्रभुत्व के लिए खतरे का स्रोत भी बताया।
रिजवी की इस याचिका की प्रतिक्रिया के तौर पर सभी वर्गों के भारतीय मुसलमानों ने उसकी आलोचना की तथा उसके खिलाफ विरोध प्रदर्शन भी किया व भारत के सर्वोच्च न्यायालय से प्रार्थना करते हुए कहा कि इस याचिका को मंजूर न किया जाए व इसे तुरंत निरस्त किया जाए। रिजवी ने कुरान की इन आयतों की जिस प्रकार व्याख्या की, पश्चिम के कुछ चिंतकों एवं राजनेताओं ने भी पूर्व में ठीक उसी प्रकार की व्याख्या प्रस्तुत की है। ये व्याख्या विना संदर्भों, परिप्रेक्ष्य व परिस्थिति की उस मांग को समझे बगैर की गयी थी जिनके अंतर्गत हजरत मोहम्मद साहब को इन आयतों का इल्म हुआ। अतः रिजवी का बेतुका दावा कोई नया नहीं है व उनकी याचिका पूरी तरह से भड़काउ, समाजिक संतुलन व धर्मनिर्पेक्ष ढ़ांचे को बिगाड़ने वाली, जिसमें इस्लाम व आतंकवाद को आमने-सामने खड़ा कर दिया था।
बहरहाल सर्वोच्च न्यायालय ने वसीम रिजवी की याचिका को तुरंत खारिज करते हुए इसे ‘‘बेहद-झूठी’’ करार दिया तथा रिजवी पर 50 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया। मुस्लिम समुदाय ने सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले पर खुशी जताई और उन्होंने भारतीय न्यायपालिका में अपनी अटूट आस्था जाहिर की। भारत के मुसलमान सदा से ही कानून के दायरे में रहते आए हैं और उन्होंने अपनी बात कहने के लिए न्यायलयों का आश्रय लिया है। अनेकों मुस्लिम संगठनों के साथ मुस्लिम उलेमा, जिनमें मौलाना खालिद रशीद, ऑल इंडिया पर्सनल लाॅ बोर्ड, तथा मौलाना याकुफ अब्बास, शिया वक्फ बोर्ड आदि शामिल हैं, ने न्यायालय के इस फैसले का स्वागत किया और कहा कि बेशक इस बात से यह साबित होता है कि देश में धर्मग्रंथों का सम्मान किया जाता है। इससे मुसलमानों का भारतीय संविधान व न्यायपालिका में विश्वास और मजबूत होगा।
दूसरा फैसला, केरल सरकार के एक लोकलुभावन फैसले पर हाईकोर्ट का आया है। यह मसला अल्पसंख्यक स्काॅलरशिप से जुड़ा है। बताया जा रहा है कि केरल हाईकोर्ट के फैसले से जहां राज्य का मुस्लिम समुदाय बेहद नाराज है, तो दूसरी तरफ ईसाइयों में खुशी देखी जा रही है। वास्तव में विगत दिनों केरल हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के 6 साल पुराने उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसके तहत अल्पसंख्यक के नाम पर मुसलमानों को 80 फीसदी स्कॉलरशिप दी जा रही थी, जबकि ईसाइयों की उसमें महज 20 फीसदी हिस्सेदारी थी। केरल हाईकोर्ट ने इस फैसले को असंवैधानिक करार दिया। हालांकि केरल की साम्यवादी गठबंधन सरकार के मुखिया पिनराई विजयन ने कहा है कि कोई भी फैसला हाईकोर्ट के ऑर्डर को पढ़ने के बाद लिया जाएगा।
दरअसल, केरल में मुसलमानों का प्रतिनिधित्व करने वाली सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग ने मांग की है कि अनुपात खत्म कर दिया जाना चाहिए और पूरी छात्रवृत्ति मुसलमानों को मिलनी चाहिए। अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक आईयूएमएल के राष्ट्रीय सचिव ई टी मोहम्मद बशीर ने कहा, सरकार अदालत के सामने तथ्य पेश करने में विफल रही है। राष्ट्रीय स्तर पर सच्चर समिति की रिपोर्ट के बाद छात्रवृत्ति शुरू हुई थी। साल 2006-11 के एलडीएफ शासन द्वारा मुसलमानों के लिए बनाई गई एक योजना में संशोधन किया गया था ताकि लैटिन कैथोलिक और धर्मान्तरित ईसाइयों को एक हिस्सा दिया जा सके। सरकार को अन्य अल्पसंख्यकों के लिए अलग योजनाएं लानी चाहिए।
इस बीच चर्च चाहता है कि सरकार तुरंत आदेश को लागू करे। इस मामले को लेकर जैकोबाइट बिशप और चर्च ट्रस्टी जोसेफ मोर ग्रेगोरियस ने कहा, ईसाइयों को अल्पसंख्यक कोचिंग केंद्रों में उनके उचित हिस्से से वंचित कर दिया जाता है। हमें उम्मीद है कि सरकार हमें न्याय से वंचित नहीं करेगी। हम उम्मीद करते हैं कि हमारे (ईसाई) मुद्दों को मुख्यमंत्री द्वारा समर्थन किया जाएगा।
केरल हाईकोर्ट के फैसले को भी मुस्लिम समुदाय को उसी प्रकार ग्रहण करना चाहिए जिस प्रकार उसने सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को लिया। यदि केरल उच्च न्यायालय के फैसले पर मुस्लिम समुदाय अड़ियल रवैया अपनाता है तो इसका घाटा मुसलमानों को ही उठाना पड़ेगा। फिलहाल, देश में जिस प्रकार का माहौल बनाया जा रहा है उसमें देश के बहुसंख्यक परंपरावादी, मुसलमानों को अलग-थलग करना चाहते हैं। इसको लेकर वे कई प्रकार के प्रचार अभियान भी चला रहे हैं। देश में अल्पसंख्यक एकता की बात होती रही है।
यदि मुस्लिम और ईसाई आमने-सामने संघर्ष के लिए खड़े होते हैं तो इससे बहुसंख्यक अतिवादियों को लाभ मिलेगा और इससे देश एवं समाज को घाटा पहुंचेगा। पृथक्तावादी शक्तियां पनपेगी एवं पूरे देश में अशांति भी फैल सकती है। इसलिए भारतीय मुसलमानों को तसल्ली से काम लेना चाहिए एवं राजनीतिक कारण एवं राष्ट्रहित में छोटे-मोटे स्वार्थों के प्रति आकर्षित नहीं होना चाहिए। यही नहीं भारत के मुसलमानों को यह भी नहीं भूलना चाहिए कि भारत का संविधान जबतक जिंदा है तबतक इस देश का हर नागरिक सुरक्षित है, साथ ही सभी प्रकार की आजादी एवं छुटों का उपभोग कर रहा है। कुल मिलाकर भारतीय मुसलमानों को देश के सभी अल्पसंख्यक समुदायों का नेतृत्व करना चाहिए। इसके लिए अपना हृदय तो थोड़ा बड़ा करना ही होगा।