उषा जैन ’शीरीं‘
हम जिस संक्रमण-काल से गुजर रहे हैं उसमें पुरानी सभी मान्यताओं में तेजी से उलट फेर हो रहा है। हमारी सबसे अहम् और बेसिक संस्था है विवाह संस्था जिसका स्वरूप आज तेजी से बदल रहा है। विवाह से जुड़ी आज कई मान्यताएं नकार दी गई हैं। उनकी जगह नई रीतियां अपनी सुविधानुसार चल पड़ी हैं। इन्हीं में से एक है औरत का पति से उम्र में ज्यादा होना। यह दोनों को ही सूट करने लगता है। कारण कुछ मनोवैज्ञानिक और कुछ नये जमाने के पैदा किए हुए हैं।
आज के युवक युवतियां दोनों ही करियर को लेकर बेहद महत्त्वाकांक्षी हैं। उन्हें कुछ बनने का जुनून रहता है। उसके लिए वक्त चाहिए। पहले पढ़ाई, फिर जॉब, तब तक अच्छी खासी उम्र निकल जाती है। लड़कियां अपनी मेहनत, लगन, सिंसियरिटी और प्रिफरेंस के कारण जल्दी अच्छा जॉब और प्रमोशंस पा लेती हैं। कुछ अन्य कारण भी हो सकते हैं जैसे नैतिकता से समझौता करना आदि। फिर पद के गुरूर में वे पति नाम के जीव की दबैलदारी में रहना पसंद नहीं करतीं जैसे अनीषा जो एक ऊंचे प्रशासनिक पद पर कार्यरत हैं, कहती हैं ’शादी करूंगी तो अपने से कम उम्र वाले से जो मुझसे किसी तरह के सवाल जवाब न करते हुए मुझे सम्मान की जिन्दगी देगा। भले ही वो मुझसे कम कमाये लेकिन मुझ पर हावी न हो क्योंकि वो मैं बर्दाश्त नहीं कर पाऊंगी।’
आज की कमाऊ, आत्मनिर्भर, आत्मविश्वास से पूर्ण औरत को संरक्षक की नहीं बल्कि साथी की जरूरत ज्यादा है जिसकी आपूर्ति कम उम्र का पति बखूबी कर सकता है। एक सच्चाई यह भी है कि युवतियां ब्यूटी पार्लर की बदौलत उम्र को धता बताने में सक्षम हो गई हैं। वे हैल्थ एंड फिटनेस को लेकर बेहद जागरूक हैं। बालों की सफेदी अब कोई समस्या नहीं है, थैंक्स टू लॉरियल, गार्नियर, गोदरेज और स्टिक आदि। रिंकल फ्री क्रीम और लोशन हैं। तरह-तरह की मेकअप विधियां हैं। शहनाज हुसैन को देखें, उनकी उम्र कौन बता सकता है। इसी तरह हेमा मालिनी, रेखा, शर्मिला टैगोर को देखें तो उम्र के पांचवें दशक में भी वे बेहद आकर्षक हैं। आज की फैशनपरस्त औरतों की वे रोल मॉडल हैं। उदिता मॉडलिंग के क्षेत्रा में हैं। स्वयं भी बॉडी टैंपल के नाम से मॉडलिंग स्कूल चलाती हैं। मॉडलिंग की टेªनिंग के लिए अपनी बहन को छोड़ने आने वाले रूद्राक्ष महाजन की उनसे जो आंखें चार हुईं तो उम्र में दस वर्ष बड़ी उदिता से कुछ दिनों की कोर्टशिप के बाद उसने विवाह कर लिया। मदर फिक्सेशन को लेकर मनोवैज्ञानिकों का मत है कि पुरूषों में एक कॉम्पलेक्स होता है जिसकी प्रेरणा से वह पत्नी में मां की छवि ढूंढने का प्रयास करता है। दरअसल हर पुरूष में कहीं एक बच्चा छुपा होता है जो मां के सामीप्य के लिए लालायित रहता है। बड़ी महिलाओं से विवाह करने के पीछे एक कारण बचपन में मां के प्यार का अभाव भी हो सकता है। यह एक ऐसी कमी होती है जिसे पूरा करने की चाह हर पुरूष को शिद्दत से होती है। उसके क्रोध, गर्जन व गुस्से को जैसे एक मां अपनी ममता से शांत करती है, उसे ऐसी पत्नी चाहिए। ऐसी नहीं जो आग में घी का काम करे।
