बलदेव शर्मा/शिमला
अभी हुए विधानसभा के चुनावों में मिली हार से भाजपा का राष्ट्रीय स्तर पर सारा गणित गडबड़ा गया है और सार्वजनिक रूप से बाहर भी आ चुका है। इन चुनावों ने प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी, गृह मन्त्री अमितशाह और पार्टी अध्यक्ष जे.पी. नड्डा की लोकप्रियता तथा चुनावी रण कौशल की हवा निकाल दी है। इस हार का असर हर राज्य और हर कार्यकर्ता,नेता पर अपने-अपने तरीके से हुआ है।
यह जो धारणा चली आ रही थी कि इन तीनों नेताओं के रहते पार्टी पर कभी कोई संकट नहीं आ सकता वह पूरी तरह आधार हीन सिद्ध हो गयी है। जो कांग्रेस स्वयं भी इन चुनावों में कोई अच्छा नहीं कर पायी है वह भी भाजपा को आंखें दिखाने पर आ गयी है। उसने भी सीधे चुनौती दे दी है कि उसके नेताओं के खिलाफ जितने चाहो मामलें बनाओ वह डरने वाले नहीं है। बल्कि टूलकिट प्रकरण को लेकर भाजपा नेताओं संबित पात्रा एवम् रमन सिंह के खिलाफ छत्तीसगढ़ में जो मामला दर्ज किया गया है उसमें इन नेताओं की कठिनाईयां बढ़ती जा रही है।
राष्ट्रीय परिदृश्य का संज्ञान लेते हुए आरएसएस ने राज्यवार हालात का आकलन करना शुरू कर दिया है और इसमें सबसे पहले उन राज्यों पर ध्यान केन्द्रित किया जा रहा है जिनमें 2022 में विधानसभाओं के चुनाव होने हैं।
हिमाचल में भी 2022 में चुनाव होने हैं इसलिये राष्ट्रीय परिदृश्य के संद्धर्भ में हिमाचल पर नजर दौड़ाई जाये तो बंगाल चुनावों के बाद हमीरपुर के सांसद केन्द्रिय वित्त राज्य मन्त्री अनुराग ठाकुर की सक्रियता प्रदेश में एकदम बढ़ गयी है। कोरोना संकट में जिस तरह वह प्रदेश के लोगों की सहायता के लिये आगे आये हैं उससे जयराम सरकार द्वारा किये जा रहे सारे प्रयास एक तरह से पृष्ठभूमि में चले गये हैं।
संगठन और उससे बाहर के लोग सभी अनुराग के प्रयासों की सराहना कर रहे हैं। जयराम के मन्त्री सुरेश भारद्वाज ने जिला शिमला को दी गयी मद्द के लिये अनुराग का आभार व्यक्त किया है। राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा ने तो कोरोना सामग्री ला रही गाड़ियों को हरी झण्डी दिखाकर अनुराग के प्रयासों को एक तरह से प्रमाण पत्र जारी किया है। बल्कि अनुराग के प्रयासों से प्रभावित होकर ही नड्डा ने अपनी सांसद निधि से दो करोड़ जिलाधीश बिलासपुर को कोरोना राहत के लिये दिये हैं। अनुराग के प्रयासों के साये में लोग यह पूछने लग गये हंै कि जब अनुराग इतना सब कर रहे हैं तो सरकार क्या कर रही है।
कोरोना एक ऐसा संकट है जिसने हर आदमी को व्यक्तिगत तौर पर प्रभावित किया है। ऐसे संकट में जब कोई व्यक्ति दुश्मन का भी हाल पूछ लेता है तो वह उसकी सज्जनता का कायल हो जाता है। अनुराग शायद इसी सिन्द्धात का अनुसरण करते हुए लोगों से व्यक्तिगत तौर पर संपर्क स्थापित कर रहे हैं और उनकी सहायता भी कर रहे हैं। हमीरपुर संसदीय क्षेत्र के पत्रकारों को कोरोना किटस बांटे हैं और शिमला में भी कई लोगों से फोन पर हाल पूछा है।
