गौतम चौधरी
जेनोसाइड वॉच के संस्थापक और निदेशक ग्रेगरी स्टैंटन ने अमेरिकी कांग्रेस ब्रीफिंग के दौरान कहा कि भारत में (मुसलमानों के) नरसंहार के शुरुआती संकेत और प्रक्रियाएं देखी जा रही है। 18 करोड़ मुसलमान जो भारत में सबसे बड़े अल्पसंख्यक समूह का हिस्सा है, उनसे जुड़े इन आरोपों को हल्के में नहीं लिया जा सकता है। आरोप, पांच प्रमुख पहलुओं के इर्द-गिर्द घूमते दिख रहे हैं जिनका स्पष्ट रूप से विश्लेषण करने की जरूरत है।
पहला, रवांडा में तुत्सी के नरसंहार के साथ तुलना, दूसरा, नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा अपनाई गई भेदभावपूर्ण नीतियां, तीसरा, म्यांमार से रोहिंग्याओं के पलायन के साथ तुलना, चैथा, जम्मू और कश्मीर की विशेष स्थिति में सेशोधन और सीएए का कार्यान्वयन शामिल है, जो हिंदुओं के पक्ष में झुका हुआ है।
इन आरोपों का जवाब भी क्रमवार तरीके से दिया जा सकता है। मसलन, भारत दुनिया के सबसे पुराने और सबसे बड़े लोकतंत्रों में से एक है। रवांडा जैसे ज्यादातर निरंकुश, सैन्य नियंत्रित शासन (तत्कालीन) के साथ भारत की तुलना, भारत जैसे जातीय, सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से विविध देश के लोकतांत्रिक मूल्यों का मजाक है। मुसलमानों के पास विधानसभाओं के साथ-साथ संसद में भी राजनीतिक प्रतिनिधित्व हैं। रक्षा बलों के लिए सैनिकों का चयन करते समय कोई भेदभाव नहीं किया जाता है। भारत के सैन्य टुकड़ियों में बड़े पैमाने पर मुसलमानों का नियोजन है। जमीरुद्दीन शाह, उप सेनाध्यक्ष के पद तक को संभल चुके हैं। जब वीर अब्दुल हमीद के अंतिम विश्राम स्थल को अपवित्र किया गया, तो भारतीय सेना ने तुरंत कब्रिस्तान को बहाल कर दिया। आजादी के बाद मौलाना अबुल कलाम आजाद को देश का शिक्षा विभाग सौंपा गया। यही नहीं भारत के सर्वोच्च पद पर मुसलमान चुने जा चुके हैं। एपीजे अब्दुल कलाम ने भारत के राष्ट्रपति के रूप में कार्य किया, मोहम्मद हामिद अंसारी 2005 से 2014 तक लगातार देश के उपराष्ट्रपति बने रहे। रवांडा में तुत्सी और हुतस के बीच संघर्ष को भारत में हिंदुओं और मुसलमानों के बीच तुलना करना मुनासिब नहीं है।
जेनोसाइड वॉच ने आगे आरोप लगाया कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार भारत में मुसलमानों के खिलाफ भेदभावपूर्ण नीतियां अपना रही है। 2014 से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश का नेतृत्व कर रहे हैं। अगर नरसंहार की घड़ी के आरोप सही होते तो 2014 के बाद से मुसलमानों के लिए कोई कल्याणकारी कार्य नहीं किया गया होता। आंकड़े कुछ और ही कहते हैं। सरकार की एकीकृत बाल विकास सेवाओं (आईसीडीएस) का उद्देश्य अल्पसंख्यकों के बच्चों और गर्भवती/स्तनपान कराने वाली माताओं का विकास करना है, एसएसए, कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय योजना, एकीकृत आवास और स्लम का कार्यान्वयन आदि का कार्यान्वयन गांवों में किया गया है, चाहे उनके लाभुक किसी भी धर्म से जुड़े हो। अल्पसंख्यक आबादी वाले क्षेत्रों में विकास कार्यक्रम और जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीकरण मिशन ने लाखों अल्पसंख्यकों (मुसलमानों) के जीवन स्तर को काफी हद तक ऊपर उठाया है। अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय द्वारा चलाया जा रहा बहु-क्षेत्रीय विकास कार्यक्रम विशेष रूप से बहुसंख्यक लाभार्थियों वाले अल्पसंख्यकों को पूरा करता है। प्रधानमंत्री जन विकास कार्यक्रम (पीएमजेवीके) ने लाखों अल्पसंख्यकों को लाभान्वित किया है, मैट्रिक पूर्व छात्रवृत्ति योजना, पोस्ट-मैट्रिक छात्रवृत्ति योजना और योग्यता-सह-साधन छात्रवृत्ति योजना में केंद्रीय अनुदान के मामले में कई गुना वृद्धि देखी गई है, मौलाना आजाद राष्ट्रीय फैलोशिप अल्पसंख्यकों के लिए बनाई गई योजना को पिछले कुछ वर्षों से केंद्र सरकार द्वारा एक प्रमुख योजना के रूप में पेश किया जा रहा है। सीखो और कमाओ योजना ने देश के विभिन्न कोनों के सबसे गरीब मुसलमानों के जीवन को बदल दिया है, उस्ताद (विकास के लिए पारंपरिक कला/शिल्प में कौशल और प्रशिक्षण का उन्नयन) ने सरकार के उचित समर्थन के कारण हजारों मुसलमानों के जीवन को बदलने में मदद की। हुनर हाट, नया सवेरा, नई मंजिल, नई उड़ान, पढो परदेश, हमारी धरोहर आदि जैसी योजनाएं वर्तमान में लाखों मुस्लिम युवाओं के भविष्य को आकार दे रही हैं। जेनोसाइड वॉच ने अपने वक्तव्य में किसी तरह इन तथ्यों को नजरअंदाज किया है यह समझ से पड़े है।
जेनोसाइड वॉच ने आश्चर्यजनक रूप से भारत से भारतीय मुसलमानों के भविष्य के पलायन के साथ रोहिंग्याओं के पलायन की तुलना की। सच्चाई से कोसों दूर, तथ्य कुछ और ही कहते हैं। भारत ने आधिकारिक तौर पर भारत में 40,000 से अधिक रोहिंग्याओं को आश्रय प्रदान किया है। रोहिंग्या मुद्दे से जुड़े लोग जानते हैं कि अनौपचारिक डेटा बहुत अधिक है। रोहिंग्याओं को आश्रय देने वाले देश पर में भारत प्रमुख है, जबकि बांग्लादेश दूसरे स्थान पर आता है। रोहिंग्याओं को आश्रय देने वालों में न तो पाकिस्तान ने कभी हाथ बढ़ाया और न ही किसी अन्य अमीर मुस्लिम देशों ने ऐसा किया। असम और भारत के अन्य हिस्सों में बांग्लादेशियों की आमद एक बड़ी समस्या है लेकिन भारत सरकार ने आधिकारिक रूप से इसका विरोध नहीं किया है। जेनोसाइड वॉच ने इस तथ्य को भी नजर अंदाज किया। भारत ने 1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान लाखों बांग्लादेशी शरणार्थियों को जगह प्रदान की, इस तथ्य के बावजूद कि उनमें से अधिकांश मुस्लिम थे।
भारत की आजादी के बाद से जम्मू और कश्मीर में उग्रवाद और अलगाववादी गतिविधियां देखी गई हैं। जम्मू और कश्मीर को अनुच्छेद 370 के तहत विशेष दर्जा ने राज्य को कुछ स्वायत्तता प्रदान की थी, जिसमें राज्य के स्थायी निवासियों के लिए कानून बनाना भी शामिल था। इससे जम्मू-कश्मीर के निवासियों में अलगाव की भावना पैदा हो गई। इस विशेष दर्जे को हटाने के साथ ही जम्मू-कश्मीर को भी भारत के किसी अन्य राज्य के सामान हक हासिल हुआ। इससे कई बदलाव आए, जिनमें कश्मीर में आतंकवादी/अलगाववादी घटनाओं में कमी, पहली बार ब्लॉक विकास परिषद के चुनाव हुए, जिसमें कुल 98.3 प्रतिशत मतदान हुआ। आईआईटी जम्मू ने अपने आप से काम करना शुरू कर दिया। एम्स जम्मू का निर्माण शुरू हुआ। शानदार अंजी खड्ड ब्रिज, भारत का पहला केबल स्टे रेल ब्रिज जल्द ही जम्मू और कश्मीर में कटरा को रेसाई से जोड़ देगा। कश्मीर विश्वविद्यालय ने