पसमांदा मुसलमानों ने अपनी पहचान के लिए दिल्ली में किया बड़ा आयोजन

पसमांदा मुसलमानों ने अपनी पहचान के लिए दिल्ली में किया बड़ा आयोजन

अभी कुछ ही दिन पहले की बात है। पसमांदा समाज यानी पिछड़े मुसलमनों के एक संगठन, पसमांदा विकास फाउंडेशन ने एक कार्यक्रम का आयोजन किया। कार्यक्रम तो कौमी तालिमी अवार्ड और शैक्षिक सेमिनार के नाम पर आयाजित था लेकिन इससे पूरे देश के मुसलमानों में एक संदेश गया कि अब मुसलमानों का वह जो तबका पिछड़ा कहलाता है उसमें राजनीतिक और सामाजिक संवेदना उत्पन्न हो गयी है। यह सामान्य बात नहीं है। भारत में जिस प्रकार हिन्दुओं में जाति का विभाजन है उसी प्रकार अन्य धर्मों में भी जाति आधानित समाज का बटवाड़ा है। मुसलमान चाहे जितना प्रचारित करे लेकिन यहां भी पिछड़े, अगड़े और अछूत का विभाजन साफ-साफ तौर पर दिखता है। दूसरी बात यह भी बता दें कि डॉ. मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली सरकार ने जिस पिछड़े मुसलमानों को आर्थिक मुख्य धारा में जोडने के लिए सच्चर आयोग का गठन की थी वह मुसलमानों का पिछड़ा समाज दूसरा कोई और नहीं यही पसमांदा है।

ओया, पसमांदा विकास फाउंडेशन (पीवीएफ) ने नई दिल्ली के अब्दुर्रहमान ऑडिटोरियम, इंडिया इस्लामिक कल्चर सेंटर, लोदी रोड में एक सफल कौमी तालिमी अवार्ड और शैक्षिक एवं आर्थिक जागरूकता सेमिनार का आयोजन किया। इस कार्यक्रम में 500 से अधिक लोग शामिल हुए। कार्यक्रम का उद्देश्य मदरसा और आधुनिक शिक्षा के बीच की खाई को पाटना, महिलाओं को सशक्त बनाना, स्वास्थ्य और स्वच्छता में सुधार करना, कमजोर और बेबजह शासन सत्ता के पूर्वाग्रह के शिकार लोगों को कानूनी सहायता प्रदान करना और समुदाय के बुनियादी ढांचे एवं सुविधाओं को विकसित करना था।

इस कार्यम में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष इकबाल सिंह लालपुरा मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि आज मुसलमानों के इस तबके को देश के विकास में सहयोग करना होगा। उन्होंने यह भी कहा कि यह समाज जब सशक्त होगा तो देश की प्रगति का कुंजा बनेगा। कार्यक्रम को मौलाना मुर्तजा कासमी, शेखुल कुर्रा आदि कई वक्ताओं ने संबोधित किया। मदरसा उलूम के आलिम और धार्मिक मामले के विद्वान मौलाना शेखुल कुर्रा ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की।

इस अवसर पर पसमांदा विकास फाउंडेशन के निदेशक एमडी मेराज रयीन ने कहा कि इस कार्यक्रम का उद्देश्य समुदाय को मदरसा में आधुनिक शिक्षा अपनाने और सामाजिक विकास को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहित करना है। यह बयान अपने आप में बेहद महत्वपूर्ण है। मुसलमानों का एक बाड़ा तबता जो आज धार्मिक नेतृत्व प्रदान कर रहा है वह मदरसों के आधुनीकीकरण के पक्ष में नहीं है। हालांकि मदरसा देवबंद कंप्यूटर आदि का उपयोग तो कर रहा है लेकिन मदरसों में वह इस प्रकार की तकनीक के पक्ष में नहीं दिखता। ऐसे में यह बयान दुनिया के मुसलमानों के लिए एक सीख है।

कार्यक्रम के दौरान कई प्रतिष्ठित व्यक्तियों को प्रतिष्ठित पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया। सम्मान प्राप्त करने वालों में मुफस्सिर-ए-कुरान मौलाना मोहम्मद जमालुद्दीन कासमी नक्शबंदी को मौलाना अबुल कलाम आजाद पुरस्कार से नवाजा गया। जनाब कारी फरमान कासमी साहब को हाकिमुल इस्लाम पुरस्कार से सम्मानित किया गया। डॉ. आयुब रैन को कय्यूम अंसारी पुरस्कार प्रदान किया गया। डॉ. एमडी शाहनवाज हाशमी साहब को गुलाम सरवर पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उसी प्रकार शहीद अब्दुल हमीद पुरस्कार आफताब आलम अंसारी को दिया गया और असीम बिहारी पुरस्कार से आजिम अहमद को नवाजा गया।

कार्यक्रम पूरे तौर पर आधुनिकता को लिए ही नहीं था। इस कार्यक्रम में पवित्र कुरान पर भी चर्चा की गयी। कार्यक्रम में हजरत मौलाना कारी अंसारुल हक मजहरी द्वारा कुरान की तिलावत और हाफिज शाहदाब, दिल्ली द्वारा नते-ए-नबी का आयोजन किया गया। मजलिस उलेमा के अध्यक्ष मुफ्ती वसीम अकरम कासमी साहब ने स्वागत भाषण दिया, जबकि एमडी मेराज रयीन, निदेशक, पीवीएफ ने विशिष्ट अतिथियों की उपस्थिति के लिए आभार व्यक्त किया।

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