राकेश सैन
पंजाब में काफी समय से ‘धार्मिक पुलिस’ सक्रिय है। पंजाब की धार्मिक पुलिस मानती है कि उसके पास मर्यादा के नाम पर कुछ भी करने का अधिकार है। इस पुलिस के सिपाही बेअदबी के आरोप लगा कर किसी की भी हत्या कर सकते हैं। गुरुद्वारा साहिब में घुस कर वहां वृद्धों व बिमारों के बैठने के लिए लगाए सोफों व कुर्सियों को यह कहते हुए आग के हवाले करते हैं कि किसी को गुरु ग्रन्थ साहिब से ऊंचा बैठने का अधिकार नहीं है। आजकल निहंग सिखों का जत्था हाथों में गैर कानूनी घातक हथियार लिए धार्मिक पुलिसिंग के नाम पर दुकानों की चेकिंग करते पंजाब में आपको कहीं मिल सकते हैं। ये दुकानों में बीड़ी-सीग्रेट या गुटखा ढुंढते होते हैं। यदि इस प्रकार की सामग्री बेचते यदि कोई दुकानदार पकड़ा जाता है तो उसकी ये हत्या तक कर सकते हैं। इनका कहना है कि सिख धर्म में ये तमाम चीजें वर्जित है और इसे बेचने वालों को सिख धर्म में वर्णित कानून के तहत दंडित किया जाएगा। सरकारों की ढुलमुल नीति व पंजाब पुलिस की कमजोरी के चलते इनके हौंसले लगातार बुलंद होते जा रहे हैं।
अब इस स्वंयभू धार्मिक पुलिस ने देश के अन्य हिस्सों में भी पैर पसारने शुरु कर दिए हैं। विगत दिनों धार्मिक पुलिस के सिपाहियों ने इन्दौर में स्थित सिन्धी समाज के मन्दिरों में उत्पात मचाया, जिसके फलस्वरूप 90 से अधिक मन्दिरों ने अपने यहां दशकों से स्थापित श्री गुरु ग्रन्थ साहिब अपने परिसरों से निकाल कर गुरुद्वारा साहिब को सौम्प दिए हैं। देश विभाजन के समय अपना सबकुछ लुटा और अपनी जान पर खेल कर सिन्ध से श्री गुरुग्रन्थ साहिब बचा कर लाए सिन्धी समाज के लोगों से पवित्र ग्रन्थ छीन कर धार्मिक पुलिस ने पांच सौ सालों से सिन्धी समाज और गुरु नानक देव जी के बीच बह रही प्रेम व आस्था के सिन्धू नदी पर भयंकर कुठाराघात किया है।
सच पूछिए तो खालसा पन्थ के नियमों के अनुसार, अगर कहीं पन्थ की मर्यादा का उल्लंघन होता है तो सिखों के पांच तख्तों में सर्वोच्च श्री अकाल तख्त साहिब और संवैधानिक रूप से चुनी गई शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक समिति (श्री अमृतसर साहिब) इसका संज्ञान लेती है। आरोपी सिख समाज का है तो उसे अकाल तख्त पर तलब कर उससे माफी मंगवा कर भूल बख्शवाई जाती है और संकेतात्मक दण्ड के रूप में गुरुघर या संगत की सेवा करने की सजा दी जाती है। अगर आरोपी सिख पन्थ के बाहर से हो तो उसके संविधान सम्मत कार्रवाई की अनुशंसा की जाती है। परन्तु विगत कुछ दशकों से देखने में आ रहा है कि अकाल तख्त और शि.गु.प्र. समिति के इतर भी कुछ स्वंयभू मर्यादावादी संगठन पंथ में उभरे हैं, जो हथियारबन्द हो कुछ भी करना अपना अधिकार मानते हैं। किसान आन्दोलन के दौरान सिंघू सीमा, उसके बाद अमृतसर और कपूरथला में बेअदबी के नाम पर की गई नृशंस हत्याओं को इस धार्मिक पुलिस की गतिविधियों में शामिल किया जा सकता है। याद रहे, इसी प्रकार की मनोवृति सिख पृथक्तावाद को आधार प्रदान करता रहा है।
इसी धार्मिक पुलिस के लोग गत दिनों जालन्धर के एक गुरुद्वारा साहिब में घुस गए और वहां दरबार में लगे सोफों व कुर्सियों को तोडफोड़ कर जला दिया। यह सोफे व कुर्सियां संगत ने गुरुद्वारा साहिब में आने वाले उन श्रद्धालुओं के लिए लगाई थीं जो पाठ सुनने के दौरान अधिक समय जमीन पर नहीं बैठ सकते। धार्मिक पुलिस के अहंकारी सिपाहियों का कहना था कि यह सोफे-कुर्सियां श्री गुरुग्रन्थ साहिब से ऊंचे हैं और गुरुद्वारे को होटल बना रखा है। बता दें कि उक्त गुरुद्वारा साहिब की प्रबन्धक समिति ने इस तथ्य को ध्यान में रख कर फर्नीचर को नीचा ही लगा रखा था परन्तु धार्मिक पुलिस को मनमानी करनी थी और अपना प्रभाव दिखाना था, सो उन्होंने सिख कानून के नाम पर वही किया जो उन्हें उचित लगा। धार्मिक पुलिस के सामने बेबस सिख संगत गुरुद्वारा साहिब का सामान जलता देखते रहे और अतिवादियों के डर से चुप रहे। इसी पुलिस ने जालन्धर में ही खोखों व दुकानों की चेकिंग करके वहां पड़े बीड़ी, सीग्रेट, तम्बाकू के पाउच जला दिए।
