गौतम चौधरी
इस्लाम एक ऐसा धर्म है जो शांति, सहयोग, इंसाफ और समझ को बढ़ावा देता है। यह नफरत को बढ़ावा नहीं देता है या हिंसा के कृत्यों की वकालत नहीं करता है। दुर्भाग्य से, इस्लाम के संदेश को उसके विरोधियों ने तोड़-मरोड़ कर पेश किया है। कुछ क्षद्म विरोधियों ने धार्मिक पुस्तकों की गलत व्याख्या कर इस्लाम के स्वरूप को विकृत करने का प्रयास किया है, जो इस अति प्रभावशाली चिंतन के विपरीत है।
अपने राजनीतिक फायदे के लिए चंद लोगों ने इस्लाम के ग्रंथों की गलत व्याख्या की और उसके आधार पर आतंकवाद को अपने साथ जोड़ लिया। उत्तर आधुनिक काल में इस आधार पर दुनिया में कई आतंकवादी संगठन खड़ हुए हैं, जो इस्लाम को फायदा पहुंचाने के बदले उसको बदनाम किया है। जहां-जहां भी इस्लाम के आधार पर आतंकवादी समूह विकसित किए गए वहां आम मुसलमानों को कोई फायदा नहीं हुआ उलट उन लोगों को फायदा हुआ, जिसके खिलाफ लड़ने की बात कही गयी थी। कई आतंकवादी संगठनों ने अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए इस्लाम के नाम का इस्तेमाल किया है। कोई भी व्यक्ति आतंकवादी कृत्यों का दोषी हो सकता है, चाहे उनका धर्म कुछ भी हो। आतंकवाद को विभिन्न संगठनों द्वारा अपने स्वयं के लक्ष्यों, कारणों या विचारधाराओं को आगे बढ़ाने के लिए उपयोग किया गया है। इनमें से किसी में भी धर्म नहीं है, क्योंकि धर्म मानवता की रक्षा के लिए है न कि उसे हानि पहुंचाने के लिए। दुनिया भर में निर्दोष नागरिकों पर ऐसे संगठनों के हमलों का कोई धार्मिक औचित्य नहीं है। इस्लाम का पवित्र ग्रंथ कुरान इसकी इजाजत नहीं देता है।
कुछ आतंकवादी संगठन हैं, जो निर्दोष लोगों की हत्या के बाद खुद को मुजाहिद के रूप में प्रस्तुत करते हैं। उनके मारे जाने के बाद उनके साथ उन्हें शहीद घोषित करने की कोशिश करते हैं। अपने धर्म या ईश्वर के नाम पर शहादत के लिए बेगुनाहों की हत्या करने वालों को अपने कार्यों पर पुनर्विचार करना चाहिए। कुरान के अंश में ईश्वर द्वारा उनके कार्यों की कड़ी निंदा की गयी है। कुरान में यह स्पष्ट है कि विश्वासियों को अपनी रक्षा करनी चाहिए, लेकिन उन्हें कभी भी जुझारू व्यवहार में शामिल नहीं होना चाहिए। इस्लाम में फालतू बल प्रयोग को प्रोत्साहित नहीं किया गया है, बल का प्रयोग केवल तभी किया जाना चाहिए जब शांति बनाए रखने के लिए यह आवश्यक हो। इसमें केवल आतंकवादियों का दोष है, उस विश्वास का नहीं जिसे वे कायम रखने का दावा करते हैं। जो लोग खुद को मुसलमान कहते हैं और गैरइस्लामिक कृत्यों में लिप्त हैं, उन्हें इस्लाम की आज्ञाओं के साथ भ्रमित नहीं होना चाहिए। वास्तव में, वे कुरान के अनुसार, सही अर्थ में मुसलमान नहीं हैं। वे सिर्फ भावनाओं से प्रेरित होते हैं।
इस्लाम के पवित्र धर्म ग्रंथ कुरान मजीद के सुरे बकरा दुसरे पारे में दर्ज है, ‘‘फितना कत्ल से ज्यादा सख्त है।’’ उसी का यह हदीस है। पैगंबर मुहम्मद ने कहा: क्या आप जानते हैं कि दान, उपवास और प्रार्थना से बेहतर क्या है? लोगों के बीच शांति और अच्छे संबंधों को बनाए रखा जाए, क्योंकि झगड़े और बुरी भावनाएं मानव जाति को नष्ट कर देती हैं। (सुनन अबी दावूद 4919)।
