गौतम चौधरी
एक पिता अपने बच्चे को एक अच्छी शिक्षा से बेहतर कुछ नहीं देता – पैगंबर मुहम्मद।
इस्लाम के प्रनेता सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम यानी पैगंबर मुहम्मद के यह विचार सर्वकालिक और सार्वदेशिक है। एक धर्म के रूप में इस्लाम, मानव व्यक्तित्व के केंद्र में ज्ञान को ही महत्व दिया है। यही कारण है कि इस्लाम के अंतिम संदेशवाहक, सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ज्ञान की महिमा का कई स्थानों पर बखान किया है। अतीत में शिक्षा के क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने के बावजूद, आज का मुस्लिम समाज शिक्षा के मामले में पिछड़ा हुआ है। ऐसे में स्थिति तब और गंभीर हो जाती है जब चर्चा मुस्लिम महिलाओं की होती है। इस्लामी विद्वान मुहम्मद बाकिर अल सदर ने एक बार कहा था, ‘‘यदि लड़कियों को ठीक से शिक्षित व पोषित किया जाता है और धर्म एवं सांसारिक मामलों के क्षेत्र में उनके अधिकार पूरे किए जाते हैं तो वह एक प्रभावी और लाभकारी समाज की आधारशिला बन जाती है।’’
महिलाओं की शिक्षा के लिए पैगंबर और उनके परिवार का रुख दुनिया के सामने एक खुली तस्वीर है। दुनिया की पहली मुसलमान और मुहम्मद साहब की पहली पत्नी खदीजा, एक सफल व्यवसायी ही नहीं थी परोपकारी महिला भी। उन्होंने उस दौर के उत्पीड़ित विधवाओं, परित्यक्त बेटियों और पतियों के द्वारा दुर्व्यवहार करने वाली पत्नियों के लिए काम किया। असाधारण विद्वान और इस्लाम की कार्यकर्ता बीवी फातिमा ने विरासत के अधिकारों के साथ हुए अन्याय के लिए आवाज उठाई। लेडी आयशा अपने समय के विद्वानों के बीच प्रभावशाली स्थिति के लिए जानी जाती थीं। पैगंबर की नातिन, जैनब बिन्त अली, उस जमाने की एक अविश्वसनीय वक्ता और विद्वान थी, जिसे उनकी बुद्धिमत्ता, हास्य और सीखने के कौशल के कारण ‘अकीला आई बान हाशिम’ (हाशिम के बच्चों में से एक बुद्धिमान) का खिताब दिया गया था।
9वीं शताब्दी के मध्य में फातिमा अल-फिहरी ने पहले मुस्लिम विश्वविद्यालय के विचार को जन्म दिया। महिलाओं की एक पीढ़ी को आकार देने, कानून, विज्ञान, कला, साहित्य, चिकित्सा, धर्मशास्त्र आदि का अध्ययन करने में इस्लाम कभी भी बाधा नहीं बना। इस्लाम सदा से सामाजिक सक्रियता को बढ़ावा देने में मदद की है। राजनीतिक नेता, विद्वानों और कार्यकर्ताओं के रूप में मुस्लिम महिलाओं के शुरुआती और मध्यकालीन योगदान ने आज के समाज के विशिष्ट परिप्रेक्ष्य को आईना दिखा है।
मुसलमान धार्मिक और धर्मनिरपेक्ष ज्ञान को संतुलित करने में विफल रहे हैं और खुद को पारंपरिक रूप से निर्धारित ग्रंथों तक सीमित कर लिया है, जबकि इस्लाम प्रगतिशीलता को बढ़ावा देने वाला धर्म रहा है। यह इस्लाम में ज्ञान के फैलाव को विस्तार देने में बाधक बन रहा है। खास कर जिस समाज को गढ़ने और प्रभावशाली बनाने में महिलाओं ने अद्भुद भूमिका निभाई उसी समाज ने महिलाओं पर कई प्रकार की बंदिशें लगा रखी है। यहां तक की शिक्षा से भी उन्हें दूर रखने की कोशिश हो रही है। इस चिंतन ने मुस्लिम महिलाओं को गंभीर रूप से प्रभावित किया। एक प्रचलित घटना के रूप में पुरुष प्रभुत्व धार्मिक, राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से प्रेरित आधारों के लिए समाज में महिलाओं की निरक्षर स्थिति पर जोर देता है। धार्मिक पाठ के प्रसारण की व्यापक रूप से गलत व्याख्या की गई है और इसे पुरातनपंथी चिंतन से आबद्ध कर दिया गया है। मदरसा और मकतबों ने लड़कियों के प्रति अपने दृष्टिकोण को लगातार विकृत परंपराओं के पैटर्न पर संचालित करके प्रतिबंधित कर दिया है। उदाहरण के लिए, महिला शिक्षकों की कमी ग्रामीण समाजों में प्रचलित सामाजिक-आर्थिक गरीबी ने उच्च शिक्षा के लिए आगे बढ़ने के लिए लड़कियों की रुचि को कम कर दिया है और दैनिक वेतन-अर्जन गतिविधियों के लिए उनकी योग्यता को सीमित कर दिया है।
आज मुस्लिम समाज में एक और गलत चलन देखने को मिल रहा है। यहां शादियों में ज्यादा खर्च करने और शिक्षा पर कम खर्च करने के दोहरे मानकों ने लड़कियों के संज्ञानात्मक विकास को पहले ही कुचल कर रख दिया है। एक पति अपनी पत्नी की डिलीवरी के लिए एक महिला डॉक्टर चाहता है लेकिन वह अपनी बेटी को डाॅक्टर नहीं बनाना चाहता है। अपनी लड़कियों को विज्ञान के बारे में जानने और समझने से रोकता है।
एक बेहतर कल के लिए, मुसलमानों को अपने अस्तित्व में स्वायत्तता और विश्वास को लागू करके अपनी महिलाओं की शिक्षा पर ध्यान देना चाहिए। मुस्लिम लड़कियों को मुस्लिम समाज में महिला सशक्तिकरण की दिशा में एक सच्चे कदम के रूप में उनकी शिक्षा के लिए आश्वासन और जागरूकता प्राप्त करने में सहायता की जानी चाहिए। मुस्लिम महिलाओं को उनके विकास के लिए अप्रतिबंधित और अनिवार्य शिक्षा देने के लिए सरकारी पहलों से परिचित होना भी महत्वपूर्ण है। मुस्लिम महिलाओं को उनके शिक्षा के अधिकार को समझने के लिए उचित निर्देश के साथ कुशल तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा प्रदान की जानी चाहिए। वैश्वीकरण के इस युग में मुसलमा तभी अपने आप को मजबूत बना पाएंगे जब वे अपने घर की महिलाओं, बहु-बेटियों को आधुनिक शिक्षा से परिचय कराऐंगे। भारत में सरकारी योजनाओं का लाभ लेकर कई मुस्लिम महिलाएं अपना जीवन खुशहाल बना रखी है। यही नहीं अपने परिवार को भी वह सही दिशा दे रही है। ऐसे में मुसलमानों को महिलाओं के लिए थोड़ा जगह तो देना ही होगा अन्यथा भारत के मुसलमान अन्य समाज की तुलना में पिछड़ते चले जाएंगे।