दूसरी ओर जयराम और उनकी सरकार इस दिशा में ऐसे कोई प्रयास नहीं कर रही है। लोगों का हाल पूछने की बजाये वह अभी तक पत्रकारों के खिलाफ दर्ज मामलों को वापिस नहीं ले पाये हैं। इस कोरोना काल में शिमला में ही कई अखबारों के दफ्तर बन्द हो गये हैं और इसके लिये बहुत हद तक सरकार के जनसंपर्क विभाग की नीतियां जिम्मेदार है। यह सरकार आज भी अपने दायरे से बाहर नहीं आ पा रही है। मंहगाई, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार के खिलाफ कुछ नहीं कर पायी है।
कोरोना काल में इस सरकार का स्वास्थ्य विभाग ही सबसे विवादित रहा है। अभी भी शिमला-कुल्लु के कुछ क्षेत्रों में अस्पतालों में जो सप्लाई गयी है उसकी गुणवत्ता को लेकर गंभीर सवाल उठे हैं परन्तु सरकार की ओर से कोई कारवाई किया जाना सामने नहीं आया है। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ ठोस कदम उठाना सरकार की प्राथमिकता नहीं है।
इस सरकार की अब तक की सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि कर्ज लेने में इसने पिछले सारे रिकार्ड तोड़ दिये हैं। यदि यह खोजा जाये की इस कर्ज का निवेश कहां हुआ है? कौन सा संसाधन ऐसा खड़ा किया है जिससे भविष्य में प्रदेश को कोई स्थायी आमदनी होगी? कर्ज लेकर भी आम आदमी को राहत जब न दी जा सके तो कर्ज के औचित्य पर सवाल उठने स्वभाविक हो जाते हैं।
कर्ज के बाद भी जब गरीब आदमी को मिलने वाले सस्ते राशन के दाम बढ़ाने पड़ जाये तो उसका आम आदमी पर क्या प्रभाव पड़ेगा इसका अन्दाजा लगाना कठिन नहीं है। यही नहीं यदि प्रशासनिक तौर पर यह देखें की जो आरोप इस संद्धर्भ में कांग्रेस के शासन पर लगाये जाते थे आज वही सारे आरोप इस सरकार पर उससे भी बड़ी मात्रा में लग जाते हैं और यह सब इसलिये हो रहा है क्योंकि सरकार के सलाहकार बहुत हल्के स्तर के हो गये हैं।
कुल मिलाकर जो परिदृश्य बन चुका है उसके आवरण में 2022 के चुनावों में विजय हालिस कर पाना इस समय पूरी तरह असंभव बन चुका है। पिछले चुनावों में धूमल के चेहरे के कारण जीत मिली थी यह एक सार्वजनिक सच है। धूमल इस चुनाव में पार्टी के लिये काम करते करतेे अपनी सीट नहीं बचा पाये थे क्योंकि उनके खिलाफ वह सारी ताकतें इकट्ठी हो गयी थी जिन्होने उनकी सरकार को अस्थिर करने के लिये अपनी ही हाईकमान के पास उनके खिलाफ आधारहीन शिकायतें तक नितिन गडकरी के पास लगायी थी। आज तो कोरोना ने सरकार के खिलाफ इतना असहज वातावरण खड़ा कर दिया है जिसके चक्रव्यूह से बाहर निकलना आसान नहीं होगा।
माना जा रहा है कि संघ ने हर प्रदेश में जमीनी हकीकत का संज्ञान लेते हुए उसका बढ़ा आकलन करना शुरू कर दिया है। हिमाचल में अनुराग, नड्डा और धूमल की इन दिनों बढ़ी सक्रियता को राजनीतिक विश्लेषक नेतृत्व के संद्धर्भ में ही देख रहे हैं।