गौतम चौधरी
शिव शिष्य परिवार के संरक्षक और डंके की चोट पर शिव को गुरु मानने वाले हरीन्द्रानंद अब इस दुनिया में नहीं रहे। अपने गुरु भाइयों के बीच साहब के नाम से जाने जाने वाले हरीन्द्रानंद ने मेरे साथ व्यक्तिगत चर्चा में अध्यात्म की ऊंचाई के बारे में बात की थी। बिंदास और औघर व्यक्ति के हरीन्द्रानंद जी से मेरी पहली मुलाकात वर्ष 2019 के उत्तरार्ध में हुई थी। पहली मुलाकात में ही उनके व्यक्तित्व में मुझे प्रभावित किया। साहब शिव को अपना इष्ट नहीं गुरु मानते थे और धर्म के लोकतांत्रिकरण की बात करते थे। उनका साफ कहना था कि संसार में कोई बड़ा या छोटा नहीं है। कोई सशरीरी गुरु कैसे हो सकता है। यही बात राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डाॅ. केशव बलिराम हेडगेवार ने भी कहा था। व्यक्ति गुरु नहीं हो सकता है। गुरु का पद तो अशरीरी ही संभव है और उन्होंने भगवा ध्वज को अपना और अपने संगठन का गुरु मान लिया। उसी प्रकार साहब ने भगवान शिव को अपना गुरु बनाया। उनके साथ जो भी जुड़ते उन्हें वे अपना शिष्य नहीं बनाते थे गुरु भाई बना लेते थे। आज जहां एक ओर गुरु बनने और बनाने की होड़ लगी हुई है वहीं वरेण्य गुरु भाई हरीन्द्रानंद जी ने अपने आप को शिव का शिष्य बनाया।
आज साहब के करोड़ों की संख्या में सागिर्दी हैं। बिहार, उत्तर प्रदेश, नेपाल, बंगाल आदि प्रदेशों में बिना शिव चर्चा के अब कोई मांगलिक कार्य संपन्न नहीं होता है। ऐसे महान व्यक्तित्व के सामने जब मैं उपस्थित हुआ तो अध्यात्म और भौतिक जगत की चर्चा प्रारंभ हुई। वैसे तो साहब के साथ कई मुलाकात हुई लेकिन गंभीर चर्चा बस दो बार हो पायी। पहली बार शिव के गुरुत्व की चर्चा हुई और दूसरी बार भगवती काली पर चर्चा किया। साहब ने सृष्टि, देवी काली, मंत्र, तंत्र, यंत्र, साधु, प्रेत आदि कई विषयों पर अपने विचार रखे। साहब के विचार में स्पष्टता साफ झलक रही थी। हरीन्द्रानंद साहब के साथ बातचीत का संपादित अंश यहां प्रस्तुत कर रहा हूं।
आदि देवी काली की व्याख्या करते हुए उन्होंने कहा कि काल से जो परे हैं वह महाकाल हैं। आपको बता दें कि शिव को महाकाल भी कहा जाता है। देवाधिदेव महादेव सृष्टि के पहले से देव हैं। दरअसल, सृष्टि की उत्पत्ति के साथ ही काल की गणना प्रारंभ हो जाती है। सृष्टि से पहले न तो कोई काल था और न ही कोई रंग या रूप। केवल शून्य था, शून्य का मतलब खाली स्थान होता है यानी स्पेश। सृष्टि से पहले अंधेरा था, चूकि काली उस समय की देवी हैं इसलिए उनका रूप कला दिखाया गया है। उन्हें काला दिखाया जाता है। यह काली के रूप का महाविज्ञान है। हम थोड़ा और आगे बढ़ते हैं। जब आदि देव शिव को सृष्टि की रचना का विचार आया तो उनके मस्तिष्क में कंपन हुआ। याद रहे विचार के साथ ही साथ कंपन प्रारंभ हो जाता है। यह सामान्य प्रक्रिया है। यदि हमारे मस्तिष्क में भी विचार आता है