धार्मिक पुलिस की यह गतिविधियां केवल यहीं तक सीमित नहीं है, बल्कि अब इन लोगों ने देश के साम्प्रदायिक सौहार्द के साथ भी छेड़छाड़ शुरू कर दिया है। जनवरी महीने के आरम्भ में अमृतसर व तरनतारन के कुछ युवकों ने इन्दौर में जाकर सिन्धी समुदाय के मन्दिरों में उत्पात मचाया। इनका कहना था कि इन मन्दिरों में प्रतिमाओं के साथ गुरुग्रन्थ साहिब को स्थापित नहीं किया जा सकता, क्योंकि सिख पन्थ में मूर्ति पूजा वर्जित है। धार्मिक पुलिस का कहना था कि प्रतिमाओं व गुरुग्रन्थ साहिब की एक साथ पूजा-अर्चना नहीं की जा सकती, यह गुरुग्रन्थ साहिब की बेअदबी है। मन्दिर संचालकों के अनुसार, हथियारबन्द धार्मिक पुलिस के सिपाहियों ने प्रतिमा के साथ तोडफोड़ भी की और देवी-देवताओं के कैलेण्डर फाड़ डाले। धार्मिक पुलिस के लोगों से जब पूछा गया कि वो किस अधिकार से इस तरह का आदेश दे रहे हैं तो उन्होंने सिन्धी लोगों से दुर्रव्यवहार किया। इसके बाद आपसी विचार विमर्श कर सिन्धी सन्तों व समाज के गणमान्य लोगों ने साम्प्रदायिक सौहार्द बनाए रखने के लिए मन्दिरों से गुरुग्रन्थ साहिब उठाने शुरू कर दिए और 11 जनवरी तक इन्दौर के गुरुद्वारा इमली साहिब में 90 गुरुग्रन्थ साहिब मन्दिरों द्वारा सौम्पे जा चुके हैं। सिन्धी समाज ने पूरी मर्यादा और सजल नेत्रों के साथ यह पवित्र ग्रन्थ गुरुद्वारा साहिब को सुपुर्द कर दिए। गुरु नानक देव जी के साथ जुड़े इन सिन्धी श्रद्धालुओं ने बताया कि उन्हें विभाजन के समय हुई मारकाट व लूटपाट का इतना दुःख नहीं हुआ जितना कि आज अपने प्रिय गुरुग्रन्थ साहिब से बिछुड़ते समय हो रहा है।
ज्ञात रहे कि सिन्धी समाज का गुरु नानक देव जी व गुरुघर से पांच सौ साल पुराना सम्बन्ध है। अपनी उदासी (यात्रा) के दौरान सिन्ध पहुंचे गुरु नानक देव जी ने अपनी पवित्र बाणी से स्थानीय लोगों को प्रभावित किया और वे उनके शिष्य बन गए। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं है कि पंजाब के बाद सिन्ध ही सिख पन्थ का दूसरा बड़ा केन्द्र रहा है। सिन्धू नदी के द्वीप साधू बेला, सक्खर आदि बहुत से नगरों में गुरु नानक दरबार के नाम से मन्दिरों का निर्माम कर वहां गुरुग्रन्थ साहिब की स्थापना की गई। यहां पर सन्त झूलेलाल व अन्य देवी-देवताओं के साथ-साथ गुरुग्रन्थ साहिब का भी प्रकाश होता आया है। सिन्धी जत्थे पंजाब हरिमन्दिर साहिब, गुरुद्वारा मंजी साहिब अमृतसर, गुरुद्वारा दुःख निवारण पटियाला सहित अनेक बड़े एतिहासिक गुरुद्वारों में कीर्तन भी करते रहे हैं, परन्तु सहजधारी होने के कारण धीरे-धीरे उनकी उपेक्षा की जाती रही। केवल इतना ही नहीं गुरु नानक देव जी के सिन्धी श्रद्धालू दादा चेलाराम, लक्ष्मण चेलाराम सिन्धी सहित देश की 11 भाषाओं में सुखमणी साहिब व अन्य सिख ग्रन्थों का अनुवाद करवा कर पूरे देश में इनका मुफ्त वितरण करते रहे हैं। आज भी सिन्ध में जिन गुरुद्वारों पर कब्जे हो चुके हैं उनको मुक्त करवाने में सिन्धी समाज आगे रहता है, परन्तु धार्मिक पुलिस की हरकतों ने सदियों से बहती आ रही सिन्धी समाज व गुरु नानक देव जी के सम्बन्धों की अमृत सरिता में विष घोलने का काम किया है, जिसके लिए इतिहास उन्हें कभी माफ नहीं करेगा।
एक बात और यदि इसी प्रकार के कृत्य होते रहे तो कालांतर में सिख पंथ का व्याप संकुचित होता चला जाएगा। यही नहीं पंजाब में नए सिरे से पृथक्तावाद को खाद-पानी भी मिलना प्रारंभ हो जाएगा। इसलिए इस मामले को लेकर सिख पंथ की सर्वोच्च संस्था श्री गुरुद्वारा प्रबंधक समिति एवं अकाल तख्त को संज्ञान लेनी चाहिए। मामले पर पंजाब पुलिस व देश की सुरक्षा एजेंसियों को भी सक्रिय हो जाना चाहिए। यदि ऐसा नहीं हुआ तो पंजाब एक बार फिर से धार्मिक उन्माद की आग में जलेगा और पूरे देश को इसकी कीमत चुकानी होगी। वैसे गुरुपुत्रों का दावा करने वाले भी इस आग से बच नहीं सकते।
(आलेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं। इससे जनलेख प्रबंधन का कोई लेनादेना नहीं है।)