उकसाने वाला प्यार अस्थाई होता है जब कि धीर गंभीर प्यार में स्थायित्व होता है। समस्याओं से जूझने का गहरा माद्दा व्यक्तित्व में गंभीरता लिये उम्रदराज औरतों में ही पाया जा सकता है। वे ही पति को आंतरिक सुरक्षा प्रदान कर सकती हैं, उसे बेहतर मॉरल सपोर्ट देकर। बड़ी उम्र की पत्नी के साथ पति जो कंफर्ट लेवल महसूस करता है, एक कम उम्र युवती के साथ शायद इतना नहीं क्योंकि वहां उसके ऊपर कई फ्रन्ट से अलग-अलग तरह के दबाव होते हैं। यहां जिम्मेदारियां अधिक होती हैं। हीरो बनने का दबाव भी है। इमेज बनाने की फिक्र भी है। यहां कंफर्ट जोन नहीं है जहां वो रिलेक्स कर सके। छोटी उम्र की पत्नी ज्यादा कमा रही है। टेलेंटेड है तो पति को ईर्ष्या हो सकती है, अहम् का टकराव हो सकता है। यह प्रॉब्लम बड़ी उम्र की स्त्राी के साथ नहीं आती। वो अनुभवी होने के कारण ऐसी कोई समस्या पैदा ही नहीं होने देगी। धीरे-धीरे वो पति के लिए गुरू बन जाती है। इस तरह के मैच में केवल सब्ज बाग ही हों, ऐसा भी नहीं है।
पुरूष का भ्रमर मन कब परिपक्वता से ऊब कर कमसिन की ओर आकृष्ट हो जाए, कहा नहीं जा सकता। मजबूरी में किए जाने पर ऐसा विवाह पुरूष के लिए शर्मिंदगी का कारण बन सकता है। समाज में ऐसे संबंधों को बहुत ज्यादा स्वीकृति नहीं मिल पाई है। पारंपरिक रूप से जो विवाह होते हैं और बहुलता उन्हीं की है, उनमें अभी पुराना कांसेप्ट अर्थात कि दूल्हा बड़ा, दुल्हन छोटी ही कार्यान्वित है। पुरूष की बॉसगिरी उन्हीं पर चलती है। अब संयुक्त परिवारों के बिखर जाने से लोगों की सोच, उनकी साइकी में बाहरी तौर से बदलाव जरूर आया है लेकिन फिर भी फितरतें तो नहीं बदल सकती। संयुक्त परिवारों में प्रेमालाप के लिए जहां पत्नी प्रेयसी रूप में थी, वहीं मां गाइडेंस के लिए ममता बरसाने के लिए थी। इस तरह पुरूष को भावनात्मक संपूर्णता परिवार में ही मिल जाती थी। आज ऐसा नहीं है। मां का कोना खाली रहता है। उसी की आपूर्ति वो मेच्योर पत्नी से करना चाहता है। यह जहां सुविधाजनक बंधन है, बायलॉजिकली भी उम्र का यह फासला पति पत्नी के लिए गलत नहीं है क्योंकि पुरूष स्त्राी के मुकाबले कम उम्र में यौन क्षमताओं के शिखर पर होता है।
अंततः इस बात से भी असहमत नहीं हुआ जा सकता कि जोडि़यां ऊपर बनती हैं। किस को कौन पसंद आ जाए, कहा नहीं जा सकता। जहां प्यार, विश्वास, आपसी समझ और कांपेटिबिलिटी होती है, विवाह जरूर सफल होता है। उम्र मायने नहीं रखती।
(उर्वशी)