राज सक्सेना
नेपाल में हिंदू राष्ट्र की मांग फिर से उठ रही है। एक विशाल आंदोलन के बाद 2008 में नेपाल को एक धर्मनिरपेक्ष राज्य घोषित किया गया था। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में हिंदू राष्ट्र की मांग लगातार बढ़ रही है। हिंदू राष्ट्र की मांग का समर्थन करने वाले लोग तर्क देते हैं कि नेपाल एक हिंदू बहुल देश है और इसलिए इसे एक हिंदू राष्ट्र होना चाहिए। वे कहते हैं कि धर्मनिरपेक्षता ने नेपाल के हिंदू मूल्यों और संस्कृति को नुकसान पहुंचाया है। हिंदू राष्ट्र की मांग के समर्थन में कई आंदोलन हुए हैं। 2023 से नेपाल के पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह ने देश को एक हिंदू राष्ट्र के रूप में स्थापित करने का अभियान शुरू किया है। इसके अलावा, कई हिंदू संगठनों ने भी हिंदू राष्ट्र की मांग को प्रबल समर्थन दिया है। हिंदूराष्ट्र की मांग, नेपाल की राजनीति में एक प्रमुख मुद्दा बन गया है। यह देखना बाकी है कि क्या नेपाल सरकार इस मांग को स्वीकार करती है या नहीं।
नेपाल की राजधानी काठमांडू में गुरुवार 23, नवंबर को राजतन्त्र के पुनर्स्थापन और नेपाल को हिंदू राज्य का दर्जा देने की मांग को लेकर बड़े पैमाने पर प्रदर्शन हुए। समाज के लगभग सभी वर्गों के लाखों लोगों, जिनमें देश के अन्य प्रान्तों से भी सहभागी थे, ने राष्ट्रीय राजधानी की सड़कों पर मार्च किया और पुलिस से भिड़ गए जिन्हें लाठी चार्ज करना करके हटाना पड़ा और आंसू गैस के गोले दागने पड़े। राष्ट्र, राष्ट्रीयता, धर्म संस्कृति और नागरिक बचाओ आंदोलन के नाम से चलने वाले इस आंदोलन के तहत, संगठित प्रदर्शनकारी विपक्ष के कार्यकर्ताओं के साथ भी भिड़ गए। इस आंदोलन का नेतृत्व दुर्गा प्रसाद प्रसेन कर रहे हैं जो मांग कर रहे हैं कि माओवादी प्रधानमंत्री पुष्पकमल दहल प्रचंड के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार इस्तीफा दे। आंदोलन के आयोजकों ने अगले कुछ दिनों में राष्ट्रीय राजधानी के साथ-साथ अन्य प्रमुख शहरों में विरोध प्रदर्शन की एक श्रृंखला की योजना बनाई है। पिछले कुछ हफ्तों से प्रसेन के आंदोलन ने जो गति पकड़ी है, उसने नेपाल और नेपाल में राजनीतिक नौकरशाही सहित सुरक्षा प्रतिष्ठानों को भी आश्चर्यचकित कर दिया है।
यह आंदोलन अब सरकार और वर्तमान राजनीतिक व्यवस्था के लिए एक वास्तविक खतरा पैदा कर रहा है। नेपाल में, सत्ताधारी और विपक्ष दोनों ही राजनीतिक दलों की नाकामी को लेकर भारी गुस्सा है। नेपाल में सभी राजनीतिक दलों को आमतौर पर भ्रष्ट माना जाता है और राजनेताओं को बेईमान, सत्ता का भूखा और अनैतिक माना जाता है। वर्तमान राजनीतिक व्यवस्था को व्यापक रूप से निष्क्रिय माना जाता है और इसे देश के राजनेताओं के हितों की पूर्ति के लिए बनाया गया माना जाता है।
नेपाल भीषण बेरोजगारी से घिरा हुआ है। दौड़ती मुद्रास्फीति ने गंभीर वित्तीय संकट और खराब प्रशासन के साथ-साथ सिस्टम के खिलाफ जनता में गुस्सा पैदा कर दिया है। देश की आर्थिक स्थिति काठमांडू घाटी के बाहर, समुचित भौतिक बुनियादी ढांचे की कमी, खराब स्वास्थ्य सम्बन्धी देखभाल और शिक्षा सुविधा के अतिरिक्त एक अल्प विकसित सामाजिक सुरक्षा नेटवर्क से जूझ रहा वातावरण, लोगों का वर्तमान संसदीय लोकतांत्रिक प्रणाली में तेजी से विश्वास खो रहा है।
पूरे देश में लाखों लोगों से उनकी मेहनत की कमाई को उन सहकारी समितियों और माइक्रोफाइनेंस कंपनियों द्वारा लूट लिया गया है जिनके संरक्षक शक्तिशाली राजनेता हैं। इससे भी गुस्से की लहर पैदा हो गई है। अंधकार में भविष्य को जाते देख, नेपाल की क्रोधित और असंतुष्ट जनता ने यह मानना शुरू कर दिया है कि एक संवैधानिक राजशाही देश के लिए सबसे उपयुक्त शासन प्रणाली होगी। देश की विशाल हिंदू आबादी राजा को भगवान विष्णु के जीवित अवतार के रूप में देखती है। 2008 में देश के धर्मनिरपेक्ष हो जाने को लेकर हिंदुओं के बड़े वर्ग में नाराजी बढ़ रही है। हिंदू राष्ट्र की स्थिति में इस वक्त बदलाव ने ईसाई और मुस्लिम प्रचारकों के लिए दरवाजे खोल दिए। जिन्होंने देश में गरीबी का फायदा उठाकर कई लोगों को ईसाई धर्म में प्रत्यावर्तित कर दिया और प्रलोभन के माध्यम से इस्लाम में प्रत्यावर्तन सामाजिक तनाव पैदा कर रहा है। नए धर्मांतरित लोग हिंदू पूजा स्थलों पर भी हमले कर रहे हैं। इसलिए नेपाल को एक बार फिर हिंदूराष्ट्र बनाने की मांग जोर पकड़ रही है।
