गौतम चौधरी
आने वाले वर्ष 2022 में पांच राज्यों के चुनाव को देखते हुए भारतीय जनता पार्टी, कुछ बड़ी घोषणों को लेकर मंथन कर रही है। भाजपा के नीति नियंताओं को इस बात का अंदेशा है कि हो न हो, पांच राज्यों के चुनावों में उनकी हालत कमजोर पड़ जाए। हालांकि विगत दिनों हुए कुछ महत्वपूर्ण राज्यों के विधानसभा उपचुनावों में पार्टी का प्रदर्शन लगभग ठीक-ठाक ही रहा लेकिन पहाड़ी राज्यों की स्थिति और पंजाब-हरियाणा के किसान आन्दोलन ने भाजपा की निंद उड़ा कर रख दी है। यदि पिछले प्रदर्शन के विपरीत चुनाव परिणाम निकले तो फिर 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा हार भी सकती है। इसलिए सूत्रों की मानें तो इन राज्यों को लेकर केन्द्र सरकार कुछ बड़ी घोषणाएं कर सकती है।
शर्तीया तौर पर यह नहीं बताया जा सकता है कि आखिर सरकार क्या घोषणा कर सकती है लेकिन पंजाब की फिजाओं में जो बातें तैर रही है उसमें सबसे महत्वपूर्ण मामला पंजाब को चंडीगढ़ वापस करने का है। यदि केन्द्र सरकार चंडीगढ़ को पंजाब में शामिल करने की घोषणा कर देती है तो पंजाब पर शासन का सपना भाजपा पूरी कर सकती है। हालांकि इस मामले में कई पेंच हैं और यह मामला बेहद संवेदनशील भी है लेकिन जिस प्रकार भाजपा नेतृत्व विगत दिनों फैसले लेती रही है, उसमें इसकी संभावना पूरी बनती है।
दूसरी घोषणा भाजपा पंजाब का कर्जा माफ कर सकती है। दरअसल, पंजाब सरकार ने आतंकवाद के कालखंड में केन्द्र सरकार से बड़े पैमाने पर कर्ज ली थी। वह कर्ज पंजाब के लिए बोझ बन गया है। यदि केन्द्र सरकार यह कर्ज माफ कर देती है तो यह पंजाब के लिए बड़ी राहत होगी और इससे पंजाक का मानस भाजपा के प्रति सकारात्मक हो सकता है। केन्द्र सरकार यह आसानी से कर सकती है और इसका लाभ भाजपा को आगामी विधानसभा चुनाव में मिलेगा।
इधर पश्चिमी उत्तर पदेश को लेकर भाजपा गन्ना किसानों के लिए कई घोषणा पहले से कर रखी है लेकिन अभी भी किसानों का करोड़ों रूपये विभिन्न एजेंसियों के पास बकाया है। यदि सरकार यह घोषणा कर दे कि गन्ना किसानों का संपूर्ण भुगतान किसी भी कीमत पर एक महीने में कर दिया जाएगा तो पश्चिमी उत्तर पदेश में भाजपा को इसका बड़ा लाभ मिलेगा। यही नहीं इसका प्रभाव उत्तराखंड पर भी पड़ेगा।
सरकार पहाड़ी राज्य, हिमाचल प्रदेश एवं उत्तराखंड के लिए विशेष पैकेज की भी घोषणा कर सकती है। सच पूछिए तो दोनों प्रांतों में भाजपा की हालत पतली है। अपनी कमजोर स्थिति के कारण भाजपा को उत्तराखंड में लगातार दो मुख्यमंत्री बदलकर तीसरे पर भरोसा करना पड़। अब सुनने में यह आ रहा है कि भाजपा इस तीसरे के चेहरे पर भी चुनाव नहीं लड़ेगी और किसी चैथे की खोज प्रारंभ हो गयी है। रही बात हिमाचल प्रदेश की तो यहां कांग्रेस का पलड़ा भारी दिख रहा है। तत्काल कोई सकारात्मक नहीं हुआ तो हिमाचल भाजपा के हाथ से निकल सकता है। इसलिए भाजपा का केन्द्रीय नेतृत्व पहाड़ी राज्यों में कोई लफड़ा मोल नहीं लेना चाहता है। संभावना यह भी है कि केन्द्र सरकार पहाड़ी राज्यों को लेकर अलग से कोई पैकेज घोषित कर सकती है।
इस बार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एवं गृहमंत्री अमित शाह के गृहप्रांत गुजरात के हालात भी बहुत अच्छे नहीं हैं। पिछली दफा विधानसभा चुनाव में शंकर सिंह वाघेला, अहमद भाई पटेल और भरत भाई सोलंकी के आपसी लड़ाई में कांग्रेस को मुंह की खानी पड़ी थी लेकिन इस बार गुजरात के अजेय माने जाने वाले कांग्रेसी नेता माधव सिंह सोलंकी के बेटे भरत सिंह सोलंकी के हाथ में प्रदेश कांग्रेस की पूरी कमान है। यदि सोलंकी, भाजपा के पारंपरिक वोट बैंक, पटेल वोटरों में शेंध लगाने में कामयाब रहे तो फिर गुजरत का रण भाजपा के लिए बेहद कठिन होगा। हालांकि मोदी और शाह गुजरात के लिए बहुत कुछ कर रहे हैं राजनीति के माहिर खिलाड़ी भी माने जाते हैं लेकिन भरत सिंह सोलंके के नेतृत्व वाली कांग्रेस को भी कमजोर करके नहीं आंका जा सकता है। भाजपा के साथ वाले समिकरण में यदि थोड़ा डेंट पड़ता है तो गुजरात में एक बार फिर कांग्रेस वापस कर सकती है। फिर गुजरात में इस बार कांग्रेस एक ही साथ तीन युवा नेताओं को प्रचार में उतारने की योजना बना रही है। ये तीन नेता, हार्दिक पटेल, जिगनेश मेवाणी और कन्हैया कुमार भाजपा के स्टार प्रचारकों पर भारी पड़ेंगे। गुजरात में इसका लाभ भी कांग्रेस को मिल सकता है। इसलिए केन्द्र सरकार तत्काल गुजरात के किसानों के लिए बड़ी घोषणा कर सकती है।
कई मोर्चों पर जिस प्रकार भाजपा और केन्द्र सरकार ने अपने कदम पीछे खींचे हैं उससे यह साबित हो रहा है कि पार्टी को इस बात का अंदाज हो गया है कि अब भावनात्मक मुद्दों से काम चलने वाला नहीं है। आधारभूत संरचना और विकास के मामले में भाजपा अभी भी कांग्रेस से आगे है लेकिन सामाजिक सुरक्षा एवं निम्न-मध्य वर्ग के विकास को लेकर भाजपा की किड़किड़ी हो रही है। यही नहीं भ्रष्टाचार, रोजगार, वाह्य सुरक्षा, मंहगाई के मोर्चों पर भी भाजपा फिसड्डी साबित हुई है। उपर से भाजपा नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार पर क्रूर पूंजीवादी होने का भी आरोप लग रहा है। इसके कारण भाजपा की छवि को धक्का लगा है। यदि तत्काल कुछ अच्छे निर्णय नहीं लिए तो पांच राज्यों के चुनाव में तो भाजपा मुंह की खाएगी ही 2024 में भी भाजपा को हर का सामना करना पड़ सकता है।