शादाब सलीम
दुनिया में भांति-भांति के लोग हैं और हमें सभी से दो चार होना ही पड़ता है। फेसबुक भी एक प्लेटफार्म है और वही दुनिया के लोग यहाँ भी पाए जाते हैं। फेसबुक की एक समस्या है, या फिर उसे समस्या नहीं कहते हुए फेसबुक का मायाजाल भी कहा जा सकता है। एक ऐसा मायाजाल जो कमजोर दिमाग के लोगों को लपेटे में लेता है। फेसबुक पर आई डी बनाना कितना आसान है, कोई भी मुंह उठाकर बना सकता है और आज तक फेसबुक अपनी फर्जी आई डी वालों को भी नहीं रोक पाया है। मेरी बात का बुरा मत मानना किंतु यह सत्य है, बात कहने में कहीं कुछ शब्द ऊपर नीचे हो सकते हैं।
फेसबुक कमजोर दिमाग वालों को ऐसे टारगेट करता है जैसे कोई पांच वोट नहीं डलवा पाए किंतु उसे फेसबुक पर आते ही यह आभास हो जाता है कि अब मैं जो बाइडेन हूँ। जेब में कुल जमा पांच हजार रुपए हो किंतु वह व्यक्ति क्रांति रच डालने पर उतारू होता है। उसे यह नहीं पता होता कि एक विधानसभा का चुनाव लड़ने में इतना खर्च होता है जितना वह खुद को नीलाम भी कर दे तो एक दिन का खर्च नहीं उठा पाए। लेकिन मैंने यहाँ फेसबुक पर ऐसे ऐसे प्राणी देखें हैं जो विधानसभा क्या अपितु मंत्रिमंडल को बदल डालने का दमखम रखते हैं। एक दफा मैंने एक प्राणी देखा जिसने प्रोफाइल पर यह लिखा कि मेरी पांच प्रोफाइल खचाखच हो चुकी हैं इसलिए आप लोग मुझे फ्लो करते चलिए और उसके इस लिखे पर दो चार कॉमेंट मुश्किल से आए। एक आदमी ने क्रांति रची किंतु ऐसी क्रांति के चक्कर में वह एक बार धरा गया और जब वह धराया तब किसी गरीब किसान ने भी उसकी जमानत नहीं ली हालांकि उस आदमी के पास तो अच्छे फॉलोवर प्रोफाइल पर थे।
फेसबुक एक मायाजाल पैदा कर देता है और कमजोर दिमाग का आदमी उस मायाजाल में फंस कर खुद को चे ग्वेरा से लेकर बिल क्लिंटन तक के समक्ष समझ बैठता है फिर उसे अपने राज्य का मुख्यमंत्री भी छोटा आदमी नजर आता है और वह उस मायाजाल से निकल कर सामने आता है तो उसे पता चलता है अरे बाप अपन तो प्रायवेट कंपनी में क्लर्क की जॉब कर रहे हैं और जहां पंद्रह मिनट लेट आने पर बॉस ने सैलरी जस्टिफिकेशन तक कह दिया है। बहुत फंसते हैं ऐसे मायाजाल में लोग। इसलिए कुछ लोगों ने इसे आभासी दुनिया कहा है और फेसबुक ही नहीं बल्कि हर सोशल साइट्स का यही मामला है। आदमी वास्तव में होता कुछ भी नहीं है लेकिन उसे लगता मैं बाप हूँ सब का।
वास्तविक दुनिया के कामयाब लोग फेसबुक पर होते हैं किंतु वह इस दीवानेपन से दूर होते हैं। फेसबुक उन्हें इस मायाजाल में जकड़ नहीं पाता है। उन लोगों को पता होता है अभी हम फिलहाल क्या है और क्या कर सकते हैं। जैसे मेरे मित्र पीयूष जोशी,वह एक कामयाब डॉक्टर है, वह जानते हैं मैं डॉक्टरी अच्छे से कर सकता हूँ और कहाँ तक कर सकता हूँ, उन्होंने कभी यह नहीं कहा कि मेरी लिस्ट फूल हो गई है इसलिए मित्रों मुझे फ्लो करो। अभी उन्होंने इंदौर-4 से विधानसभा चुनाव लड़ा और अच्छी भीड़ एकत्रित की, उन्होंने नेता बनने का काम किया तो चुनाव भी लड़ा और वह भी इंदौर की अयोध्या कही जाने वाली सीट से आम आदमी पार्टी से चुनाव लड़ा। लेकिन फेसबुक के मायाजाल में फंसने वाले कमजोर लोग खुद को नेता मान बैठते हैं लेकिन उन्होंने चुनाव कभी भी पार्षद तक लड़ने की हिम्मत नहीं की।
ऐसे मायाजाल के फेर में वह लोग ज्यादा उलझते हैं जो फेसबुक आने के पूर्व फर्जी विज्ञप्ति देकर अखबार में खुद को समाज सेवक लिखवा देते थे या सामाजिक कार्यकर्ता लिखवा देते थे जबकि वह दोनों ही चीज उनमें नहीं होती थी। वास्तव में वह लोग कुछ भी नहीं होते न कोई दर्जी न कोई नाई और न कोई पनवाड़ी न कोई दूध वाला उनका कोई काम ही नहीं होता था नीरह बेरोजगार और विशुद्ध निठल्ले होते थे लेकिन टक्कर बिल गेट्स को देने का माद्दा रखते थे।
(आलेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं। इससे हमारे प्रबंधन का कोई सरोकार नहीं है।)