गुमला/रांची/ जिला के सिसई थाना स्थित सैन्दा निवासी आदिवासी पारंपरिक मौसम वैज्ञानिक, गजेन्द्र उराँव ने इस वर्ष मानसून का पूर्वानुमान प्रस्तुत किया है। उरांव धन के बीज को देखकर बता देते हैं कि इस वर्ष मानसून कैसा होगा।
रविवार को बिशुनपुर (गुमला) में वर्ष 2023 का मानसून पूर्वानुमान सार्वजनिक करते हुए गजेन्द्र उरांव ने बताया कि इस वर्ष मानसून के प्रथम चरण में छिटपुट बारिश होगी। उन्होंने बताया कि दूसरे चरण के मध्य से बारिश प्रारंभ होगी लेकिन तीसरे चरण में अच्छी बारिश की संभावना है। गजेन्द्र के बारे में डाॅ. नारायण उरांव ने बताया कि मौसम वैज्ञानिक आदिवासी ज्ञान परंपरा को जीवित रखे हुए हैं और विगत 10 वर्षों से लगातार परम्परागत तरीके से बोये जाने वाले धान के बीज को देखकर, मानसून पूर्वानुमान बता रहे हैं, जो एकदम सटीक साबित होता है।
इस मामले में डाॅ. महादेव टोप्पो ने बताया कि उरांव परम्परा के मानसून पूर्वानुमान में पूरे मानसून को तीन चरण में वर्गीकृत किया गया है। पहला चरण – पच्चो करम से हरियनी पूजा तक। दूसरा चरण – हरियनी पूजा से करम पूजा तक तथा तीसरा चरण – करम पूजा से सोहरई पूजा तक होता है। परम्परागत आदिवासी मानसून पूर्वानुमान कर्ता गजेन्द्र इस मामले के अधिकृत जानकार हैं। उन्होंने बताया कि इस प्रकार के कई विज्ञान हमारे समाज में था जो आज लुप्त हो गया है। धूमकुड़िया में इसी प्रकार के ज्ञान-विज्ञान की व्यावहारिक शिक्षा दी जाती थी, जिसे बाद में गलत तरीके से प्रचारित किया गया।
गजेन्द्र ने खुद बताया कि इस बार आकलन है कि सावन, भादो एवं आश्विन महीने में वर्षा, सामान्य से अधिक होगी। परम्परागत मानसून पूर्वानुमान कर्ता उराँव का मानना है कि इस बार खेती के लिए धान का बिड़ा या बिचड़ा सामान्य अवसर से 15 दिन बाद लगाएं।
यह पुर्वानुमान गजेन्द्र उरांव ने विकास भारती, बिशुनपुर द्वारा आयोजित, डाॅ. भीमराव अम्बेदकर सभागार में कुड़ूख भाषा तोलोंग सिकि कार्यशाला (संदर्भ राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 एवं मातृभाषा शिक्षा) के दौरान की। इस कार्यशाला में झारखण्ड केन्द्रीय विश्वविद्यालय, ब्राम्बे, रांची से प्राध्यापक, डॉ. रजनीकांत पाण्डेय, साहित्य अकादमी के सदस्य महादेव टोप्पो, अद्दी अखड़ा, रांची के उपाध्यक्ष सरन उरांव, कुँड़ुख विभाग, डोरण्डा कालेज रांची के विभागाध्यक्ष डाॅ. नारायण भगत एवं रांची विश्वविद्यालय, रांची के शोधार्थी तथा ग्रामीण क्षेत्रों में कुँड़ुख भाषा-तोलोंग सिकि (लिपि) शिक्षा केन्द्र के शिक्षकगण उपस्थित थे।