कलीमुल्ला खांन
अमूमन लोग यह सोच लेते हैं कि मजहबी तौर पर केवल आपस में लड़ने लड़ाने की बात होती है लेकिन गहराई में जाने पर नजारा कुछ और देखने को मिलता है। दुनिया का कोई भी महजब कभी भी अपने बंदे को यह नहीं सिखाता कि वह किसी के साथ उलझे या फिर उसकी हत्या कर दे। वास्तविकता तो यह है कि कुछ लोग धर्म, संप्रदाय या पंथ को तिजारत बना लेते हैं। फिर वहां स्वार्थ पैदा होता है और वहीं से राजनीति प्रारंभ हो जाती है। चिंतन, धर्म, संप्रदाय आदि में जो संघर्ष दिखता है, वस्तुतः वह राजनीतिक संघर्ष होता, जिसे चतुर व्यापारी धर्म या फिर संप्रदाय का कपड़ा पहना देते हैं। विगत दिनों चंडीगढ़ स्थित नूरानी मस्जिद के सदर इमाम मुफ्ती मोहम्मद अनस ने जुम्मे की नमाज के बाद खुतवे वाली तकरीर में कहा कि महजहबों के बीच कोई लड़ाई नहीं है।
मुफ्ती साहब की जुवान में ही ‘‘दुनिया में जितने भी मज़ाहिब पाए जाते हैं, उन सब में इंसानी जान की कीमत और उसके एहतराम, अमन और इत्मीनान के साथ जिंदगी गुजारने के हक को प्राथमिकता दी गयी है। इसी तरह, दीने-इस्लाम में भी बताया गया है कि इस्लाम, अमनो-सलामती का और तमाम इंसानों के दरम्यान मुहब्बत और समाजी भाईचारे को बढ़ावा देरे वाला मजहब है। तशद्दद और इस्लाम में आग-पानी जैसा वैर है-जहां दहशतगर्दी होगा वहां इस्लाम का तसव्वुर नहीं किया जा सकता है। इसी तरह, जहां इस्लाम हो, वहां तशद्दद की हल्की-सी परछाई भी नहीं पड़ सकती। कुरान में अल्लाह ने खुद कहा है – ‘ऐ मोमिनों! पूरे-पूरे अमन और सलामती में दाखिल हो जाओ।’ एक जगह कुरान में कहा है, ‘जमीन के अमन-चैन और दुरूस्तगी के बाद फसाद मत फैलाओ।’ दीने-इस्लाम हर तरह के तशद्दद, हर तरह के जुल्म और हर तहर की दहशत और खूरेजी के बिल्कुल खिलाफ है। कुरानोहदीस में साफ-साफ उसके मानने वालों को हिदायत दी गई है कि किसी भी किस्म की दहशतगर्दी या जुल्म से अपने आपको बचाना है। इसलिए हमारी सरकार ने 21 मई को जो ‘जैमे-इन्शिदात दहशतगर्दी’ मुकर्रर किया है, इसका पैगाम यही है कि हर नौजवान व समाज का हर तबका किसी भी ऐसे गतिविधि से अपने आपको दूर रखें जो मुल्क-मुखालिफ या ‘समाज-दुश्मन’ हो सकती हो। सोशल-मीडिया पर खास तौर पर नौजवान जाने-अनजाने में किसी ऐसे मुवमेंट का शिकार न बन जाए जो मुल्क और राष्ट्रहित के खिलाफ हो। वे अपनी तालिम पर तवज्जो रखें। अमन, मुहब्बत और सामाजी-हमअहंगी को बरकरार रखने के लिए बड़ो की हिदायत पर अमल किया जाए। अपने आप किसी भी जस्बादियत का शिकार न बनें। आपको अपने हकूक हासिल करने के लिए मुल्क के दस्तूर और आईन में जो इज्जत दी है, उसके दायरे में रहते हुए पुरअमन तरीके से उसको हासिल करने के लिए जद्दोजहद की जा सकती है लेकिन तशद्दद और बदअमनी फैलाने की, शरीया तौर पर और कानूनी तौर पर हरगिज किसी को इजाजत नहीं है। सुनने वाले हजरात उन तक भी इस पैगाम को पहुंचाएं जो यहां मौजूद नहीं हैं।’’
मुफ्ती साहब द्वारा कही गयी ये तमाम बातें केवल इस्लाम को मानने वाले या फिर भारत में रहने वालों के लिए ही नहीं है। दुनिया में जहां कहीं भी मुसलमान रहते हैं उनके लिए भी यह महत्व रखता है। इस्लाम में दहशतगर्दी का कोई स्थान नहीं है। इस्लाम में फितना कत्ल से भी बड़ा पाप है। खुद पैगम्बर मोहम्मद ने इसको गलत बताया है। मुफ्ती साहब की बात को शब्दसः कबूल करना ही हमारे लिए बेहतर है। यह अमन का रास्ता है। यह शांति का रास्ता है और मेरी नजर में यही प्रगति का भी रास्ता है।
(आलेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं। इससे जनलेख प्रबंधन का कोई लेना-देना नहीं है।)