तो कंपन होता है। इसलिए आदि गुरू के मस्तिष्क में भी कंपन हुआ। वही कंपन की ध्वनि ओम है। ओम को और सही तरीके से समझने के लिए इसको तीन भागों में विभाजित कर लीजिए। ओम तीन अक्षर से बना है। अ का मतलब होता है उत्पत्ति, उ का मतलब होता है पालन और म का मतलब होता है संहार। अब अपको स्पष्ट हो गया होगा। इसीलिए हमारे जीवन, मन और मस्तिष्क पर ओम का विशेष प्रभाव पड़ता है क्योंकि ओम सृष्टि की उत्पत्ति की प्रथम ध्वनि है। इसमें रचना, पालन और संहार तीनों के गुण सन्निहित हैं। इसको और सही ढंग से समझ सकते हैं। जिसके मस्तिष्क में सृष्टि का विचार आया उसे अब हम पुरुष ढांचे में रखते हैं तो उसे हम महादेव कहेंगे। शिव पुरुष हैं क्योंकि उन्होंने सृष्टि की इच्छा की और इच्छा, देवी काली हो गयीं। इसीलिए देवी काली सृष्टि की आदि देवी है। यह शिव के विचार से उत्पन्न हुई हैं। इसलिए देवी काली को शिव की प्रथम शिष्या भी कहा जाता है। शिव में जो गुण है वह देवी काली में है और वे देवी कमाल की देवी है। देवी काली सृष्टि की रचना के पहले की देवी हैं। देवी काली सृष्टि के विचार के साथ उत्पन्न हो गयी थी। देवी काली के दो रूप हैं। एक काल की देवी हैं और दूसरा काल से परे की देवी हैं। इसीलिए तंत्र साधक दक्षिण और वाम काली की अलग-अलग व्याख्या करते हैं। काली को मां मानने से उसके किसी भी रूप को आप अपने घर में रख सकते हैं लेकिन सामान्य रूप से वाम काली की पूजा घरों में नहीं होती है। वाम काली शमशान की देवी हैं। दक्षिण काली की पूजा आप घर में कर सकते हैं।
तंत्र, मंत्र और यंत्र पर पूछे गए सवाल के जवाब में हरीन्द्रानंद साहब ने कहा कि जिसका मन मनन करे वह मंत्र है। तंत्र फैलाव है और यंत्र मशीन को कहते हैं। उसमें ताकत डालनी पड़ती है। उसी प्रकार उन्होंने कई उदाहरणों के साथ प्रेत और साधु की भी व्याख्या की। कहा कि प्रेत भी होता है। अतृप्त आत्माएं प्रेत योनि में चली जाती हैं। उसे किसी को तंग करने में आनंद आता है। कभी-कभी प्रेत देवता के रूप में प्रगट हो जाता हैं। इसलिए आदि गुरु की कृपा आप पर होनी चाहिए। तभी उसे आप पहचान पाएंगे। प्रेत कभी-कभी इतना बढ़िया करके आपका विश्वास जीत लेगा कि आप उसके प्रशंसक हो जाएंगे लेकिन अंततोगत्वा वह आपको हानि ही पहुंचाएगा क्योंकि उसकी प्रकृति ही हानि पहुंचाने वाली है। साधुओं को आपके हित में आनंद आता है लेकिन प्रेत को तंक करने में मजा आता है। अलौकिक संसार का विज्ञान समझ में आएगा तब आप सही ढंग से व्याख्या कर पाएंगे। यही आदमी फंसता है।