कश्मीर में अपने 24 संबद्ध कॉलेजों के साथ एनसीसी को एक सामान्य वैकल्पिक पाठ्यक्रम के रूप में शामिल किया है। कश्मीर ने रियासी जिले में चिनाब नदी पर दुनिया के सबसे ऊंचे रेलवे पुल के पूरा होने के साथ गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में अपना नाम दर्ज कराया। लिस्ट लंबी है। मुद्दा यह है कि जम्मू और कश्मीर ने सुशासन, ऊर्जा क्षेत्र में सुधार, बुनियादी ढांचे के विकास आदि के क्षेत्र में बड़े पैमाने पर विकास हो रहे हैं। जेनोसाइड वॉच ने अपनी रिपोर्ट में इन घटनाओं का जिक्र तक नहीं किया।
सीएए-एनआरसी ने हमेशा मीडिया द्वारा नकारात्मक कवरेज और गलत सूचना के कारण भारत में अल्पसंख्यकों से तीखी प्रतिक्रिया प्राप्त की है। भारत दुनिया का एकमात्र हिंदू बहुल देश है। भारत से बाहर रहने वाले हिंदू भारत को प्रेरणा के रूप में देखते हैं। दूसरी ओर, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, इंडोनेशिया, पाकिस्तान, अफगानिस्तान आदि जैसे कई देश हैं जो घोषित रूप से मुस्लिम देश हैं। सीएए पड़ोसी देशों के हिंदू अल्पसंख्यकों को भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन करने का अवसर प्रदान करता है, जहां वे उत्पीड़न का शिकार हो रहे हैं। हालांकि, सीएए विरोधी यह उल्लेख करना भूल जाते हैं कि पिछले पांच वर्षों में केवल 4000 विदेशियों को नागरिकता दी गई है, वह भी पुराने नागरिकता कानूनों के तहत और इसका सीएए से कोई लेना-देना नहीं है। यह मानदंड हिंदू और मुस्लिम दोनों के लिए समान रूप से उपलब्ध है। सीएए को मुस्लिम विरोधी के रूप में पेश करने वालों ने जानबूझकर इस तथ्य को नजर अंदाज किया कि मुसलमान हमेशा पुराने नागरिकता कानूनों के तहत भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन कर सकते हैं। सीएए के आधार पर नरसंहार की भविष्यवाणी करना और उपरोक्त तथ्य को छुपाना, जेनोसाइड वॉच द्वारा मुस्लिम नरसंहार पर हालिया रिपोर्ट की विश्वसनीयता पर सवाल खड़ा करता है।
भारत ने हमेशा विविधता में एकता की अवधारणा की वकालत की है। पिछले कुछ दशकों में भारत ने अभूतपूर्व विकास देखा गया है। जो लोग भारत को विकासशील देश की श्रेणी में देखना चाहते हैं और भारत के महाशक्ति बनने के विचार से घृणा करते हैं, वे भारत के खिलाफ षड्यंत्र करते रहे हैं। दूसरी ओर, भारतीय धीरे-धीरे इन षड्यंत्र के सिद्धांतों को समझ गए हैं और यही कारण है कि कुछ विदेशी शक्तियां देश विरोधी ताकतों के साथ मिल कर भारत के विकास को बाधित करना चाहते हैं। जेनोसाइड वॉच को याद रखना चाहिए कि अगर भारत अटल बिहारी वाजपेयी का है, तो वह एपीजे अब्दुल कलाम का भी है। पंडित जवाहर लाल था तो उसमें अबुल कलाम की भी हिस्सेदारी थी। बाबा मोइनुद्दीन चिश्ती, बाबा बुल्ले शाह, शेख फरीद अभी भी हमारे जहन में बसते हैं। फिरंगियों से हमने इकट्ठे लोहा लिया। उस लड़ाई में नाना पेशवा यदि सैन्य कमांडर थे तो युद्ध के केन्द्रबिन्दु बहादुर शाह जफर को बनया गया था।
तभी तो एक अंग्रेजपरस्थ जरनैल के सवाल :
दमदमी में दम नहीं है खैर मागों जान की।
ऐ जफर ठंडी हुई शमशीर हिन्दुस्तान की।।
पर जफर ने जवाब दिया :
गाजियो में बू रहेगी जब तलक इमान की।
तख्ते लंदन तक चलेगी तेग हिन्दुस्तान की।।