गौतम चौधरी
हमास और इजराइल के बीच लड़ाई का दायरा बढ़ता जा रहा है। अभी हाल ही में इस युद्ध में प्रत्यक्ष रूप से ईरान ने अपनी भूमिका बढ़ा दी। ईरान ने इजरायल के कई सैन्य और खुफिया ठिकानों पर मिसाइल दागे हैं। इससे यह साबित हो गया है कि अब ईरान प्रत्यक्ष रूप से इस लड़ाई में शामिल हो गया है। हाल के बढ़े संघर्ष की गूंज दुनिया भर में सुनाई दे रही है। अंतरराष्ट्रीय समुदाय इस पूरी लड़ाई को एक आतंकवादी संगठन हमास के साथ जोड़ कर देख रहा है। दअरसल, यहूदी त्योहार सुकोट के अंत के अवसर पर इजरायली यहूदी समाज जश्न में मस्त था। उसी समय पूरे देश में सायरन बजने से शांति भंग हो गई। ठीक त्योहार को लक्ष्य कर हमास के आतंकवादियों ने यहूदियों पर हमला कर दिया। यह आक्रमण बेहद तेज और तकनीक से लैस था। इस आक्रमण से पूरा इजरायली समाज हतप्रभ था।
इस पूरे अमानवीय हमले के मूल में हमास है। हमास के बारे में जो जानकारी उपलब्ध है उसके आधार पर यह कहा जा सकता है कि यह एक आतंकवादी समूह जो 1987 में पहली बार फिलिस्तीनी जमीन पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। जानकार बताते हैं कि इसकी जड़ें मुस्लिम ब्रदरहुड में है और यह उसी की फिलिस्तीनी शाखा हैं। हमास इस्लामिक फिलिस्तीनी राज्य की स्थापना के लक्ष्य से प्रेरित फिलिस्तीन लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन (पीएलओ) और इजरायल के बीच समझौतों का जोरदार विरोध करता रहा है। हाल ही में हुए हमले को खतरनाक सटीकता के साथ अंजाम दिया गया, जिसमें हवाई हमले, समुद्री आक्रमण और जमीनी घुसपैठ सहित विभिन्न रणनीतियों का इस्तेमाल किया गया। इससे व्यापक विनाश हुआ और भयंकर हानि हुई। वैसे तो आमने-सामने की लड़ाई में हमास ही किरदार दिख रहा है लेकिन पर्दे के पीछे ईरान की भूमिका संदिग्ध बताई जा रही है। यह तब और स्पष्ट हो गया जब ईरान ने अभी हाल में इजरायली ठिकानों पर मिसाइल दागे। यह विश्व शांति के लिए खतरनाक है। वैसे हमास के हमले के बाद इजरायल ने जो किया वह भी अमानवीय ही है लेकिन इजरायल को जवाबी हमले के लिए तो हमास ने ही बाध्य किया।
यह स्थिति अंतरराष्ट्रीय हस्तक्षेप, विशेषकर संयुक्त राष्ट्र के लिए गंभीर बन गया है। गोलीबारी में फंसी फिलिस्तीनी आबादी हमास जैसे आतंकवादी समूहों की कार्रवाइयों के कारण अत्यधिक पीड़ित है। एक संगठन जो संयुक्त राष्ट्र द्वारा मान्यता प्राप्त नहीं है और एक आतंकवादी समूह के रूप में कुख्यात है। वैश्विक समुदाय के लिए इन चरमपंथी गुटों और उन निर्दोष नागरिकों के बीच अंतर करना जरूरी है, जिनका वे प्रतिनिधित्व करने का झूठा दावा करते हैं।
इस्लामी शिक्षा स्पष्ट रूप से मानव जीवन की पवित्रता पर जोर देती है। सच पूछिए तो हमास दुनिया का एक ऐसा आतंकवादी संगठन बन गया है, जिसने केवल यहूदियों को ही नहीं अपितु फिलिस्तीनियों को भी भारी नुकसान पहुंचाने के लिए जिम्मेदार है। हमास ने इस्लाम के उस मूलभूत सिद्धांतों का गला घोटा है, जिसमें विश्व मानवता और शांति की बात कही गयी है। हमास ने मुसलमानों की वैश्विक धारणा को धूमिल करते हुए, इजरायलियों को भारी नुकसान पहुंचाया।
कुरान मानव जीवन के मूल्य पर जोर देता है। नुकसान पहुंचाने के बजाय जीवन को संरक्षित करने के महत्व पर जोर देता है। इस जटिलता के बीच, संयुक्त राष्ट्र द्वारा सुगम राजनयिक समाधान और शांति वार्ता न केवल वांछनीय हैं बल्कि आवश्यक भी हैं। फिलिस्तीनी और इजरायली, दोनों ही सुरक्षा और शांति के हकदार हैं, उन्हें चरमपंथी गुटों की कार्रवाइयों का बंधक नहीं बनाया जाना चाहिए। मानव जीवन की पवित्रता को कायम रखना और इस्लाम की शांतिपूर्ण शिक्षाओं का पालन करना क्षेत्र में समाधान और सह-अस्तित्व की दिशा में मार्ग प्रशस्त कर सकता है। इसका अनुसरण दोनों पक्ष को करना ही होगा।
फिलिस्तीन और इजराइल के बीच चल रहे संघर्ष के आलोक में, हमास के कार्यों की स्पष्ट रूप से निंदा होनी चाहिए। इस संगठन ने अनवरत शत्रुता से दोनों पक्षों को अथाह पीड़ा पहुंचाई है। उसे तत्काल समाप्त किया जाना चाहिए। जिन लोगों ने कष्ट सहा है और सहना जारी रखा है, वे न्याय के हकदार हैं, जो शांतिपूर्ण बातचीत के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है।
इस मामले में भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का बयान बेहद सारथक जान पड़ता है। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, ‘‘वर्तमान युग शांति का है। इसमें युद्ध का कोई स्थान नहीं होना चाहिए। समाधान हथियारों और आतंक में नहीं बल्कि ईमानदार, शांतिपूर्ण बातचीत में निहित है। संयुक्त राष्ट्र के तत्वावधान में अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को इस शत्रुता को समाप्त करने के लिए तेजी से हस्तक्षेप करना चाहिए। आतंकवाद की निंदा करके, शांति की वकालत कर और यह सुनिश्चित करके कि पीड़ा के लिए जिम्मेदार लोगों को शांतिपूर्ण तरीकों से जवाबदेह ठहराया जाए। इससे हम एक ऐसे भविष्य का मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं, जहां सद्भाव संघर्ष पर विजय प्राप्त करेगा। तत्काल और निर्णायक हस्तक्षेप सिर्फ एक आवश्यकता नहीं है। यह एक नैतिक दायित्व भी है, जो यह सुनिश्चित करता है कि प्रत्येक व्यक्ति भय, हिंसा और युद्ध के विनाशकारी परिणामों से मुक्त दुनिया में रह सके।’’ इस बयान में सबकुछ छुपा है। इसलिए विश्व समुदाय को वहां हस्तक्षेप करना चाहिए। साथ ही ईरान हो या कतर या फिर अन्य कोई इस्लामिक देख। वहां हिंसा बढ़ाने के बदले शांति की स्थापना के पहल करना चाहिए। इस हिंसा के बीच हमें पूरी मानवता की चिंता करनी होगी। यहां अपने निहित स्वार्थ से भी परहेज करना होगा।