प्रचंड के सीपीएन यूएमएल प्रमुख ओली के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध थे लेकिन दोनों के बीच अनबन हो गई। एक साल पहले से प्रचंड न केवल ओली बल्कि वर्तमान शासन प्रणाली के भी कटु आलोचक बन गए हैं। प्रचंड ने ओली के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगाए। उन्होंने ओली पर भारी संपत्ति अर्जित करने और गलत तरीके से अर्जित धन को कंबोडिया में संपत्तियों और उद्योगों में निवेश करने का आरोप लगाये हैं। प्रचंड को एहसास हुआ है कि लोग राजनेताओं की वर्तमान पीढ़ी से नाराज थे और शासन की वर्तमान प्रणाली परिणाम देने में विफल रही है।
प्रसेन ने इस आम गुस्से का फायदा उठाया और अपने संसाधनों का उपयोग करते हुए देश के विभिन्न हिस्सों में छोटे आंदोलन शुरू किये। ये काठमांडू में गुरुवार 23 नवंबर को शुरू किए गए बड़े आंदोलन की रिहर्सल थे। पूरे देश में छोटे-छोटे प्रदर्शन हुए और सोशल मीडिया के जरिए प्रसेन के आंदोलन ने बड़ी संख्या में लोगों, खासकर देश के बेरोजगार युवाओं और दुखी गरीबों का ध्यान खींचा। प्रसेन को सोशल मीडिया विशेष कर फेसबुक और टिकटोक पर बड़ी संख्या में प्रशंसक मिले। अब उनके अनुयायियों की संख्या सभी राजनेताओं से अधिक हो चुकी है। देश के राजनेताओं और वर्तमान शासन प्रणाली की आलोचना करने वाले उनके भाषणों और बयानों के वीडियो को लाखों बार देखा गया है। यद्यपि राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी आरपीपी, जो राजशाही वापस चाहती है और नेपाल को हिंदू राष्ट्र का दर्जा बहाल करना चाहती है, ने आधिकारिक तौर पर आंदोलन को समर्थन नहीं दिया गया है। मगर कई आरपीपी नेता गुप्त रूप से आंदोलन का समर्थन कर रहे हैं।
नेपाल सरकार ने प्रसेन के आंदोलन को रोकने के लिए शुक्रवार 24 नवंबर तड़के कदम उठाते हुए उन्हें अनौपचारिक रूप से घर में नजर बंद कर दिया। लेकिन इसके विपरीत उनके समर्थकों को शुक्रवार दोपहर से काठमांडू के तीन बड़े क्षेत्रों में प्रदर्शन से नहीं रोका। देश की राजनीति में दखल रखने वाले एक वर्ग का मानना है कि आंदोलन को चलने देना चाहिए। सीमित वित्त के अभाव में कुछ समय बाद आंदोलन खुद खत्म हो जाएगा। इसके सर्वथा विपरीत देश के सुरक्षा और खुफिया प्रतिष्ठानों के एक वर्ग सहित अन्य लोगों का मानना है कि अगर इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो आंदोलन को न केवल ताकत मिलेगी बल्कि यह देश को अराजकता की स्थिति में भी ले जा सकता है। देश की खुफिया एजेंसियों और सैनिक सेवा के कई लोगों को संदेह है कि आंदोलन को बाहरी संस्थाओं द्वारा वित्त पोषित किया जा रहा है।
राजा ज्ञानेंद्र के सार्वजनिक कार्यक्रमों को पिछले कुछ समय से जनता का भरपूर समर्थन मिल रहा है। जब वे 24 नवंबर को नेपाल के दक्षिण पश्चिम जिले के मुख्यालय झापा में एक प्रतिमा का अनावरण करने गए थे तो हजारों लोग सड़क पर जमा हो गए थे। राजा पृथ्वी नारायण शाह आधुनिक नेपाल के संस्थापक रहे हैं। उनकी मूर्ति के अनावरण समारोह में राजा ज्ञानेंद्र के साथ 8000 से अधिक दो पहिया और 1000 से अधिक चैपहिया वाहनों का विशाल काफिला था। कुछ हफ्ते पहले, अपदस्थ राजा की नेपाल में एक लोकप्रिय स्थान की यात्रा पर हजारों लोग जुट गये थे। यह सब देश के राजनेताओं के लिए बुरा संकेत है। नेपाल हिन्दू राष्ट्र के द्वार पर दस्तक दे रहा है।
(आलेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं। इससे हमारे प्रबंधन का कोई सरोकार नहीं है।)