गुरुदक्षिणा के बारे में हरीन्द्रानंद ने कहा कि गुरु के प्रति कृतज्ञता ही गुरुदक्षिणा है। सबसे अंत में उन्होंने कहा कि आपको पता है कि मैंने शिव को क्यों गुरू माना क्याकि नाले भी मंदिर जाते हैं। आप तो समय के साथ बंधे हैं लेकिन नालों में रहने वाले जीव जब चाहें शिवलिंग पर चढ़ जाएं। शिव सुलभ हैं। शिव सहज हैं। लौकिक गुरुओं की तरह रास्ता दिखाते हैं। यदि आपने मन से, विश्वास से शिव को गुरु मान लिया है तो वे हर वक्त आपके साथ हैं और आपको सही रास्ता दिखाते रहेंगें। एक बार मान कर तो देखिए। फिर देखिए चमत्कार। मेरे जीवन में ऐसे कई चमत्कार हुए हैं। इसलिए मैं शिव को अपना गुरु मानता हूं और लोगों को भी कहता हूं कि आप शिव को गुरु मान लीजिए।
साहब हरीन्द्रानंद का जीवन परिचय
वरेण्य भ्राता हरीन्द्रानंद जी का जन्म सिवान जिला, बिहार में हुआ था। यह स्थान बिहार प्रांत के सीवान जिले में सरयू नदी के उत्तरी तट पर स्थित है। देवाधिदेव महादेव का तेज सिवान के कण-कण में व्याप्त है। कितने रत्न छिपे हैं, यह जानकर इस भूमि को देशरत्न बाबू राजेंद्र प्रसाद की जन्मस्थली का नाम मिलने पर गर्व हुआ और अब रत्ननगर की यह भूमि भगवान के सबसे प्रिय शिष्य साहब श्री हरीन्द्रानंद जी की आध्यात्मिक जागृति यात्रा से मुग्ध और प्रफुल्लित है, जो अपने ही गर्भ से अवतरित हुए। राजेंद्र बाबू ने अपनी सादगी से राजनीतिक उच्चता का कीर्तिमान रचा, तो साहेब श्री हरीन्द्रानंद जी बिना धूमधाम से अपने आध्यात्मिक जागरण से शिवत्व की गाथा लिख रहे हैं। कौन हैं ये जो शिव की चर्चा के माध्यम से गृहस्थ जीवन में आध्यात्मिक जागृति की भावना जगा रहे हैं। हमारी दुनिया में कौन आया है, जो हमारे गृहस्थ जीवन को शिवत्व से सुगन्धित बना रहा है और उसे सुशोभित करने की युक्ति चला रहा है।
अमलोरी बिहार के सीवान जिले का एक गाँव है। यह गांव सीवान से 5 किमी की दूरी पर गोपालगंज जाने वाले मुख्य मार्ग पर स्थित है। यह वही गाँव है जहाँ 1948 में कार्तिक कृष्ण पक्ष चतुर्दशी की एक सर्दियों की सुबह, भगवान को भाग्य के हाथों से लिखी गई सदियों की कहानी मिली और श्री विश्वनाथ सिन्हा और माता श्रीमती राधा जी, साहेब श्री हरिंद्रानंद की पहली संतान के रूप में अवतार लिए। .जी, ऐसा अवतरण हुआ कि माता-पिता और गांव जवार ही नहीं, बल्कि पूरे देश ने जयंती मनाई। उस दिन दिवाली थी। मिट्टी, मिट्टी के खिलौने और मिट्टी के शरीर, पिता श्री विश्वनाथ बाबू की शक्ति और माता राधा जी की गोद की छाया पाकर वे ऐसे तेज की मिट्टी से माधव बन गईं। जैसे हृदय में शिव, श्वास में शिव और कंठ में पंचाक्षर बस गए।
साहब श्री हरीन्द्रानंद जी का जन्म सन 1948 में बिहार के सीवान जिला के एक अमलोरी नामक गांव में हुआ था इनका जन्म इस स्थान के सिन्हा परिवार में हुआ था। इनके पिता बिहार प्रशासनिक सेवा में थे, साहब श्री हरींद्रानंद जी भारत में शिव आज भी गुरु है जन जन तक पहुंचाने का काम किये, और लाखो लोगो को शिव शिष्य बनाये, शिव शिष्य परिवार के संस्थापक के रूप में समाज में उभर कर बाहर आए। 5 वर्ष की उम्र में भूत प्रेत और तंत्र मंत्र की बातें, किशोरावस्था में श्मशान साधना, कॉलेज के दिनों में शिव की तलाश। आरा, सहरसा और साहेबगंज के श्मशानों से लेकर नरमुंडों तक में खोज, सिर्फ रहस्यमयी दुनिया की खोज चलती रहीं।
