राकेश सैन
श्री गुरु ग्रन्थ साहिब इस देश के प्राण हैं और इनकी शिक्षाएं तो पंजाब निवासियों के गुणसूत्रों (DNA) में रची बसी हैं। आस्थावान लोग इन्हें जिन्दा गुरु के रूप में स्वीकार करते हैं, लेकिन यह भी सत्य है कि इतना सम्मान होने के बावजूद इनके अपमान की घटनाएं भी पंजाब में ही अधिक होती आई हैं। अक्तूबर, 2015 में तो इस तरह की घटनाओं की मानो बाढ़ सी ही आ गई थी और इसके लगभग छह साल बाद सिखों के सर्वोच्च धर्मस्थल श्री हरिमन्दिर साहिब व कपूरथला में हुई इस तरह की घटनाओं ने सभी के मनों को झिञ्झोड़ कर रख दिया है। ये घटनाएं किसी मनोरोगियों की करतूत हैं या किसी का षड्यन्त्र इस पर आभी राज कायम है परन्तु इन घटनाओं के बाद जिस तरह आरोपियों की तालिबानी शैली में हत्या कर दी जाती है उससे हर किसी के मन में एक सवाल पैदा होना शुरू हो चुका है कि आरोपियों की हत्या लोगों का आक्रोश है या किसी की पर्दादारी ?
आखिर कौन है जो यह नहीं चाहता कि सच्चाई सामने आए ? आरोपियों की तत्काल हत्या कर जाञ्च के सबसे महत्त्वपूर्ण सूत्र माने जाने वाले व्यक्ति को क्यों खत्म कर दिया जाता है ? इन घटनाओं के बाद हर तरफ से निष्पक्ष जाञ्च की मांग होती है परन्तु जब आरोपी को ही खत्म कर दिया जाए तो इन घटनाओं को लेकर दूध का दूध और पानी का पानी कैसे हो ? क्या भीड़ तन्त्र का न्याय हमारे लोकतन्त्र के मुख को मलिन नहीं करता ?पंजाब में हाल ही में हुई बेअदबी की घटनाओं में एक बात साञ्झी है कि दोनों के आरोपियों की लोगों ने ही हत्या कर दी। दो महीने पहले सिंघू सीमा पर चल रहे कथित किसान आन्दोलन के दौरान भी निहंगों ने इसी तरह के आरोप लगा कर एक वञ्चित वर्ग के व्यक्ति को काट कर बैरीअर पर लटका दिया था। आरोपियों की इस तरह की जाने वाली हत्याएं सन्देह तो पैदा करती ही हैं कि आखिर इनके पीछे का रहस्य क्या है ?
आखिर सबूत क्यों मिटा दिए जाते हैं ?पूरी बात जानने के लिए पाठकों को पंजाब की सामाजिक परिस्थितियों के बारे जानना आवश्यक है। राज्य में होने वाली बेअदबी की घटनाएं केवल राजनीति को ही प्रभावित नहीं करतीं बल्कि राज्य में आतंकवाद के दौर से ही सक्रिय अलगाववादी तत्व इसे अवसर के रूप में लेते हैं। इन समाज विरोधी तत्वों द्वारा इन्हीं घटनाओं को आधार बना कर युवाओं के कोमल दिल-दिमाग में साम्प्रदायिक विष भरा जाता है। उन्हें देश के खिलाफ उकसाया जाता है। पंजाब देश का वह सीमान्त राज्य है जो देश विभाजन के समय सर्वाधिक प्रभावित हुआ, बण्टवारे से पहले देखने में आता था कि समाज को तोडऩे के लिए पाकिस्तान की मांग करने वाले मुस्लिम लीग के लोग इसी तरह की शरारतें किया करते थे।
लीग के लोग ही सूअर मार कर मस्जिदों के बाहर फिंकवा देते और इसकी आड़ में खूब साम्प्रदायिक विषवमन होता जो अन्तत: न केवल देश के विभाजन का ही नहीं बल्कि इतिहास में हुए सबसे बड़े नरसंहारों में एक का कारण बना। बेअदबी की घटनाओं से लोगों के मनों में सन्देह पैदा होने लगा है कि पंजाब की अलगाववादी शक्तियां कहीं मुस्लिम लीग का खेल तो नहीं खेल रहीं ? समाज में दरार पैदा करने के लिए क्या ये घटनाएं अलगाववादियों की ही तो करतूत नहीं हैं? शायद इसीलिए तो बेअदबी के आरोपियों की हत्याएं तो नहीं हो रहीं कि कहीं सच्चाई सामने न आ पाए ? कल्पना करें कि अगर मुम्बई पर हुए आतंकी हमले के अन्य आरोपियों की तरह कसाब को भी मार दिया जाता तो क्या पाकिस्तान की सच्चाई से पर्दा हट पाता ? क्या इसकी अलग-अलग व्याख्याएं व मनमाफिक विश्लेषण नहीं होने थे ?
