रांची/ भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी स्टेट ऑफिस में पार्टी के राष्ट्रीय सचिव सह अखिल भारतीय किसान सभा के महासचिव कॉमरेड अतुल कुमार अंजान को श्रद्धांजलि दी गयी। सीपीआई राज्य कार्यालय के सभागार में सौंकड़ों कार्यकर्ताओं ने अपने प्रिय नेता के प्रति श्रद्धा व्यक्त की।
इस मौके पर श्रद्धांजलि सभा को संबोधित करते हुए झारखंड प्रदेश के वरिष्ट पार्टी नेता पूर्व सांसद भुवनेश्वर प्रसाद मेहता ने कहा, अतुल कुमार अंजान का असामयिक निधन भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के लिए अपूर्णनीय क्षति है। कॉम अतुल सीपीआई और किसान आन्दोलन के बौद्धिक स्तंभ थे। अतुल कुमार अंजान छात्र जीवन से ही जनसंगठनों के जुड़ गए और आम लोगों के लिए संघर्ष प्रारंभ कर दिया। इसी संघर्ष ने अंजान को देश और दुनिया में पहचान दिलाई। कॉ. मेहता ने कहा कि वे पिछले 1 वर्ष से कैंसर की बीमारी झेल रहे थे। इस लाइलाज बीमारी से लड़ते हुए 3 मई को लखनऊ के मेयो अस्पताल में अंतिम सांस ली। कामरेड अनजान कई भाषाओं के जानकार थे, किसी भी देसी विदेशी मंच को अपने कब्जे में ले लेते थे, घंटों किसी विषय पर बोलने की क्षमता रखते थे। उनके निधन से पूरी पार्टी मर्माहत है।
इस मौके पर अखिल भारतीय किसान सभा के महासचिव एवं झारखंड प्रदेश पार्टी सचिव महेंद्र पाठक ने कहा, वर्ष 1977 से राजनीति में कदम रखने वाले अतुल अंजान वामपंथी राजनीति के ऐसे चहरे थे जो उत्तर प्रदेश ही नहीं पूरे देश में मशहूर थे। मंच पर जब वे भाषण देते थे तो लोग उनकी आवाज को सुनना बहुत पसंद करते थे, लेकिन आज वह आवाज हमेशा के लिए खामोश हो गई। कॉ. अंजान अब हमारे बीच नहीं है लेकिन उनका चिंतन हमारे साथ है। परिस्थिति कठिन तो है लेकिन कॉ. अंजान के द्वारा खड़ा किया गया आधुनिक किसान आन्दोलन लगातार जारी रहेगा। किसानों के हितों के लिए हम सरकार और कॉरपोरेट लॉबी से दो-दो हाथ करते रहेंगे। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राष्ट्रीय सचिव अतुल कुमार अंजान का नाता देश के तमाम नेताओं को पहचान दे चुकी लखनऊ यूनिवर्सिटी से भी रहा। छात्र नेता के रूप में उन्होंने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत लखनऊ विश्वविद्यालय से ही की थी। अंजान ने 1977 में सक्रिय राजनीति की दहलीज पर कदम रखा और पूरे देश में छा गए। 20 साल की आयु में नेशनल कॉलेज स्टूडेंट यूनियन के अध्यक्ष चुने गए। अंजान ने यहां से फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय छात्रसंघ के अध्यक्ष पद का भी चुनाव जीता। वे छात्रों के बीच इसलिए भी लोकप्रिय थे कि उनकी हर समस्या को मुखर तरीके से आवाज देते थे। अतुल कुमार अंजान की कई भाषाओं पर पकड़ काफी मजबूत थी। बहुत कम लोगों को इस बात की जानकारी है कि अतुल कुमार अंजान उत्तर प्रदेश के प्रसिद्ध पुलिस पीएसी विद्रोह के मुख्य सूत्रधार थे। राजनीतिक यात्रा के दौरान अंजान ने अपने जीवन के लगभग पांच साल जेल में काटे। अंजान के पिता एपी सिंह स्वतंत्रता सेनानी थे और उन्होंने हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन की गतिविधियों में हिस्सा लिया था। इसके लिए उन्हें भी फिरंगियों के जेल में लंबी सजा काटनी पड़ी। अपने पिता के नक्शे कदम पर ही अतुल कुमार अंजान ने भी राजनीति में कभी समझौता नहीं किया।
कॉ. पाठक ने अंजान के राजनीतिक व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि कॉ. अतुल, उत्तर प्रदेश के घोसी लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से कई बार भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के उम्मीदवार रहे। पूर्वांचल में कम्युनिस्ट पार्टी को मजबूत करने का श्रेय अतुल कुमार अंजान को जाता है। 1980 के दशक की शुरुआत तक उत्तर भारत में कम्युनिस्टों का गढ़ बना रहा, लेकिन 1990 के दशक के बाद वामपंथियों ने वहां से अपनी जमीन खोनी शुरू कर दी, फिर भी सीपीआई घोसी सीट से अतुल कुमार अंजान को ही मैदान में उतारती रही। अंजान आज हमारे बीच नहीं है लेकिन जिसने भी दास कैपिटल का अध्ययन किया है और साम्यवाद को समझने का प्रयास किया है उसे पता है कि विचार की कभी मृत्यु नहीं होती। अंजान का चिंतन हमारे लिए उत्प्रेरक कार्य करेगा। हम कॉ. अंजान द्वारा खड़े किए गए किसान आन्दोलन को आगे बढ़ाएंगे और किसानों वो सारे हक दिलवाएंगे जिसके वे हकदार हैं।