यह 1974 तक चलता रहा। शिव के रूप में तो कभी ऋषि के रूप में प्रच्छन्न आत्माएं शिव के मूल ज्ञान से भटकने का प्रयास करती रहीं। 1974 का नवंबर श्री साहब के जीवन में आपके लिए अवसाद लेकर आया था, लेकिन तब तक मन शिवत्व के प्रति जागरूक हो चुका था। 1975 में मुजफ्फरपुर के पास तुर्की में सरकारी आवास पर, साहब श्री को शिव नाम मंत्र के बारे में पता चला जब नमः शिवाय अपनी सांसों के साथ आत्मा की गहराई में उतर गया। एक पल के लिए तो लगा जैसे पूरी जिंदगी ही ठहर सी गई हो। वे चिल्लाए ‘री-रे! वे ढूंढ रहे थे, मिल गए, मिल गए। बेखुदी ऐसी कि मां घर के अंदर से चिल्लाती रही कि क्या मिला है, लेकिन होश किसने दिया होता? जब होश आया तो मां ने बाहर से चिल्ला कर कहा कि मां को चाबी मिल गई है। यह अध्यात्म की कुंजी थी जो सांसों में इतनी लीन थी कि अब तक आत्मा के तार बजते रहते हैं। और चमत्कार होते रहते हैं।
साहिब श्री हरीन्द्रनंद जी के पिता श्री विश्वनाथ सिंह जी व्याख्याता थे। बाद में उनका चयन बिहार प्रशासनिक सेवा के लिए हो गया। कुछ दिनों बाद उनकी सेवा शिक्षा विभाग को सौंप दी गई। पिता के स्थानांतरण के साथ साल दर साल उजड़ना और फिर बसना बस्ती साहब श्री हरिंद्रानंद जी की जीवन शैली का हिस्सा बन गई। पुत्र की आध्यात्मिक प्रवृत्ति को देखते हुए पिता ने वर्ष 1972 में साहब का विवाह पलामू जिले के मनातू गांव निवासी प्रसिद्ध जमींदार मौआर जगदीश्वरजीत सिंह की दूसरी पुत्री राजमणि नीलम जी से कर दिया। नीलम आनंद जी, जिन्हें दीदी श्री के नाम से जाना जाता है, एक बार श्री हरीन्द्रनंद जी के जीवन साथी बन गए, जैसे छाया जीवन की तरह यात्रा करती रही। अपने पति के साधना मार्ग में बाधक बनने के बजाय, उन्होंने एक साथी बनना चुना।
शिव को गुरु बनाया, हरीन्द्रानंद जी की दुनिया बदल गई। जो श्मशान में ढूंढते थे, वो खुद दिल में बैठ जाएं, जिन्हें मंदिरों में ढूंढते रहे वो सांसों में बस गए। वह जो भी जप करना चाहता था, वह उसके गले में उतर गया। जिसे लोग चमत्कार कहते हैं, उसे हरीन्द्रानंद जी महादेव की कृपा बताते हैं। साहेब श्री हरीन्द्रानंद जी की वैचारिक सादगी से अभिभूत सभी गुरु भाई-बहन उन्हें ‘नाम’ नहीं ‘वेरेण्य गुरुभ्रता’ कहकर संबोधित करना पसंद करते हैं।
बीते कल वरेण्य भ्राता हरीन्द्रानंद जी इस लौकिक जगत की यात्रा समाप्त कर अनंत की यात्रा पर निकल गए। उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन शिव शिष्यत्व में बिताया और लोगों को यही शिक्षा देते रहे कि शिव यदि गुरु हैं तो किसी पंडित पुजारी की जरूरत नहीं है। शिव को भजिए और अपने को शिव के समक्ष प्रस्तुत कर दीजिए। जीवन धन्य हो जाएगा।
जनलेख परिवार की ओर से वरेण्य भ्राता हरीन्द्रानंद जी को सादर श्रद्धांजलि।