लखनऊ/इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अपने एक एतिहासिक फेसले में निचली अदालत के निर्णय को पलटते हुए ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के सर्वेक्षण पर फिलहाल रोक लगा दी है। इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस प्रकाश पाडिया की एकल पीठ ने वाराणसी में विश्वनाथ मंदिर से सटी ज्ञानवापी मस्जिद की जमीन का पुरातात्विक सर्वेक्षण कराने के सिविल कोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी। एकल पीठ, सभी पक्षों से 2 हफ्ते में नए सिरे से जवाब दाखिल करने को कहा है।
जबतक जवाब नहीं आता तब तक के लिए निचली अदालत के फैसले पर रोक लगी रहेगी। अदालत ने 1991 में दायर मुख्य मुकदमे की किसी कार्यवाही पर भी अगली सुनवाई तक रोक लगाई है। अगली सुनवाई 8 नवंबर को होगी। अदालत के फैसले से मुस्लिम पक्षकारों को फौरी राहत मिली है।
अंजुमन इंतजामिया मस्जिद एवं यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड की याचिका पर स्टे का फैसला देते हुए माननीय न्यायालय की एकल पीठ ने वाराणसी के सिविल जज सीनियर डिवीजन फास्ट ट्रैक कोर्ट के आदेश को निराधार बताया। एकल पीठ का कहना है कि ऊपरी अदालत में मामला लंबित होने के बावजूद निचली कोर्ट को आदेश देने का अधिकार नहीं है।
वाराणसी के सीनियर डिवीजन सिविल जज ने 8 अप्रैल 21 को वाद मित्र की याचिका पर सर्वेक्षण का आदेश दिया था। एएसआई से खुदाई कराकर सर्वेक्षण के जरिए हकीकत का पता लगाने के लिए पांच सदस्यीय कमेटी बनाने को कहा था। मुस्लिम पक्षकारों ने सिविल जज के इस आदेश पर असहमति जताते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। मस्जिद की इंतजामिया कमेटी और यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने इस आदेश के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी। 31 अगस्त को सुनवाई पूरी होने के बाद हाईकोर्ट ने फैसला सुरक्षित कर लिया था।
गौरतलब है कि ज्ञानवापी में नए मंदिर के निर्माण और हिंदुओं को पूजा पाठ करने का अधिकार देने आदि को लेकर वर्ष 1991 में मुकदमा दायर किया गया था। मामले में निचली अदालत व सत्र न्यायालय के आदेश के खिलाफ 1997 में हाईकोर्ट में चुनौती दी गई। हाईकोर्ट से कई वर्षों से स्टे होने से वाद लम्बित रहा। 10 दिसंबर 2019 में प्राचीन मूर्ति स्वयंभू लार्ड विश्वेश्वर के वाद मित्र विजय शंकर रस्तोगी ने सिविल जज सीनियर डिवीजन (फास्ट ट्रैक कोर्ट) आशुतोष तिवारी की अदालत में आवेदन देकर अपील की थी कि ढांचास्थल के पुरातात्विक सर्वेक्षण के लिए निर्देशित किया जाये।
दावा किया कि ढांचा के नीचे काशी विश्वनाथ मंदिर के पुरातात्विक अवशेष हैं। अपील में कहा गया कि मौजा शहर खास स्थित ज्ञानवापी परिसर के 9130, 9131, 9132 रकबा नं. एक बीघा 9 बिस्वा लगभग जमीन है। उक्त जमीन पर मंदिर का अवशेष है। 14वीं शताब्दी के मंदिर में प्रथमतल में ढांचा और भूतल में तहखाना है। इसमें 100 फुट गहरा शिवलिंग है। मंदिर हजारों वर्ष पहले 2050 विक्रमी संवत में राजा विक्रमादित्य ने, फिर सतयुग में राजा हरिश्चंद्र और 1780 में अहिल्यावाई होलकर ने जीर्णोद्धार कराया।
यह भी कहा गया कि 100 वर्ष तक 1669 से 1780 तक मंदिर का अस्तित्व ही नहीं रहा बीएचयू के प्राचीन भारतीय इतिहास के विभागाध्यक्ष एएस अल्टेकर ने बनारस के इतिहास में लिखा है कि प्राचीन विश्वनाथ मंदिर में ज्योतिर्लिंग 100 फीट का था। अरघा भी 100 फीट का बताया गया है। लिंग पर गंगाजल बराबर गिरता रहा है, जिसे पत्थर से ढक दिया गया। यहां शृंगार गौरी की पूजा-अर्चना होती है। तहखाना यथावत है। यह खुदाई से स्पष्ट हो जाएगा।
वाराणसी के सिविल जज सीनियर डिवीजन (फास्ट ट्रैक कोर्ट) आशुतोष तिवारी की अदालत ने पुरातात्विक सर्वेक्षण का आदेश देते हुए पांच सदस्यीय कमेटी गठित करने का भी निर्देश दिया था। कहा था कि इसमें दो अल्पसंख्यक जरूर हों। सर्वेक्षण सम्बंधित कार्य एएसआई की ओर से नियुक्त आब्जर्वर की निगरानी में होगा। अंजुमन इंतजामिया मस्जिद के अधिवक्ता रईस अहमद अंसारी, मुमताज अहमद और सेंट्रल सुन्नी वक्फ बोर्ड के अभय यादव व तौफीक खान ने पक्ष रखा कि जब मंदिर तोड़ा गया तब ज्योतिर्लिंग उसी स्थान पर मौजूद था, जो आज भी है। उसी दौरान राजा अकबर के वित्तमंत्री टोडरमल की मदद से स्वामी नरायन भट्ट ने मंदिर बनवाया था जो उसी ज्योतिर्लिंग पर बना है। ऐसे में ढांचा के नीचे दूसरा शिवलिंग कैसे आया। ऐसे में खुदाई नहीं होनी चाहिए।
रामजन्म भूमि की तर्ज पर पुरातात्विक रिपोर्ट मंगाने की स्थितियां विपरीत थीं। उक्त वाद में साक्षियों के बयान में विरोधाभास होने पर कोर्ट ने रिपोर्ट मंगाई थी। जबकि यहां अभी तक किसी की गवाही नहीं हुई है। अभी मामला प्रारम्भिक स्टेज पर है। ऐसे में साक्ष्य आने के बाद विरोधाभास होने पर रिपोर्ट मांगी जा सकती है। सिर्फ साक्ष्य एकत्र करने के लिए रिपोर्ट नही मंगाई जा सकती है।
(इस समाचार के लिए जनचैक नामक वेब पोर्टल से इनपुट लिया गया है। इस समाचार के लेखक वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह हैं। सिंह इलाहाबाद में रहते हैं।)