इस मौके पर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी राष्ट्रीय परिषद के सदस्य पीके पांडे ने कहा, कॉ. अंजान दक्षिणपंथी-फासीवादी ताकतों के खिलाफ एक अडिग योद्धा थे। उनका निधन भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी और देश की वर्तमान स्थिति में किसान आंदोलन के लिए एक बड़ी क्षति है।
इस अवसर पर जिला सचिव अजय कुमार सिंह, झारखंड आंदोलनकारी पुष्कर महतो सहित कई लोगों उपस्थित थे। मौके पर कॉ. अजय ने कहा यह कॉ. अंजान की श्रद्धांजली सभा नहीं है अपितु संकल्प सभा है। इस सभा में हमलोग संकल्प लें कि उनके द्वारा छोड़े गए अधूरे कार्यों को हमें पूरा करना करना है। इसके लिए किसान, मजदूर, छात्र, नौजवान और जगह-जगह अपने स्तर पर आन्दोलन कर रहे कमजोर लोगों को एक मंच पर लाकर फासीवादी दक्षिणपंथी ताकतों के खिलाफ एक मजबूत गठबंधन तैयार करना होगा। अजय ने कहा कि हम झारखंड को लूट की जमीन नहीं बनने देंगे और हमारा संघर्ष जारी रहेगा।
श्रद्धांजलि सभा में पूर्व सांसद भुवनेश्वर प्रसाद मेहता, राज्य सचिव महेंद्र पाठक, पीके पांडे, जिला सचिव अजय कुमार सिंह, किसान नेता बनवारी साहू, झारखंड आंदोलनकारी पुष्कर महतो, अनिरुद्ध कुमार महतो, नेमन यादव, मेवा लाल प्रसाद, इम्तियाज़ खान, मुरलीधर डांगी, डॉ अनवर हुसैन, दर्शन गंजू, मनोज कुमार महतो, कृष्ण कुमार वर्मा, किरण कुमारी, राधिका तिवारी, नीरज कुमार सिंह, चोमू उरांव सहित कई गणमान्य उपस्थित थे।
कॉमरेड अतुल कुमार अंजान की जीवन परिचय
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के वरिष्ठ नेता अतुल कुमार अंजान की स्कूली शिक्षा लखनऊ से हुई। उन्होंने लखनऊ के राज्य बोर्ड स्कूल से अपनी स्कूलिंग की थी। इसके बाद अतुल अंजान ने लखनऊ यूनिवर्सिटी से 1967 में ग्रेजुएशन, 72 में पोस्ट ग्रेजुएशन और 1983 में एलएलबी की पढ़ाई पूरी की। अंजान, ऑल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन के उत्तर प्रदेश राज्य अध्यक्ष थे। सीपीआई नेता अतुल कुमार अंजान के पिता डॉ. एपी. सिंह एक वरिष्ठ स्वतंत्रता सेनानी थे, जिन्होंने एचएसआरए (हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन) की कार्रवाइयों में भाग लिया था, जिसके लिए उन्होंने ब्रिटिश जेल में लंबी सजा काटी थी। अतुल कुमार अंजान घोसी लोकसभा सीट से कई बार चुनाव लड़ चुके है। लेकिन उन्हें हर चुनाव में हार का सामना करना लड़ा। 2014 लोकसभा चुनाव में अंजान को घोषी सीट पर मात्र 18 हजार के आसपास वोट मिले थे।
अतुल कुमार अंजान नेशनल कॉलेज स्टूडेंट यूनियन के अध्यक्ष चुने गए। छात्रों की चिंताओं की आवाज़ उठाने लिए सीपीआई नेता अतुल कुमार ने लगातार चार बार लखनऊ विवि के छात्रसंघ अध्यक्ष पद का चुनाव जीता। करीब आधा दर्जन भाषाओं में कुशल वक्ता अंजान अपने विश्वविद्यालय के दिनों में ही भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल हो गए थे। अंजान उत्तर प्रदेश के प्रसिद्ध पुलिस-पीएसी विद्रोह के प्रमुख नेताओं में से एक थे। अंजान ने अपने राजनीतिक सफर के दौरान चार साल नौ महीने जेल में बिताए। अपनी राजनीतिक और वैचारिक दृढ़ता और छात्र आंदोलनों का नेतृत्व करने की क्षमता के कारण वे 1979 में लुधियाना सम्मेलन में एआईएसएफ के अध्यक्ष बने और 1985 तक इस पद पर बने रहे।
अंजान साठ के दशक के अंत में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल हुए और अपनी अंतिम सांस तक पार्टी में बने रहे। अतुल कुमार 1989 में कोलकाता में आयोजित 14वीं कांग्रेस में पार्टी की राष्ट्रीय परिषद के लिए चुने गए थे। इसके बाद 1992 में हैदराबाद में आयोजित 15वीं कांग्रेस में राष्ट्रीय कार्यकारिणी समिति के लिए चुने गए और 1995 में दिल्ली में आयोजित 16वीं कांग्रेस में राष्ट्रीय सचिवालय के सदस्य नियुक्त किए गए थे। वे अपनी अंतिम सांस तक उस पद पर बने रहे। उन्होंने साल 1997 में त्रिशूर राष्ट्रीय सम्मेलन में अखिल भारतीय किसान सभा के महासचिव बने और साल 2001, 2006, 2010 और 2016 में भी इसी पद पर निर्वाचित हुए। वे किसानों के हितों के लिए प्रतिबद्ध थे। स्वामीनाथन आयोग के एकमात्र किसान सदस्य के रूप में उनका योगदान उल्लेखनीय रहा, जिसमें किसानों की उपज के लिए एमएसपी सहित कई सिफारिशें की गई थीं।