इस्लाम हिंसा की निंदा करते हुए अहिंसा, सहिष्णुता, सद्भाव और एक दूसरे के प्रति सम्मान को प्रोत्साहित करता है। इस्लाम विशेष रूप से कहता है कि ईश्वर हमलावरों से घृणा करता है, इसलिए एकमत बनो (कुरान 567)। इस्लाम अपने अनुयायियों को क्षमा का उपयोग करने, सहिष्णुता को बढ़ावा देने और कुरान की शिक्षाओं से अनजान लोगों की उपेक्षा करने से बचने के लिए कहता है। शांति, आपसी सम्मान और विश्वास मुसलमानों के दूसरों के साथ संबंधों की नींव हैं। कुरान के अनुसार, शांति, शांतिपूर्ण तरीकों से ही हासिल की जा सकती है। इस्लाम में, निर्दोष लोगों की हत्या निषिद्ध है, चाहे वह किसी भी कारण से हो, धार्मिक, राजनीतिक, या सामाजिक। ‘‘तुम्हें किसी की हत्या नहीं करनी चाहिए, ईश्वर ने जीवन को पवित्र कहा है। (6ः151)। इस्लाम व्यक्तियों को सिर्फ इसलिए मारे जाने या सताए जाने से मना करता है क्योंकि वे एक अलग धर्म का पालन करते हैं। कुरान समाज में, पूर्ण धार्मिक स्वतंत्रता की मांग करता है। यहां तक कि यह मुसलमानों को आत्मरक्षा में और शांति बनाए रखने के लिए लड़ने से भी मना करता है। साफ शब्दों में कहा जाए तो युद्ध व हिंसा अंतिम उपाय है। यह उन व्यक्तियों पर कोई सीमा नहीं लगाता है जो धार्मिक मुद्दों पर विरोधी दृष्टिकोण रखते हैं। यह मुसलमानों को ऐसे व्यक्तियों के साथ दया और निष्पक्षता के साथ व्यवहार करने के लिए प्रोत्साहित करता है। इस्लाम कहता है कि धर्म में, कोई जबरदस्ती नहीं होनी चाहिए। आप उनसे मित्रता कर सकते हैं, जो आपसे विपरीत विचार रखते हैं और उनके साथ उचित व्यवहार कर सकते हैं। भगवान नेक लोगों का पक्ष लेते हैं। यदि वे शांति को चुनेंगे, तो आप भी ऐसा ही करेंगे और आप परम शक्तिशाली परमात्मा पर अपना विश्वास रखेंगे।
इतने पवित्र और सहिष्णु धार्मिक चिंतन को कुछ राजनीतिक कारणों से बदनाम किया गया है। इस अभियान में वे लोग भी शामिल हैं, जो अपने आप को इस्लाम के अनुयायी बताते हैं। उन्हें या तो इस्लाम की समझ नहीं है या फिर वे समझ कर भी इस काम में लगे हैं। इससे उन्हें व्यक्तिगत फायदा हो रहा होगा लेकिन जिस चिंतन को वे फायदा पहुंचाने की बात करते हैं उसे फायदा होता नहीं दिखता है। यह गलत व्याख्या है कि इस्लाम तलवार के जोर पर फेला है। सच तो यह है कि इस्लाम समानता, भाईचारा और सहिष्णुता के चिंतन से दुनिया में फैला है। जब से मुजाहिदों ने समशीर थामी तब से इस्लाम का पतन प्रारंभ हो गया। दुनिया बदल गयी है। आधुनिक युग में ज्ञान और विज्ञान ही किसी कौम के विकास का मापदंड है।
सूफी संत बाबा बुल्लेशाह कहते हैं: –
फर-फर इल्म किताबा वाला,
नाम रखायो काजी।
मक्के जाकर हज पढ़ि आयो,
नाम रखायो हाजी।
फर समशीर मुजाहिद वाली,
नाम रखायो गाजी।
बुल्लेशाह कुछ नहीं किता,
यार-नू किता राजी।
(इस आलेख में इस्लाम के पवित्र ग्रंथ कुरान मजीद व हदीस की कुछ व्याख्या प्रस्तुत है। यह व्याख्या इस्लामिक चिंतन व धर्म ग्रंथों के जानकार मोहम्मद आलम नदवी कैमूरी के द्वारा की गयी है।)