दूसरी ओर गुस्साई हुई जुनूनी भीड़ से जिम्मेवार व्यवहार की क्या अपेक्षा की जाए जब संविधानिक पदों पर बैठे लोग ही तालिबानी मानसिकता की पीठ थपथपाना शुरू कर दें। श्री हरिमन्दिर साहिब व कपूरथला में हुई बेअदबी की घटनाओं के बाद कांग्रेस के पंजाब प्रदेश अध्यक्ष व पार्टी के मुंहफट नवरत्नों में सर्वश्रेष्ठ नवजोत सिंह सिद्धू ने इस तरह के आरोपियों को सरेआम चौक पर फांसी देने की वकालत की है। एक समारोह में बोलते हुए उन्होंने कहा कि बेअदबी के आरोपियों को चौक में फांसी पर लटका देना चाहिए। बड़े मीयां तो बड़े मीयां, छोटे मीयां सुभान अल्लाह वाली कहावत राज्य के मुख्यमन्त्री स. चरणजीत सिंह चन्नी पर पूरी तरह फिट बैठती दिख रही है, गैर-जिम्मेवाराना व्यवाहर के मामले में उन्होंने नवजोत सिंह सिद्धू से भी आगे निकलते हुए बिना जाञ्ज ही घोषित कर दिया कि इन घटनाओं के पीछे केन्द्रीय एजेञ्सियों का हाथ है।
ऐसा बोलते समय लगा कि मुख्यमन्त्री या तो मामले की गम्भीरता से अनभिज्ञ थे या अपने शब्दों के महत्त्व को नहीं पहचानते। उन्हें मालूम होना चाहिए कि वो किसी गली-मोहल्ला स्तर के नेता नहीं बल्कि एक राज्य के संविधानिक मुखिया हैं। स. चन्नी ने जिस समय इन घटनाओं के पीछे केन्द्र की एजेञ्सियों का हाथ सूंघ लिया उस समय तक पुलिस आरोपियों के नाम तक पता नहीं कर पाई थी। उन्हें मालूम होना चाहिए कि उनकी यह गैर-जिम्मेवाराना ब्यानबाजी राज्य का साम्प्रदायिक वातावरण बिगाड़ सकती है और ऐसा करके वे देशविरोधी शक्तियों के हाथों में ही खेलते दिखाई दे रहे हैं।देश में कानून का शासन है, किसी को अधिकार नहीं दिया जा सकता कि वह कानून अपने हाथों में ले। धार्मिक आस्था आहत होने से आक्रोश पैदा होना स्वभाविक है परन्तु जोश में होश का होना जरूरी है।
कानून की दृष्टि में किसी धर्म या धर्मग्रन्थ का अपमान करना और इसके आरोपियों की हत्या करना दोनो संगीन अपराध है। आरोपियों की हत्या करने वालों को भी समझना चाहिए कि अपनी हरकतों से वे आखिर किसकी मदद कर रहे हैं ?
(आलेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं। इससे जनलेख प्रबंधन का कोई लेनादेना नहीं है।)